ऊपर से देखने से लगता है कि टीआरपी के खेल ने न्यूज़ चैनलों को अराजक और ग़ैर-ज़िम्मेदार बना दिया है। मगर सचाई यह है कि इसमें सरकारों का भी बहुत बड़ा हाथ है। बल्कि अगर यह कहा जाए कि वे इसके लिए सबसे बड़ी ज़िम्मेदार हैं तो ग़लत नहीं होगा। आख़िरकार बाज़ारवाद को फैलाने और मनमानी करने की छूट भी उसी ने दी है। उसने उसे नियंत्रित-अनुशासित करने का कोई इंतज़ाम नहीं किया और जो थोड़े-बहुत उपाय किए भी तो उन्हें लागू नहीं किया।
TRP का दुष्चक्र-10: केबल टीवी एक्ट पर सरकारें विफल?
- मीडिया
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- 5 Nov, 2020

न्यूज़ चैनलों को सामग्री के अपलिंकिंग तथा डाउनलिंकिंग का लाइसेंस सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय देता है और लाइसेंस के लिए यह एक शर्त होती है कि प्रसारणकर्ता केबल टीवी एक्ट का पालन करेगा। पालन न करने की स्थिति में उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने, यहाँ तक कि लाइसेंस रद्द करने की चेतावनी भी शामिल होती है। टीआरपी को लेकर सत्य हिंदी की इस शृंखला की 10वीं कड़ी में पढ़िए केबल टीवी एक्ट पर सरकार के रवैये के बारे में...
उदाहरण के लिए केबल टीवी अधिनियम को ही ले लीजिए। सन् 1994 में तत्कालीन सरकार ने इसे बनाया था और सन् 1995 से लागू किया गया था। आज भी टीवी चैनलों का नियमन करने वाला यह एकमात्र क़ानून है। यह सही है कि जब यह क़ानून बनाया गया था तब एक भी न्यूज़ चैनल देश में नहीं था, इसलिए माना जा सकता है कि उस समय टीवी न्यूज़ के परिदृश्य की कल्पना भी नहीं की जा सकी होगी। लेकिन सन् 2002 में इसमें संशोधन किए गए और अब सितंबर, 2020 से फिर से इसमें बदलाव की प्रक्रिया शुरू की गई है। इसमें प्रस्ताव है कि जुर्माने और सज़ा के प्रावधान को और कड़ा किया जाए। इस बीच सन् 2014 में भी इसमें संशोधन करके आतंकवाद विरोधी कार्रवाई को लाइव दिखाने पर रोक लगाई गई थी।