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कैसे सुलझेगा दशकों पुराना एसवाईएल विवाद, हरियाणा-पंजाब फिर आमने-सामने

परेशानी यह है कि पंजाब के लोग राज्य में पहले से ही घट रहे जलस्तर के कारण हरियाणा को पानी नहीं देना चाहते। ऐसे में अगर सर्वोच्च अदालत हरियाणा के पक्ष में भी कोई बड़ा फ़ैसला दे भी देती है तो बहुत मुश्किल है कि पंजाब इसके लिए तैयार हो। हरियाणा की इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) और पंजाब की शिरोमणि अकाली दल (शिअद) बादल ने इस मुद्दे पर जमकर राजनीति की है। इस विवाद को अगर कोई सुलझा सकता है तो वह सिर्फ सुप्रीम कोर्ट है। 
पवन उप्रेती

बरसों से पंजाब और हरियाणा के बीच घमासान का केंद्र बने सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर का जिन्न एक बार फिर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बयान के बाद बाहर निकल आया है। अमरिंदर ने कहा है कि अगर एसवाईएल नहर बनी तो पंजाब जल उठेगा। अमरिंदर जैसे बेहद अनुभवी और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे होने के बाद भी उनके इस तरह के बयान से समझा जा सकता है कि यह मुद्दा पंजाब के लिए कितना गंभीर है। 

इस विवाद को समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना होगा। 1965 तक पंजाब और हरियाणा एक ही थे। 1966 में हरियाणा अस्तित्व में आया। तब पानी पर अधिकार पंजाब का था लेकिन नए बने राज्य को भी पानी चाहिए था, इसलिए हरियाणा के लोगों ने अपने हिस्से का पानी मांगना शुरू किया और यहीं से यह विवाद शुरू हुआ। 

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10 साल बाद यानी 1976 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने 24 मार्च को एक नोटिफ़िकेशन जारी किया, जिसमें कहा गया कि हरियाणा को सतलुज-यमुना लिंक नहर बनाकर 3.5 मिलियन एकड़ फ़ुट पानी दिया जाएगा। 

सतलुज नदी पंजाब में बहती है और यमुना हरियाणा में, इसलिए इसे सतलुज-यमुना लिंक नाम दिया गया। इसका सीधा अर्थ था कि सतुलज को यमुना नदी से जोड़ने के लिए एक नहर बनेगी।

इंदिरा ने किया शुभारंभ

8 अप्रैल, 1982 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एसवाईएल योजना का शुभारंभ पंजाब के पटियाला जिले के कपुरई गांव से किया। एसवाईएल की ज़रूरत हरियाणा के किसानों को ज़्यादा थी लेकिन पंजाब के किसान इसलिए परेशान थे कि अगर हरियाणा को उसके हिस्से का पानी मिल जाएगा तो पंजाब के खेतों के लिए पानी कम पड़ जाएगा।  

राजीव-लोंगोवाल समझौता

विवाद को सुलझाने की दिशा में क़दम बढ़ाते हुए 24 जुलाई, 1985 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष हरचंद सिंह लोंगोवाल के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत नहर बनाने के लिए पंजाब की ओर से सहमति दे दी गई। लेकिन इसके कुछ दिनों बाद ही आतंकवादियों ने लोंगोवाल की हत्या कर दी थी। 

SYL canal Dispute between haryana and punjab - Satya Hindi
प्रस्तावित नहर का काफी काम पूरा हो चुका था।

212 किमी. लंबी इस नहर का 121 किमी. हिस्सा पंजाब से होकर गुजरेगा जबकि बाक़ी 91 किमी. हिस्सा हरियाणा से। हरियाणा वाली तरफ का काम पूरा हो चुका है और पंजाब की ओर से भी काफी काम पूरा हो चुका था। लेकिन 1988-90 के दौरान आतंकवादियों ने नहर बना रहे कई मज़दूरों और इंजीनियरों को गोली मार दी थी। उसके बाद नहर का काम रुक गया था। 

2004 में भड़का विवाद

यह विवाद तब और भड़क गया जब 2004 में पंजाब की तत्कालीन अमरिंदर सरकार ने एक क़ानून बनाकर जल विवाद से जुड़े सभी समझौतों को रद्द कर दिया। इसके बाद शुरू हुआ हरियाणा के लोगों का आंदोलन और दोनों ओर से जमकर बयानबाज़ियां हुईं। हालांकि हरियाणा के सुप्रीम कोर्ट पहुंचने पर अदालत ने 2004 के क़ानून को असंवैधानिक बताते हुए यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया था। 

अक्टूबर, 2015 में हरियाणा सरकार एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंची और इस विवाद के समाधान के लिए संवैधानिक बेंच गठित करने के लिए कहा। नवंबर, 2016 में फ़ैसला हरियाणा के पक्ष में आया लेकिन पंजाब ने भी सुप्रीम कोर्ट का रूख़ किया और दशकों पुराना यह विवाद अदालत में लंबित है।

पंजाब की ओर से इस नहर को बनाने के लिए ली गई ज़मीन को उनके मालिकों को वापस करने का बिल भी पास किया जा चुका है, ऐसे में इस विवाद को सुलझाना आसान नहीं है।

मोदी सरकार की कोशिश

मोदी सरकार के जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने इस दिशा में पहल की है और मंगलवार को उन्होंने अपनी उपस्थिति में हरियाणा और पंजाब के मुख्यमंत्रियों की वर्चुअल बैठक के जरिये बात करवाई। उनका कहना है कि पहले दौर की बैठक सकारात्मक रही है। शेखावत ने कहा कि आगे की बातचीत में जो निष्कर्ष निकलेगा, उसे सुप्रीम कोर्ट को बताया जाएगा।

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खू़ब हुई राजनीति 

एसवाईएल का मुद्दा हरियाणा और पंजाब के नेताओं के लिए बेहद उपजाऊ रहा है। कई बार नेता इस मुद्दे को गर्म रखने के लिए इस प्रस्तावित नहर पर पहुंचते रहे हैं। हरियाणा की इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) और पंजाब की शिरोमणि अकाली दल (शिअद) बादल ने इस मुद्दे पर जमकर राजनीति की है। लेकिन इस विवाद को अगर कोई सुलझा सकता है तो वह सिर्फ सुप्रीम कोर्ट है। 

परेशानी यह है कि पंजाब के लोग राज्य में पहले से ही घट रहे जलस्तर के कारण हरियाणा को पानी नहीं देना चाहते। ऐसे में अगर सर्वोच्च अदालत हरियाणा के पक्ष में भी कोई बड़ा फ़ैसला दे भी देती है तो बहुत मुश्किल है कि पंजाब इसके लिए तैयार हो।
दोनों प्रदेशों में हर आम-खास व्यक्ति के इस मुद्दे से जुड़े होने के कारण यह बेहद संवेदनशील मसला है और केंद्र सरकार को ऐसी भूमिका निभानी होगी जिससे सुरसा के मुंह की तरह बढ़ते जा रहे इस विवाद का ख़ात्मा हो। 
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