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जिन्हें हिंद पर नाज है वो कहाँ हैं?

भारतीय सभ्यता को 5 हज़ार वर्ष बीत चुके हैं और यह दुनिया की सबसे प्रारंभिक सभ्यताओं में से एक है। इस प्राचीनता पर हमें गर्व भी है। पर हमेशा अपने अतीत पर गर्व करने के लिए आवश्यक ऊर्जा कायम रख सकें, इसके लिए ज़रूरी है कि वर्तमान बेहतर रहे, जो कि निश्चित रूप से आज संकट में है चाहे कोई स्वीकार करे या न करे।

जब तक देश में अंग्रेजों का शासन था, यह लगता रहा कि दुर्गति के कारण सिर्फ़ ये अंग्रेज हैं, एक दिन आया जब अंग्रेजों को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ने खदेड़ के बाहर कर दिया और आशा बंधी कि अब हम विकास और उन्नति के पथ पर आगे बढ़ते रहेंगे। परंतु राजनैतिक स्वतंत्रता हमेशा सामाजिक उन्नति नहीं लाती उसके लिए ज़रूरी तत्व था आर्थिक सुधार, सही शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ और अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता। स्वतंत्रता के उपरांत गुलाम भारत के बाद की स्थिति की तकलीफ महान कवि बाबा नागार्जुन को अंदर तक कचोट गयी और (सन् 1952) में उन्होंने लिखा- 

“कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास 

कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास 

कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त 

कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त”। 

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समय आगे बढ़ा और हम 21वीं सदी में आ गए हैं और अब गर्व के लिए तथ्य तथा परिणाम चाहिए! सरकारें बदलती रहीं “योजना” का स्वरूप “नीति” ने ले लिया पर गरीबी और दुर्दशा ने ज़्यादातर भारतीयों का पीछा नहीं छोड़ा।

आज का विश्व खुद का आँकलन “सूचकांकों” के आधार पर करता है; ज़रूरी नहीं कि हर सूचकांक को बनाई जाने वाली पद्धति पूर्णतया समावेशी हो, पर तथ्यों की नींव पर खड़े इन सूचकांकों को पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता! सत्ता पर पुनरागमन की आकांक्षा, जैसा कि सामान्यतया सरकारें चाहती हैं, को ध्यान में रखते हुए कुछ सूचकांकों जैसे ‘ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस’ (जिसकी विसंगतियों के कारण इसको जारी करने वाली संस्था विश्व बैंक ने स्वतः ही इसे समाप्त कर दिया) का तो उत्सव मनाते हैं और कुछ सूचकांकों (पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक) को नकारने से पहले झिझकते भी नहीं!

विभिन्न वैश्विक आँकड़ों को जानकर भारतीय लोग अपनी वर्तमान स्थिति और प्राचीन गौरव के बीच के साम्य को पुनः जांच सकते हैं।

पहला महत्वपूर्ण सूचकांक है- “विश्व प्रसन्नता सूचकांक”। इसकी 2021 की रिपोर्ट के अनुसार भारत को 149 देशों में 139वाँ स्थान प्राप्त हुआ है!

सूचकांक को निर्मित करने के लिए जिन तथ्यों को आधार बनाया गया उनमें असमानता, जीवन प्रत्याशा, सामाजिक स्वतंत्रता, उदारता और सबसे महत्वपूर्ण जनता का सरकार पर भरोसा। अब कहने की ज़रूरत नहीं कि हम अपनी स्थितियों और सरकार से कितने प्रसन्न हैं! यहाँ तक कि पड़ोसी देश बांग्लादेश (101वाँ) और पाकिस्तान (105वाँ) भी भारत से आगे हैं! हालत यह है कि सबसे दुःखी देश अफ़ग़ानिस्तान (149वाँ) से हम भारत के लोग बस 10 स्थान ही बेहतर हैं। ये सूचकांक संयुक्त राष्ट्र के ग़ैर लाभकारी संगठन ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट सोलूशन्स नेटवर्क (SDSN)’ द्वारा जारी किया जाता है। 

विचार से ख़ास

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी किया जाने वाला ‘करप्शन परसेप्शन इंडेक्स’ 2020 में भारत को 180 देशों में 86वां स्थान प्राप्त हुआ है, ये तब है जब भारत में हर सरकार ईमानदार सरकार होने का दावा करते हुए कभी ‘शाइनिंग इंडिया’ कभी ‘भारत निर्माण’ तो कभी ‘अच्छे दिन’ का दम्भ भरते नज़र आते हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत, एशिया प्रशांत क्षेत्र में सबसे ख़राब स्थितियों वाले देश में शामिल है जहां सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों के अधिकारियों को धमकी और यहाँ तक कि हत्या के भी मामले सामने आ रहे हैं।

अपाला, घोषा, गार्गी और मीरा जैसी शिक्षित और स्वतंत्र नारियों के गौरव वाला देश आज की 21वीं सदी में जारी ‘वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक’ 2021 में 156 देशों के मुक़ाबले सिर्फ़ एक वर्ष में ही 28 स्थान खिसककर 140वें स्थान पर आ गया है। आख़िर वो क्या है जो राष्ट्र की महिलाओं के साथ किया जा रहा है? वो क्या है जो असल में किया जाना चाहिए? कोई नई योजना निश्चित रूप से इसका जवाब नहीं है। ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’, वन स्टॉप सेंटर, उज्ज्वला योजना जैसी पहलों ने महिलाओं को कहाँ पहुँचाया है, यह सूचकांक इसका उत्तर दे रहा है। 

indicators show india social economical condition - Satya Hindi
प्रतीकात्मक तसवीर।

एक वर्ष में ही महिलाओं के राजनैतिक सशक्तिकरण में लगभग 14% की गिरावट हुई है, आर्थिक भागीदारी में लैंगिक अंतराल 3% बढ़ गया है, देश में आधे से अधिक महिलाएँ व बच्चे एनीमिया के शिकार हैं (NFHS-5), स्वास्थ्य और उत्तरजीविता के मामले में इस सूचकांक में भारत की स्थिति 156 देशों के मुक़ाबले 155वीं है। दुनिया में जितनी बच्चियाँ जन्म के बाद लापता हो जाती हैं उसका 95% हिस्सा सिर्फ़ भारत और चीन में है। महिलाओं की वार्षिक आय पुरुषों की आय का लगभग 20% ही है, भारत देश अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के 16% से बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है।

हालाँकि कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश चुनाव में 40% महिला उम्मीदवारों को उतारने का फ़ैसला तो किया है पर देखना यह है कि महिलायें कब इस देश में देश के लिए मुद्दा बनती हैं और कब सरकार इस गिरावट पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ करती है।

अब जरा उस संस्था या स्तम्भ की बात करें जिसने भारत को आज़ादी दिलाने में महती भूमिका अदा की अर्थात पत्रकारिता। महात्मा गांधी स्वयं पत्रकार थे। तिलक, लाला लाजपतराय, मालवीय जी और पंडित नेहरू सभी कोई न कोई पत्र निकालते थे और जनमानस को अंग्रेजी सरकार के मंसूबों से अवगत कराते थे पर कभी, यदि इमरजेंसी के कुछ समय को छोड़ दिया जाय तो, भारत ऐसी दुर्दशा को प्राप्त नहीं हुआ जैसी आज है। कॉर्पोरेट के दखल और सरकारी दबाव के चलते लोकतंत्र का यह चौथा खंभा ‘अब टूटा की कब टूटा’ की स्थिति में है, ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक’ 2021 में भारत खिसकते खिसकते 180 देशों के सामने 142वें स्थान पर आ गिरा। 138 करोड़ लोगों की आबादी वाला देश और प्रेस स्वतंत्रता का ये स्तर!

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आखिर प्रेस किसकी बातें उठा रहा है? छात्र, ग़रीब, दलित, महिला विपक्ष किसकी बातें? सूचकांक की स्थिति घोर सरकारी दबाव व दखल की स्थिति प्रदर्शित करता है।

तथाकथित शांतिपूर्ण देश भारत, वैश्विक शांति सूचकांक में 135वें तो स्वच्छता मिशन के लिए प्रसिद्ध भारत येल व कोलम्बिया यूनिवर्सिटी द्वारा जारी ‘पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक’ में 180 देशों के मुक़ाबले 168वें स्थान पर है, पर्यावरण का यह स्थान हर नागरिक को यह बताता है कि खुलेआम उसके अनुच्छेद 21 के तहत मिले स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार का हनन हो रहा है। साथ ही यह भी कि भारत के नागरिक किस गुणवत्ता की साँस ले रहे हैं। क्या खा रहे हैं और सरकारें कितना जहरीला पानी उन्हें पिला रही हैं।

लाखों भारतीयों ने भारत के स्वाधीनता संग्राम के दौरान अपनी जान गँवाई और अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत औपनिवेशिक शासन से आज़ाद हुआ। असहनीय पीड़ा झेलते हुए जो भारत बना उसकी बुनियाद में लोकतंत्र को रखा गया था। आबादी और विविधता को देखते हुए भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बना लेकिन आज भारत अपने लोकतंत्र के मूल्यों को बचाने में अक्षम  नज़र आ रहा है। इस लोकतंत्र के हर स्तम्भ को चोट पहुँचाई जा रही है और यह हम ‘वैश्विक लोकतंत्र सूचकांक’ के माध्यम से सीधे समझ सकते हैं। 

इस सूचकांक के 2020 के संस्करण में भारत 53वें स्थान पर है। ईकोनॉमिस्ट इन्टेलिजन्स यूनिट (EIU) द्वारा जारी इस सूचकांक में 165 देशों व 2 स्वतंत्र क्षेत्रों को शामिल किया गया है। 

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संसद क़ानून बनाने के लिए सर्वोच्च संस्था है लेकिन आज क़ानूनों का स्थान ‘अध्यादेश’ (अनुच्छेद-123) लेते जा रहे हैं। विवादास्पद कृषि क़ानूनों से लेकर ईडी और सीबीआई के निदेशकों के कार्यकालों को बढ़ाने के लिए संसद से पहले अध्यादेश से शुरुआत की गई है। जबकि सर्वोच्च न्यायालय कूपर वाद (1970) राष्ट्रपति के इस अधिकार पर प्रश्नचिन्ह लगा चुका है और अब यह स्थापित न्यायिक तथ्य है कि बिना ‘तत्काल कार्यवाही’ की आवश्यकता के अध्यादेश संविधान का अतिक्रमण ही है। लोकतंत्र की रखवाली करने वाली संसद को यदि इस तरह बाइ-पास किया जाता रहा तो जल्द ही भारत अंतिम पायदान के पास होगा।

जब पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी के काल में भुखमरी बढ़ी और अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते देशों ने भारत को अनाज देने में आनाकानी की, तो प्रधानमंत्री ने महान वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन के सहयोग से 60 के दशक में ‘हरित क्रांति’ का शुभारंभ किया तब ऐसा लगा कि अब कभी भुखमरी नहीं होगी परंतु आज ‘वैश्विक भुखमरी सूचकांक’ 2021 में भारत को मिला 101वां स्थान निराशा की कहानी बयान करता है। पिछले वर्ष के मुक़ाबले भारत 7 स्थान नीचे फिसल गया। 

एक तरफ़ कुछ उद्योगपति प्रतिदिन अपनी आय में एक हज़ार करोड़ रुपए जोड़ते रहे तो दूसरी तरफ़ भारत भुखमरी में 101वें स्थान पर आ गिरा। भारत में भुखमरी इसी विसंगति का बाइ-प्रोडक्ट है।

सामाजिक प्रगति सूचकांक 2020 में 117वां और नवाचार सूचकांक 2021 में 57वां स्थान भारत को सामाजिक और तकनीकी रूप से पीछे धकेलने वाले संकेतकों की ओर इशारा करता है। जहां सामाजिक प्रगति सूचकांक स्वास्थ्य, व्यक्तिगत अधिकार, समावेशिता, शिक्षा, पोषण एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसे मापांकों पर आधारित है वहीं नवाचार सूचकांक इनोवेशन इनपुट, आउट्पुट, मानवपूंजी व शोध आदि से नापा जाता है। 

‘वैश्विक शांति सूचकांक’ 2021 में 135वां स्थान भारत की आंतरिक सामाजिक-आर्थिक स्थिरता और ‘इंडेक्स ऑफ वीमेन एंटरप्रेन्योर’ 2020 में 54 देशों में 49वाँ स्थान भारत में महिलाओं को आगे बढ़ने देने के खोखले नज़रिये पर प्रश्न उठाता है। इतने बड़े देश, जिसमें अपार बौद्धिक संपदा है, जो बुद्ध का देश है, जिसमें ज्ञान की कमी नहीं रही! 

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निश्चित रूप से देश का युवा सरकारी नीतियों का ही खामियाजा भुगत रहा है कि देश ‘अंतरराष्ट्रीय बौद्धिक संपदा सूचकांक’ 2021 में 53 देशों में 40वां स्थान प्राप्त कर सका।

यद्यपि भारत ग्लोबल फायर पावर द्वारा जारी ‘सैन्य शक्ति रैंकिंग’ 2021 में चौथे स्थान पर आ गया है और विश्व का तीसरा सबसे बड़ा रक्षा ख़र्चकर्ता देश बन गया है (परंतु देश में निर्माण करके नहीं, ‘आत्मनिर्भर’ बनकर नहीं बल्कि रूस और अमेरिका जैसे देशों से हथियार खरीद कर) इसमें आप का मन करे तो गौरव के अंश खोज सकते हैं। पर वो देश जहां लोग पर्याप्त अनाज के बावजूद भूखे मर जाएं, लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल करने में हिचकिचाएं, जहां 60 करोड़ लोगों को साफ पानी न मिले (नीति आयोग की रिपोर्ट), लोकतंत्र की दौड़ में हर गरीब खुद को पिछड़ता देखे, भाषणों और वादों की संस्कृति से पेट भर जाएं, तब ऐसे में हर गौरव चाहे वो प्राचीन हो या नवीन फीका ही लगता है।

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वंदिता मिश्रा
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