ऐसा लग रहा था कि जैसे श्वेत धवल वस्त्रों में कोई संत चला आ रहा है। एक निर्लिप्त सी चाल। पठानी सूट और शॉल ओढ़े हुए जब यह शख़्स थोड़ा क़रीब पहुँचा, तो स्पष्ट हो गया कि वह कौन हैं? और कौन? यूसुफ़ ख़ान उर्फ दिलीप कुमार। छाया की तरह उनके साथ रहनेवाली उनकी शरीकेहयात सायरा बानो उन्हें संभाले हुए थीं। हम उन्हीं के बंगले में थे। सायरा जी ने ही आमंत्रित किया था। दरअसल, उन्होंने एक भोजपुरी फ़िल्म 'अब तो बन जा सजनवा हमार’ प्रोड्यूस की थी। उस दौर में भोजपुरी इंडस्ट्री उरूज पर थी। हर हफ्ते एक भोजपुरी फ़िल्म लांच हो रही थी। लगभग दस साल पहले की बात है। खैर, सायरा जी ने आते ही प्रार्थना की कि साहब की तबियत थोड़ी नासाज है, इसलिए सवाल-जवाब का सिलसिला सहजता से संपन्न हो। तब तक कुछ और पत्रकार भी आ चुके थे।