यह पत्रकारिता का बहुत बड़ा नुक़सान है। यह लखनऊ का बहुत बड़ा नुक़सान है। उन लोगों के लिए बहुत बड़ा सदमा है जिन्हें कमाल ने आवाज़ दी, दिखाया और दुनिया के सामने उजागर किया। उन दर्शकों के लिए एक बहुत बड़ी जगह खाली हो गई है जो कमाल की नज़रों से न जाने क्या-क्या देखते थे, और बिलकुल अलग अंदाज़ में वो सुनते थे जो सिर्फ़ कमाल ही लिख सकते थे, कमाल ही कह सकते थे और कमाल ही सुना सकते थे।
कमाल के बग़ैर अब शायद ज़िंदगी ज़िंदगी न रहे!
- श्रद्धांजलि
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- आलोक जोशी
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- 14 Jan, 2022


आलोक जोशी
कमाल के काम और उनकी पत्रकारिता को देखें तो उसका पूरा रहस्य इन लाइनों में छुपा हुआ है। टीवी में काम करने से पहले भी वो शब्दों से तसवीर खींचने का जादू जानते थे। सामने बैठकर कोई क़िस्सा सुनाते तो धीरे धीरे आपकी आंखों के सामने पिक्चर सी चलने लगती थी।
कमाल ने टेलिविजन पत्रकारिता 1995 के आसपास शुरू की। लेकिन लगता है कि वो इसके लिए ही बने थे। पत्रकार बनने से पहले कमाल एचएएल में काम किया करते थे। रूसी भाषा के अनुवादक। सरकारी नौकरी थी, पढ़ते भी बहुत थे। हिंदी, अंग्रेज़ी, उर्दू और रूसी चार भाषाएँ। इन भाषाओं में साहित्य और समाज के दस्तावेज़। तो लिखने का शौक भी था। अख़बार में लिखने लगे। अनुवाद भी और अपने लेख भी। यही सिलसिला 1987 में उन्हें पत्रकारिता में ले आया।
आलोक जोशी
लेखक सीएनबीसी आवाज़ के पूर्व संपादक हैं