राजनीति पर रोज भारी मन से लिखना पड़ता है। न लिखूं तो भी कोई पहाड़ नहीं टूटने वाला। लेकिन लिख देने से बहुत कुछ टूटने से बच जाता है। ठीक इसी तरह संसद में अविश्वास प्रस्ताव गिरने से केंद्र की सरकार नहीं गिरती, लेकिन देश का संसदीय आचरण और उसी के साथ देश की सियासत की गिरावट को आप साफ़ देख सकते हैं। अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए विपक्ष और प्रस्ताव गिरने के लिए सरकार को बधाई देते हुए मैं कहना चाहता हूँ कि देश की आजादी के अमृतकाल में किसी अविश्वास प्रस्ताव पर अब तक की ये सबसे दयनीय बहस थी।

विपक्ष द्वारा पेश अविश्वास प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण आख़िर किस दर्जे का था? उनके भाषण के दौरान विपक्ष को वाकआउट किस वजह से किया?
अविश्वास प्रस्ताव के जरिये सरकारें गिराने के गिने-चुने उदाहरण ही हैं, लेकिन अविश्वास प्रस्तावों के ज़रिये गिरती हुई सरकारों को गिरावट से रोकने के अनेक उदाहरण हैं। अविश्वास प्रस्तावों के जरिये सरकारों को लेकर विश्वास तो पैदा होने का सवाल ही नहीं होता किन्तु सरकारों को आइना अवश्य दिखाया जा सकता है। सरकारें भी इस तरह के अविश्वास प्रस्तावों के ज़रिये अपनी उपलब्धियाँ गिनाने के साथ ही अपने भावी कार्यक्रमों के जरिये जनता के मन में बढ़ती आशंकाओं को निर्मूल करने की कोशिश करती हैं। दुर्भाग्य से इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ। जिस विषय को रेखांकित करने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था वो तो पार्श्व में चला गया और घटिया सियासत सतह पर आ गयी। सांसदों से लेकर प्रधानमंत्री तक व्यक्तिगत मान-अपमान में उलझे रहे।