विश्व बैंक की मदद से चंबल के बीहड़ों के समतलीकरण और इसे कृषि योग्य बनाने हेतु केंद्रीय कृषि मंत्रालय और मध्य प्रदेश सरकार के बीच पिछले दिनों संभावनाओं की तलाश में हुई मीटिंग और नई दस्यु सुंदरियों की खोज में यूपी पुलिस के बीहड़ों को खंगाल डालने की घटनाएँ एक साथ होती हैं। बेशक़ दोनों के बीच कोई प्रत्यक्ष रिश्ता न हो लेकिन इनका एक साथ होना यह इतना ज़रूर दर्शाता है कि युगों से चला आ रहा चम्बल के बीहड़ों का गंभीर संकट दोनों जगह बरक़रार है।
क्या चंबल की विकास योजना में कॉरपोरेट की साज़िश; डाकुओं की होगी वापसी?
- विचार
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- 24 Sep, 2020

विश्व बैंक की मदद से चंबल के बीहड़ों के समतलीकरण और इसे कृषि योग्य बनाने की कोशिश शुरू हुई है। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं और इस क्षेत्र में कार्यरत पर्यावरणविदों का आरोप है कि इस कथित विकास के पीछे क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कॉरपोरेट की घुसपैठ और स्थानीय किसानों के विनाश का षड्यंत्र छिपा है। कहा जा रहा है कि तबाह हो चुके किसान 'बाग़ियों' की नई फौज के रूप में जन्म लेंगे।
जुलाई के अंतिम सप्ताह में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने विश्व बैंक के वरिष्ठ प्रतिनिधि और राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ संयुक्त बैठक में ग्वालियर-चंबल संभाग की 3 लाख हेक्टेयर परती बीहड़ भूमि हेतु जिस प्लान के लिए समझदारी विकसित हुई है, उसकी ‘पार्लियामेंट्री प्रोजेक्ट रिपोर्ट’ पेश होनी है जिसके बाद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान उस पर अंतिम मुहर लगाएँगे। श्री तोमर मानते हैं कि यह परियोजना न सिर्फ़ क्षेत्र की भूमि को कृषि योग्य बनाएगी बल्कि क्षेत्रीय लोगों के लिए बड़े पैमाने पर रोज़गार भी मुहैया कराएगी। उन्होंने प्रस्तावित 'चंबल एक्सप्रेस' हाईवे को इस परियोजना से जोड़ते हुए कहा कि इस सब के पूरा हो जाने से समूचे बीहड़ क्षेत्र का बड़े पैमाने पर विकास होगा। इसके विपरीत स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं और इस क्षेत्र में कार्यरत पर्यावरणविदों का आरोप है कि इस कथित विकास के पीछे क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कॉरपोरेट की घुसपैठ और स्थानीय किसानों के विनाश का षड्यंत्र छिपा है। उनका यह मानना है कि अगर ऐसा सचमुच घटा तो तबाह हो चुके ये किसान 'बाग़ियों' की नई फौज के रूप में जन्म लेंगे और बीहड़ों में शांति हमेशा-हमेशा के लिए गुम हो जाएगी।