राजनीतिक पत्रकारिता की भाषा में 'सेल्फ़ गोल' एक लोकप्रिय मुहावरा हो चुका है। लेकिन पत्रकारिता जब इस मुहावरे का इस्तेमाल करती है तो किस तरह करती है? क्या इसके पीछे उसके पूर्वग्रह नजर नहीं आते हैं? कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में जब कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में बजरंग दल को प्रतिबंधित करने का वादा किया तो सबने इसे 'कांग्रेस का सेल्फ़ गोल' करार दिया। ख़ुद उत्तर भारत के कांग्रेसी नेता सशंक हो उठे। बीजेपी तो इतनी उल्लसित हो गई कि ख़ुद प्रधानमंत्री कर्नाटक की रैलियों में जय बजरंग बली के नारे लगाते-लगवाते नज़र आए। यह चुनाव की आचार संहिता का उल्लंघन था या नहीं- इस बहस में पड़ेंगे तो एक दूसरी समस्या की ओर मुड़ जाएंगे, इसलिए इसे छोड़ते हैं, मूल मुद्दे पर लौटते हैं। कर्नाटक चुनावों के नतीजे जब आए तब सबको समझ में आया कि यह सेल्फ़ गोल नहीं था, गोल पोस्ट बदल चुका था।
क्या इस बार असली सेल्फ गोल प्रधानमंत्री ने किया है?
- विचार
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- 28 Apr, 2024

कांग्रेस के घोषणापत्र के संदर्भ में प्रधानमंत्री और भाजपा नेताओं के विवादित भाषण जनमानस में चर्चा का विषय बने हुए हैं। जो बातें कांग्रेस के घोषणापत्र में दूर-दूर तक नहीं हैं, पीएम मोदी और भाजपा के नेता जबरन कह रहे हैं कि वो उनके घोषणापत्र में लिखा है। क्या ये बयान सेल्फ गोल हैं, वरिष्ठ पत्रकार प्रियदर्शन ने इसी सेल्फ गोल को समझाया है, आप भी इसे पढ़कर समझिएः