बॉम्बे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मीडिया से जुड़े मामलों पर सुनवाई के दौरान दोनों जगहों पर चैनलों के नियमन के मुद्दे पर दिलचस्प टिप्पणियाँ कोर्ट की ओर से की गईं। सुप्रीम कोर्ट ने न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएशन यानी एनबीए (जो कि नेशनल ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड एसोसिएशन यानी एनबीएसए का हिस्सा है) को लगभग फटकारते हुए कहा कि आप करते क्या हैं, क्या आपका वजूद केवल लेटर हेड पर है। साफ़ है कि सुप्रीम कोर्ट एनबीए के नकारेपन से बुरी तरह निराश और नाराज़ है।
TRP का दुष्चक्र-9: आत्म-नियमन का छलावा!
- मीडिया
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- 4 Nov, 2020

न्यूज़ चैनलों की ओर से एनबीए अक्सर तर्क देता है कि उसके द्वारा बनाया गया आत्म-नियमन का तंत्र अच्छे से काम कर रहा है। लेकिन क्या सच में ऐसा है या एक छलावा है? यह छलावा नहीं है तो फिर टीआरपी स्कैम कैसे हो गया? टीवी चैनलों की टीआरपी पर सत्य हिंदी की विशेष शृंखला की 9वीं कड़ी में पढ़िए, क्या रहा है आत्म-नियमन का असर...
इसी तरह सुशांत सिंह राजपूत मामले में किए गए मीडिया ट्रायल की सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट ने एनबीए की क्लास लगाई। न्यूज़ चैनलों की ओर से पक्ष रखते हुए एनबीए ने कहा कि उसके द्वारा बनाया गया आत्म-नियमन का तंत्र अच्छे से काम कर रहा है और कोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए। इस पर कोर्ट ने कहा कि ‘एक मशहूर हस्ती की मौत के कवरेज में चैनलों ने तमाम नियमों को धता बता दिया। ये कौन सी खोजी रिपोर्टिंग है जिसमें चीख-चीखकर बताया जाता है कि ये आत्महत्या नहीं हत्या थी। आप ही जाँचकर्ता बन जाते हैं, आप ही सुनवाई करते हैं और फिर आप ही फ़ैसला सुना देते हैं, तो फिर हमारी ज़रूरत क्या है।’