लोकतंत्र की परिकल्पना हज़ारों वर्षों पुरानी है। फ़िलहाल इससे बेहतर राज्य-व्यवस्था अब तक नहीं सुझायी गयी है। यह ज़रूर कहा गया कि लोकतंत्र का विकल्प इसे 'बेहतर लोकतंत्र' बनाना ही हो सकता है। हालाँकि लोकतंत्र में भी कई ख़ामियाँ हैं। राजनीतिक विचारक प्लेटो ने लोकतंत्र की कुछ आधारभूत कमियों को भाँप कर आशंका जताई थी कि लोकतंत्र बहुसंख्यक की निरंकुशता का शिकार हो सकता है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जॉन टी. वेंडर्स का मानना है कि बहुसंख्यक की धौंस तानाशाही जैसा ही है। तो क्या वर्तमान समय की प्रजातांत्रिक व्यवस्था इन अवलोकनों से परे है?
क्या 'भीड़तंत्र' से कमज़ोर नहीं होगा लोकतंत्र?
- पाठकों के विचार
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- 21 Aug, 2019
क्या बिना आदर्श न्याय व्यवस्था के आदर्श लोकतंत्र हो सकता है? भीड़तंत्र क्या लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक नहीं है? इसे कैसे मज़बूत किया जा सकता है?

कुछ आशंकाओं को लेकर राज्य की असीमित शक्तियों को काबू में करने के लिए विचारकों ने सुझाया है कि न्यायपालिका, क़ानून बनाने तथा उसे लागू करने वाली संस्था को एक-दूसरे अलग होना चाहिए। राजनीतिक विचारक मॉन्टेस्क्यू के अनुसार ऐसा इसलिए ज़रूरी था क्योंकि 'व्यक्तिगत स्वतंत्रता' सुनिश्चित की जा सके। इसीलिए सत्ता के एक जगह सिमटने के बजाय सत्ता के विकेंद्रीकरण की बात की जाती रही है और इसमें न्यायपालिका की ख़ास अहमियत है। विचारक लास्की का मानना था कि न्यायपालिका का दायित्त्व सिर्फ़ क़ानून की व्याख्या तक सीमित नहीं होना चाहिए। लेकिन सवाल है कि अंतिम लाइन कहाँ खींचनी है?