ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने का ऐलान किया है। यह सजा किसी अदालत की नहीं, बल्कि एक धार्मिक गुरु की है। अपराध? राहुल गांधी ने संसद में खड़े होकर कहा, “मैं मनुस्मृति को नहीं मानता, मैं संविधान को मानता हूं।”
लेकिन सवाल उठता है- क्या हिंदू होने के लिए मनुस्मृति को मानना अनिवार्य है? क्या शंकराचार्य को किसी को धर्म से बाहर करने का अधिकार है? क्या हिंदू धर्म की मूल मान्यताएँ इस फैसले के साथ खड़ी हैं? और क्या यह बयान आदि शंकराचार्य की परंपरा और सनातन दर्शन के अनुरूप है?
राहुल गांधी और मनुस्मृति विवाद
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस के प्रमुख चेहरा राहुल गाँधी इन दिनों सामाजिक न्याय की लड़ाई को अपनी राजनीति का केंद्र बना रहे हैं। जिन्हें वर्ण-व्यवस्था में शूद्र माना गया और जिनमें तमाम ओबीसी वर्ग की संवैधानिक सूची शामिल हैं, राहुल गाँधी उनके लिए न्याय की वकालत करते हैं। इसी संदर्भ में, कुछ महीने पहले उन्होंने संसद में एक बयान दिया, जो इस विवाद का आधार बना। उन्होंने कहा, “मैं संविधान को मानता हूं, जो सभी को समान मानता है। मैं मनुस्मृति को नहीं मानता, जो असमानता को बढ़ावा देती है।”