एनडीए यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से उसके सहयोगी दल अलग क्यों होते जा रहे हैं? इनमें शिरोमणि अकाली दल और शिवसेना जैसे बीजेपी के सबसे पुराने सहयोगी दल भी शामिल हैं जिन्हें हर सुख-दुख में बीजेपी का साथी समझा जाता रहा था। दो दिन पहले ही कृषि विधेयकों (अब क़ानून) पर एनडीए का साथ छोड़ने वाले शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल की मानें तो एनडीए में सहयोगी दलों की बात ही नहीं सुनी जाती है। बादल ने साफ़ तौर पर कहा है कि एनडीए सिर्फ़ नाम का है। कुछ ऐसे ही आरोप शिवसेना और टीडीपी ने भी तब लगाए थे जब उन्होंने एनडीए का साथ छोड़ा था। तो सवाल है कि क्या सहयोगी दलों के साथ बीजेपी 'मनमानी' करती है या फिर इन क्षेत्रियों दलों की अपनी कोई और सियासी मजबूरी है?