उर्दू अदब की बात हो और राजिंदर सिंह बेदी के नाम के ज़िक्र के बिना ख़त्म हो जाए, ऐसा नामुमकिन है। अपनी दिलचस्प कथा शैली और जुदा अंदाजे-बयाँ की वजह से बेदी उर्दू अफसानानिगारों में अलग से ही पहचाने जाते हैं।
गाँव से कुएँ अब गायब हो रहे हैं, सामूहिकता ख़त्म हो रही है। ऐसे में प्रेमचंद की कहानी को एक बार फिर याद कर रहे हैं लेखक अपूर्वानंद। प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला की 23 वीं कड़ी।
बीता साल पंजाबी साहित्य की प्रमुख हस्ताक्षर अमृता प्रीतम का जन्मशती वर्ष था। जन्मशती वर्ष पर जिस तरह से अमृता को याद किया जाना और उनके साहित्य पर बात होनी चाहिए थी, वह पूरे देश में कहीं नहीं दिखाई दी।
प्रेमचंद का पूरा जीवन दर्शन तार्किकता और विवेक की नींव पर टिका हुआ है। राष्ट्रीयता और जाति भेद के बारे में क्या सोचते थे प्रेमचंद? प्रेमंचद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हि्न्दी की विशेष श्रृंखला में पढ़े अपूर्वानंद को।
प्रेमचंद गांधी की राजनीति ही नहीं, उनके सामाजिक सरोकारों से भी प्रभावित थे। प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला में पढ़ें अपूर्वानंद को।
प्रेमचंद ने अपने साहित्य में जाति व्यवस्था पर गहरी चोट की है। प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला की 20 वीं कड़ी में पढ़ें अपूर्वानंंद को।
प्रेमचंद साहित्य में हम पाते हैं, अपने समय के बोध का अर्थ है अपनी सीमितता का बोध। प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला की 18 वीं कड़ी में बता रहे हैं अपूर्वानंद।
हिंदी और उर्दू के स्वरूप पर प्रेमचंद क्या सोचते थे? प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला की 17 वीं कड़ी में बता रहे हैं अपूर्वानंद।
क्या है प्रेमचंद में अगर वह कोरा आदर्शवाद नहीं है? उन्हें पढ़ें कैसे, यह ऐसी समस्या है, जिसपर उनके समकालीनों से लेकर आज तक सक्रिय रचनाकार विचार करते रहे हैं। प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला।
कृष्ण जन्माष्टमी अभी गुजरी है। अमूमन इस रोज़ सोशल मीडिया पर उर्दू/मुसलमान शायरों की कृष्ण भक्ति या कृष्ण महिमा में लिखी गई कविताएँ उद्धृत की जाती रही हैं। इस वर्ष यह उत्साह कम दिखलाई पड़ा।