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अयोध्या: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एक भी धर्मग्रंथ राम का जन्मस्थान नहीं बता सका

पिछली कड़ी में हमने जाना कि सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में अपना फ़ैसला किस आधार पर दिया है। आधार था कि इस विवादित संपत्ति पर किस पक्ष का ज़्यादा लंबा और विस्तृत नियंत्रण रहा। आज हम उनमें से कुछ सबूतों के बारे में बात करेंगे जिनके बल पर कोर्ट ने यह निर्णय किया और जाँचेंगे कि क्या वे सबूत पर्याप्त थे।
नीरेंद्र नागर

पिछली कड़ी में आपने पढ़ा कि किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आया। इस कड़ी में हम धार्मिक सबूतों की बात करेंगे।

शुरुआत हमें 1528 से करनी होगी जब यह मसजिद बनी या (कुछ स्रोतों के अनुसार) उसका बनना शुरू हुआ। तब यहाँ क्या स्थिति थी? क्या तब वहाँ राम का कोई मंदिर था?

इसके बारे में हमें अगर कोई जानकारी दे सकता है तो वही जो उस दौर में वहाँ रहा हो या वहाँ गया हो। कोर्ट की कार्रवाई में इस सिलसिले में दो नाम आए। एक, गुरु नानक का, दूसरा गोस्वामी तुलसीदास का।

कोर्ट ने गुरु नानक की जन्म साखियों का उल्लेख करते हुए लिखा है -

‘यह सच है कि जन्म साखी के जो अंश दस्तावेज़ के रूप में पेश किए गए हैं, उनमें ऐसी कोई सामग्री नहीं है जिससे राम जन्मभूमि की सही-सही जगह का पता चलता हो। लेकिन गुरु नानक देव जी का राम जन्मभूमि के दर्शन के लिए अयोध्या आना एक घटना है जिससे पता चलता है कि 1528 से पहले भी तीर्थयात्री जन्मभूमि के दर्शन के लिए जाया करते थे। 1510-11 ईसवी में गुरु नानक देव जी की यात्रा और उनका भगवान राम की जन्मभूमि के दर्शन करना हिंदुओं की आस्था और विश्वास को साबित करते हैं।’ (देखें - सुप्रीम कोर्ट का निर्णय, परिशिष्ट, पैरा 71)

अयोध्या विवाद पर ख़ास

सवाल - गुरु नानक की जन्म साखियों से क्या पता चला/पता नहीं चला?

जवाब - पता चला कि राम का जन्मस्थान अयोध्या में था लेकिन कहाँ था, यह पता नहीं चला।

अब आगे। कहा जाता है कि तुलसीदास उसी दौर में पैदा हुए थे जब बाबरी मसजिद बनी थी। लेकिन तुलसीदास के जन्म की तारीख़ पक्की नहीं है। उनके जन्मवर्ष के बारे में चार दावे हैं - 1497, 1511, 1523 और 1543। उनकी मृत्यु के बारे में आम राय है कि वह साल 1623 का था। यदि तुलसीदास के जन्मवर्ष का निर्धारण करने के लिए पहले के तीन साल मान लिए जाएँ तो तुलसीदास बाबरी मसजिद बनने से पहले पैदा हुए और यदि आख़िर का साल माना जाए तो वे मसजिद बनने के बाद पैदा हुए। चाहे जो हो, वे 1623 तक जीवित रहे और कहा जाता है कि मसजिद 1528 में बनी। ऐसे में क्या यह हैरत की बात नहीं है कि उन्होंने अपनी किसी भी रचना में राम जन्मस्थान के बारे में कोई वर्णन नहीं किया है कि वह कहाँ है, कैसा है या क्या उसको तोड़कर बाबर ने कोई मसजिद बनाई थी। इस बारे में सोशल मीडिया पर जो आठ दोहे चल रहे थे और जिन्हें हमने पहले के एक पोस्ट में फ़र्ज़ी साबित कर दिया था, उनके बारे में किसी भी अदालत ने नोटिस नहीं लिया।

(पढ़ें - क्या तुलसी के दोहों में लिखा है राम मंदिर तोडे़ जाने का क़िस्सा?)

तुलसीदास के बारे में हिंदू पक्ष ने कोर्ट के सामने जो साक्ष्य रखा था, उससे केवल यही पता चलता है कि राम अयोध्या में पैदा हुए थे। उन्होंने उत्तरकांड में लिखा है-
supreme court ayodhya verdict religious books evidence - Satya Hindi

इन चौपाइयों का अर्थ आपने देख ही लिया।

चौपाइयों में जन्मभूमि का उल्लेख है लेकिन किसी जन्मस्थली के रूप में नहीं बल्कि नगर के रूप में। इसमें राम कहते हैं - लोग वैकुंठ की बड़ाई करते हैं लेकिन मुझे अवधपुरी ज़्यादा प्रिय है क्योंकि यह मेरी जन्मभूमि है। इस नगरी का परिचय देते हुए वह कहते हैं कि इसकी उत्तर दिशा में सरयू नदी बहती है।

सवाल - तुलसीदास की इन चौपाइयों से क्या पता चला/पता नहीं चला?

जवाब - पता चला कि राम का जन्म अवधपुरी (अयोध्या) में हुआ था जिसके उत्तर में सरयू नदी बहती थी लेकिन दशरथ का महल कहाँ था या राम की जन्मस्थली कहाँ थी, यह पता नहीं चला।

कुछ लोग इस सिलसिले में वाल्मीकि का भी नाम लेते हैं कि शायद उनके ग्रंथ में राम जन्मस्थान के बारे में कोई उल्लेख हो। वाल्मीकि रामायण कब लिखी गई, इसके बारे में अलग-अलग दावे हैं। कोर्ट में एक एक्सपर्ट ने इसका काल 300-200 ईसा पूर्व बताया है। कुछ ने और पहले का बताया। कोर्ट ने उसके रचनाकार पर ज़्यादा माथा नहीं खपाया क्योंकि उसको तो केवल यह जानना था कि वाल्मीकि रामायण राम के जन्मस्थान के बारे में क्या कुछ रोशनी डालती है।

हिंदू पक्ष ने अपने दावे के समर्थन में वाल्मीकि रामायण के इस श्लोक का हवाला दिया था जो बालकांड के 18वें सर्ग से है। नीचे देखिए श्लोक और उसका अर्थ।

supreme court ayodhya verdict religious books evidence - Satya Hindi
आपने देखा, इसमें भी बस यही लिखा है कि जब राम का जन्म हुआ था तो नक्षत्रों की क्या स्थिति थी। लेकिन उनके जन्मस्थान या उसके आसपास के भवन, पर्वत या नदी के बारे में कुछ नहीं लिखा है।

सवाल - वाल्मीकि रामायण के इस श्लोक से क्या पता चला/पता नहीं चला?

जवाब - पता चला कि राम का जन्म अयोध्या में दशरथ के महल में कौशल्या की कोख से हुआ था, वे विष्णु के ही अवतार थे और जन्म के समय नक्षत्रों की क्या स्थिति थी। लेकिन दशरथ का महल कहाँ था या राम की जन्मस्थली कहाँ थी, या उसके आसपास क्या था, यह पता नहीं चला।

ऊपर की सामग्री के आधार पर जिन निष्कर्षों पर हम पहुँचे हैं, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज भी उन्हीं निष्कर्षों पर पहुँचे।इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज सुधीर अग्रवाल ने भी अपने आदेश में लिखा- 

वाल्मीकि रामायण और गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस तथा स्कंदपुराण आदि अन्य धार्मिक ग्रंथ केवल यह बताते हैं कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था और यह उनकी जन्मभूमि थी लेकिन (ये ग्रंथ) ऐसी किसी ख़ास जगह की तरफ़ इशारा नहीं करते जो उनकी जन्मस्थली कही जा सके। (देखें - सुप्रीम कोर्ट का निर्णय, पैरा 557)

सुप्रीम कोर्ट की अयोध्या बेंच में शामिल एक जज साहब का भी, जिन्होंने अपना नाम नहीं बताया है लेकिन निर्णय के अंत में एक परिशिष्ट जोड़ा है, यही निष्कर्ष है। वे लिखते हैं - 

यह सच है कि रामायण भगवान राम की जन्मस्थली के बारे में इससे ज़्यादा कोई विवरण नहीं देती कि उनका जन्म कौशल्या की कोख से अयोध्या में दशरथ के महल में हुआ था। (देखें - सुप्रीम कोर्ट का निर्णय, परिशिष्ट, पैरा 21)

ऊपर हमने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज सुधीर अग्रवाल की टिप्पणी पढ़ी कि कोई भी धर्मग्रंथ यह नहीं बताता कि राम की जन्मस्थली ठीक-ठीक कहाँ है। लेकिन यदि हम स्कंदपुराण को देखें तो उसमें इस जन्मस्थली की थोड़ी-बहुत जानकारी मिलती है। स्कंदपुराण के वैष्णव खंड के दसवें अध्याय ‘अयोध्या माहात्म्य’ में राम जन्मस्थान के बारे में भौगोलिक विवरण दिया गया है। श्लोक संख्या 18-19 में यह लिखा है।

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स्कंदपुराण के वैष्णव खंड के दसवें अध्याय ‘अयोध्या माहात्म्य’ के 18वें और 19वें श्लोक से हमें यह पता चला कि विघ्नेश्वर मंदिर के पूर्व, वशिष्ठ ऋषि के आश्रम के उत्तर और लोमश ऋषि के आश्रम के पश्चिम में राम जन्मस्थान स्थित है। काफ़ी उपयोगी जानकारी है। लेकिन दिक़्क़त यह है कि जिन विघ्नेश्वर मंदिर तथा वशिष्ठ और लोमश ऋषियों के आश्रमों की बात इसमें की गई है, वे सब आज की तारीख़ में कहीं नहीं हैं।

वैसे भी स्कंदपुराण 8वीं शताब्दी का है जैसा कि जज साहब मानते हैं और उसके बाद 1200 वर्ष हो गए हैं। ऐसे में उनका नष्ट होना स्वाभाविक है। लेकिन आज से 500 साल पहले यानी 1528 के आसपास क्या वे रहे होंगे? कौन बता सकता है इनके बारे में? गुरु नानक की जन्म साखियों में इन मंदिरों और आश्रमों के बारे में कुछ नहीं लिखा है। तुलसीदास जी ने भी इनके बारे में कोई जानकारी नहीं दी है। वाल्मीकि रामायण भी इस बारे में मौन है।

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लेकिन कुछ लोग हैं, विदेशी लोग जो इस बीच भारत आए और उन्होंने अयोध्या और राम जन्मस्थान आदि के बारे में विस्तार से लिखा। इन लोगों के लिखे को मुक़दमे में गवाही के तौर पर पेश भी किया गया। इनमें से एक सज्जन विलियम फ़िंच 1607-1611 के बीच भारत आए थे। एक और सज्जन जोज़फ़ टाइफ़नटेलर थे जो 1740 से लेकर 1785 में अपनी मृत्यु तक भारत में रहे। भारत प्रवास के दौरान उन्होंने अपना कुछ समय अयोध्या और आसपास के इलाक़ों में काटा और राम जन्मस्थान और बाबरी मसजिद के बारे में भी लिखा है। अगली कड़ी में हम पता करेंगे कि इन विदेशियों ने क्या राम जन्मस्थान के आसपास ये आश्रम या मंदिर देखे। अगर नहीं देखे तो भी क्या उन्होंने जन्मस्थान के बारे में कुछ लिखा है जिससे यह पता चलता हो कि जिस जगह पर बाबरी मसजिद खड़ी थी, वही राम का जन्मस्थान था।
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