देखना होगा कि कांग्रेस हाईकमान के किसी भी नेता को चेहरा ना बनाने के फैसले का क्या कोई असर पंजाब में कांग्रेस के चुनाव प्रचार अभियान पर पड़ता है या नहीं।
पंजाब में पिछली बार कांग्रेस को अच्छी कामयाबी मिली थी लेकिन इस बार पार्टी के अंदर चल रहे झगड़ों, अमरिंदर सिंह की बगावत और किसानों के मैदान में उतरने के कारण उसके सामने चुनौतियां बेहद ज्यादा हैं।
सिद्धू के सीएम चन्नी के साथ खुलकर भिड़ने, अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ भूख हड़ताल पर बैठने का एलान करने और सुनील जाखड़ को लेकर टिप्पणी करने से कांग्रेस हाईकमान भी परेशान है।
कांग्रेस नेतृत्व ने पंजाब के बड़े नेताओं को जिम्मेदारियां सौंप दी हैं और इसका सीधा मतलब यही है कि वे आपसी रार भुलाकर पार्टी को चुनाव जिताने के काम में जुट जाएं।
पंजाब में तीन महीने के अंदर विधानसभा चुनाव होने हैं और उससे ठीक पहले अमरिंदर सिंह के पार्टी बनाने और कुछ नेताओं के उनके साथ जाने से क्या कांग्रेस कमजोर होगी?