दो-ढाई हफ़्ते से मेरा लिखना-पढ़ना बंद-सा था। अपने यू-ट्यूब कार्यक्रमों से भी दूर था। बाहरी बंदिश न होने के बावजूद कुछ लिख-पढ़ या सार्वजनिक तौर पर बोल न पाने की अशक्तता या मजबूरी कितनी भयानक होती है, लगातार इसे शिद्दत के साथ महसूस किया। पर अब धीरे-धीरे अपने काम-काजी जीवन में वापसी हो रही है।

प्रतीकात्मक तसवीर
देश में चिंता की कई वजहें हैं। लेकिन सबसे चिंताजनक स्थिति है कि आज हमारा समाज पूरी तरह विभाजित है। उसका बड़ा हिस्सा अपने ही सामाजिक और राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध काम करने वालों के लिए तालियाँ बजा रहा है। ऐसे भटके हुए समाज को बटोरना, समझाना और फिर सुसंगत सामाजिक-राष्ट्रीय मुद्दों पर संगठित करना कोई आसान काम नहीं।
इस दरम्यान देश-दुनिया और अपने आसपास काफ़ी कुछ हुआ, लेकिन चाहते हुए भी लिखना या बोलना संभव नहीं था। सिर्फ़ सोचता रहा। आदमी भी अद्भुत जीव है, किसी मजबूरी में वह चाहे जितना निष्क्रिय या शिथिल हो पर सोचना बंद नहीं करता। ज़िंदगी जब तक साथ रहती है, वह सोचता रहता है।
बीते दिनों की कुछ बड़ी घटनाओं में कुछेक पर लिखने का इरादा है। पर कौन जाने, आगे क्या-क्या होगा और कितना अच्छा या कितना भयावह होगा, जिससे बीते दिनों के तमाम घटनाक्रम पीछे छूट जाएँ। इसलिए एक-एक घटनाक्रम पर सिलसिलेवार लिखने के बजाय मैं इस बार अपने कॉलम में सिर्फ़ कुछ ‘आब्जर्वेशन’ दर्ज कर रहा हूँ।