ढोल-तांसे बजा-बजा कर गुज़रे 3 सालों में बनाया गया लॉ एंड ऑर्डर की 'यूएसपी' का गुब्बारा इतनी बुरी तरह फुस्स हो जायेगा, यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने कभी इसकी कल्पना नहीं की होगी। कानपुर में हुए 8 पुलिसकर्मियों के नरसंहार ने पूरे प्रदेश की जनता के बीच विपक्ष के इस 'नैरेटिव' की प्राण प्रतिष्ठा करा दी है- ‘यूपी में जंगल राज है।' विकास दुबे और उसके गैंग का कृत्य सिर्फ़ एक अपराधी द्वारा अपराध की नियत से पुलिस पर किये गए हमले की हिंसक कार्रवाई मात्र नहीं है, बल्कि इसे राजनेताओं, पेशेवर अपराधियों और नौकरशाही के ‘पवित्र’ गठजोड़ की घृणित संघटना के रूप में देखा जाना चाहिए। यूपी में निकटवर्ती दशकों में इसका तेज़ी से प्रसार हुआ है। हाल के सालों में यह जम कर पुष्प-पल्लवित हुई है।
योगी जी, जवाब दो - लिस्टेड अपराधियों में विकास दुबे का नाम क्यों नहीं था?
- उत्तर प्रदेश
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- 7 Jul, 2020

न विकास दुबे पुलिस नरसंहार को भुलाया जा सकता है और न उनकी पृष्ठभूमि में जाने-अनजाने में की गयी कानपुर पुलिस की नादानियों को। आने वाले समय में शासन को इस बात का जवाब भी देना होगा ही कि क्यों विकास दुबे के उस मकान को ज़मींदोज़ कर दिया गया जिसमें राज्य के एक प्रमुख सचिव के नाम से रजिस्टर्ड कार खड़ी थी और जहाँ अनगिनत हथियार और दूसरे सबूत मौजूद थे।
यूपी के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह कहते हैं ‘यहाँ हालात राजनीति के अपराधीकरण से ऊपर उठकर अपराध के राजनीतिकरण के बन चुके हैं। यह बड़ा विकट और गंभीर पेंच है और जिसकी जड़ें अभी और गहरे जाने वाली हैं।’ उधर प्रदेश के ही पूर्व एडिशनल डीजीपी बृजेन्द्र सिंह का कहना है ‘यह कास्ट, कम्युनलिज़्म, करप्शन, कॉरपोरेट और पॉलिटिक्स का पाशविक गठबंधन है जिसके नतीजे निरपराध पुलिस वालों की जान देकर पूरे हुए हैं लेकिन ये अभी जल्दी टूटने वाला नहीं।’