जून 2017 में मोदी सरकार के स्टटिस्टिक्स और प्रोग्राम इम्पलीमेंटेशन मंत्रालय ने अपने सात सदस्यीय नेशनल स्टटिस्टिक्स कमीशन में दो बाहरी सदस्यों की नियुक्ति की। तीन स्थान रिक्त रहे। नियुक्त किये गये बाहरी सदस्यों में करियर स्टैटस्टिशन रहे पी. सी. मोहनन और दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकनॉमिक्स की प्रफ़ेसर जे. वी. मीनाक्षी शामिल हैं। इस आयोग के तीसरे सदस्य नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत हैं और एक अन्य विभागीय स्टैटस्टिशन श्रीवास्तव। लेकिन इन दो बाहरी सदस्यों ने कल इस्तीफ़ा दे दिया, जबकि इनका कार्यकाल तीन बरस का था। वजह बताई कि दिसंबर 2018 के पहले सप्ताह में सरकार को सौंपी गई बेरोज़गारी संबंधित उनकी रिपोर्ट पर सरकार पालथी मारकर बैठ गई है, जबकि इसे दिसंबर में ही प्रकाशित होना था। मोहनन के अनुसार उनकी रिपोर्ट में व्यक्त आँकड़े नोटबंदी के बाद रोज़गार के कम होते मौक़ों की सच्चाई पेश करते हैं।
मोदी जी क्यों छुपा रहे हैं बेरोज़गारी का हर आँकड़ा?
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- 11 May, 2019

नेशनल स्टटिस्टिक्स कमीशन के दो सदस्य पी. सी. मोहनन और जे. वी. मीनाक्षी ने इस्तीफ़ा दे दिया। वजह बताई कि नोटबंदी के बाद बेरोज़गारी संबंधित उनकी रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की गई।
बेरोज़गारी के सवाल पर मोदी सरकार का रवैया लज्जाजनक रहा है। ख़ुद प्रधानमंत्री पकौड़े के ठेले को अपनी सरकार के रोज़गार पैदा करने के प्रयास में गिनवा कर मशहूर हो चुके हैं। इनके मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ओला और ऊबर नाम के ऐप बेस्ड टैक्सी संचालन को सरकार द्वारा प्रदत्त रोज़गार की गणना में शामिल करने की वकालत करते हैं। कई विभाग (कभी-कभी वित्त विभाग भी) संभालने वाले मोदी जी के ‘ब्ल्यू आइड ब्वाय’, रेलमंत्री पीयूष गोयल बेरोज़गारी बढ़ने को वरदान बताते हुए तर्क देते हैं कि इससे देश में एंटरप्रोन्योरशिप बढ़ रही है, रोज़गार माँगने की जगह युवा लोगों को रोज़गार दे रहे हैं। सरकार का मुद्रा लोन के जरिये ग्यारह करोड़ नये उद्यम पैदा करने का दावा है जिसमें तीस करोड़ से ज़्यादा रोज़गार पैदा करने का दावा है (बिना किसी आँकड़े की जाँच के)!