न्याय और न्यायाभास। न्यायाभास से बेहतर और सटीक होगा- इन्साफ़ का धोखा। यानी आपको जान पड़े कि इंसाफ मिल रहा है और वह कभी हाथ न आए। जो सिद्दीक़ कप्पन के साथ किया गया, उसे इन्साफ़ का मज़ाक ही कहेंगे।
क्या आपको उत्तर प्रदेश में पंचायत और स्थानीय निकाय के चुनावों के बाद की हिंसा और उसमें हुई हत्याओं के बारे में कुछ मालूम है? अगर नहीं तो क्यों, यह आपको पूछना चाहिए।
चुनाव परिणाम घोषित होने के समय से ही आशंका व्यक्त की जा रही थी कि बंगाल की परिपाटी के अनुसार जीत या हार की हालत में भी हिंसा होगी। परिणाम घोषित होते वक्त ही इसे लेकर चेतावनी दी जा रही थी।
कल रात से एक वीडियो तेज़ी से घूम रहा है। त्रिपुरा के एक विवाह समारोह का है। एक उत्साही प्रशासनिक अधिकारी विवाह स्थल पर पहुँच कर रुखाई से सबको विवाह स्थल से हाँक कर बाहर निकाल रहा है। त्रिपुरा में कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए बड़े जमावड़े पर पाबंदी है।
कोरोना से लड़ने में सरकार क्यों नाकाम है, उसने क्यों पहले से तैयारी नहीं की, ये सवाल हैं। लेकिन उससे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह सरकार चुनते वक्त किसी ख़ास समुदाय के प्रति नफ़रत नहीं थी? सवाल उठा रहे हैं लेखक अपूर्वानंद।
पश्चिम बंगाल के श्यामपुकुर विधान सभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार संदीपन बिस्वास चुनाव प्रचार करते हुए वाम दलों के नेताओं के घर गए और उनसे अपने पक्ष में मतदान की प्रार्थना की।
अन्ना हज़ारे के आंदोलन में लोकपाल क़ानून जिस तरह बना उससे सरकार को बिना चर्चा क़ानून बनाने के रास्ते मिले। बहुमत से क़ानून बन जाता है। विचार-विमर्श की क्या ज़रूरत?
फिर छत्तीसगढ़ से सीआरपीएफ़ के जवानों के मारे जाने की ख़बर आ रही है। लिखते वक़्त 22 जवानों की मौत का पता चला है। संख्या बढ़ सकती है। ये सब माओवादी विरोधी अभियान में हिस्सा ले रहे थे।
अनुयायी एक अकेले बच्चे पर मंदिर के प्रांगण में हिंसा कर सकते हैं, उसके गाली गलौज कर सकते हैं क्योंकि वह पानी पीने वहाँ आ गया था। उसे क्या पता था कि यहाँ हृदय घृणा से जलकर राख हो चुके हैं।
हरियाणा सरकार ने निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय आबादी के लिए 75% जगहें आरक्षित करने का निर्णय लिया है। यह निर्णय संविधान विरुद्ध तो है ही, राजनीतिक और सामाजिक रूप से यह कड़वाहट और उत्तेजना पैदा करने वाला है।
2002 की हिंसा ने गुजरात में विभाजन मुकम्मल कर दिया। इस हिंसा ने हम जैसे बहुत से ग़ैर गुजरातियों का परिचय गुजरात से करवाया। गुजरात में जो हो रहा था, वह हमारे राज्यों में नहीं हो सकता, इस खुशफहमी में भी हम काफ़ी वक़्त तक रहे।
यह हुक्म सिर्फ विश्वविद्यालयों या शिक्षण संस्थानों के लिए नहीं है। शोध संस्थान, प्रयोगशालाएँ भी इसके घेरे में हैं। इस परिपत्र का अर्थ होगा व्यावहारिक रूप में किसी भी अकादमिक विचार विमर्श का अंत।
कृषि क़ानून और किसान आन्दोलन पर क्यों सरकार ढिठाई से बिना पलक झपकाए उस सदन में झूठ बोल रही है, जहाँ संसद को गुमराह करना जनप्रतिनिधियों के विशेषाधिकार का हनन है?
नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती पर जब ममता बनर्जी बोलने खड़ी हुईं तो श्रोताओं के बीच से ’जय श्री राम’ के नारे लगाए जाने लगे। वहाँ मौजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन हुल्लड़बाजों को नहीं रोका।
मार्टिन नीमोलर राष्ट्रवादी होने के साथ-साथ यहूदी-विरोधी भी थे। उन्होंने हिटलर का उत्साहपूर्वक स्वागत किया था। पर बाद में उन्हें अपराधबोध हुआ कि यहूदियों के नरसंहार के पीछे उन जैसे लोगों की चुप्पी भी थी। पढ़ें अपूर्वानंद का लेख।
सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की पीठ से जो सरकार के ख़िलाफ़ गर्जन-तर्जन हो रहा था, उसे फटकार सुनाई जा रही थी, उसका खोखलापन तुरत उजागर हो गया। पूरी सुनवाई किसानों के हित, देश की भलाई का एक कमज़ोर स्वाँग भर थी।
पिछले 6 वर्षों में न तो राष्ट्र ध्वज और न राष्ट्रगीत के मायने इस देश में सबके लिए एक रह गए हैं। एक पूरी आबादी को अपमानित करने के हथियार के तौर पर इनका इस्तेमाल किया जा रहा है। इसकी वजह बता रहे हैं लेखक अपूर्वानंद।
क्या यह तख्ता पलट की कोशिश थी, हथियारबंद विद्रोह था या सिर्फ़ हिंसक विरोध प्रदर्शन था? अमेरिका की सर्वोच्च विधायिका की इमारत कैपिटल हिल पर राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के समर्थकों के हमले के बाद अमेरिका में यह तकनीकी और क़ानूनी बहस शुरू हो गई है।