सुप्रीम कोर्ट फिर से 'मीडिया ट्रायल' को लेकर बरसा है। इसने कहा है कि पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग संदेह पैदा करती है कि व्यक्ति ने अपराध किया है। इसने कहा कि पीड़ित और आरोपी दोनों के अधिकार प्रभावित होते हैं। शीर्ष अदालत ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को आपराधिक मामलों के संबंध में पुलिस के लिए प्रेस ब्रीफिंग के लिए दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश दिया। इसके लिए केंद्र को तीन महीने का समय दिया गया है। इसके साथ ही इसने सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों यानी डीजीपी को मैनुअल के लिए अपने सुझाव देने का भी निर्देश दिया। अदालत ने निर्देश दिया कि इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग यानी एनएचआरसी के इनपुट पर भी विचार किया जाए।
'मीडिया ट्रायल' पर नकेल कसेगा SC- 'केंद्र 3 माह में बनाए गाइडलाइंस'
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- 13 Sep, 2023
आरुषि, सुशांत सिंह राजपूत, रिया चक्रवर्ती, आर्यन ख़ान जैसे लोगों के मामले में जिस तरह का 'मीडिया ट्रायल' हुआ, क्या अब इस पर रोक लगेगी? जानिए, सुप्रीम कोर्ट ने क्या निर्देश दिया है।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि न्याय प्रशासन 'मीडिया ट्रायल' से प्रभावित होता है। पीठ ने कहा, 'यह तय करने की ज़रूरत है कि जाँच के किस चरण में क्या खुलासा किया जाना चाहिए। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है क्योंकि इसमें पीड़ित और आरोपी के हित शामिल हैं। इसमें जनता का हित भी शामिल है। बड़े पैमाने पर अपराध से संबंधित मामलों में मीडिया रिपोर्ट में सार्वजनिक हित के कई पहलू होते हैं।'