लोकतंत्र की परिकल्पना हज़ारों वर्षों पुरानी है। फ़िलहाल इससे बेहतर राज्य-व्यवस्था अब तक नहीं सुझायी गयी है। यह ज़रूर कहा गया कि लोकतंत्र का विकल्प इसे 'बेहतर लोकतंत्र' बनाना ही हो सकता है। हालाँकि लोकतंत्र में भी कई ख़ामियाँ हैं। राजनीतिक विचारक प्लेटो ने लोकतंत्र की कुछ आधारभूत कमियों को भाँप कर आशंका जताई थी कि लोकतंत्र बहुसंख्यक की निरंकुशता का शिकार हो सकता है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जॉन टी. वेंडर्स का मानना है कि बहुसंख्यक की धौंस तानाशाही जैसा ही है। तो क्या वर्तमान समय की प्रजातांत्रिक व्यवस्था इन अवलोकनों से परे है?