नब्बे के दशक की बात है। कश्मीर में आतंकवाद बड़ी तेज़ी से बढ़ रहा था। पाकिस्तान ने बड़ी संख्या आतंकवादियों को आधुनिक हथियारों के साथ घुसपैठ करा दिया था। इनमें काफ़ी संख्या में तालिबान और पाकिस्तान के दूसरे आतंकवादी समूहों से जुड़े हुए थे, जिन्हें अफगानिस्तान में कम्युनिस्ट सेना से लड़ने के लिए सैनिकों की तरह प्रशिक्षित किया गया था। विदेशी आतंकवादी गुरिल्ला युद्ध में पारंगत थे। 1989 में अफगानिस्तान से सोवियत सेना की वापसी के बाद उनका मनोबल काफ़ी बढ़ा हुआ था।
पड़ोसी जिनकी मौत कोरोना से हुई, वे जासूसों के हेड थे
- श्रद्धांजलि
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- 15 May, 2021
उन्हें आतंकवादियों के ख़िलाफ़ जासूसी नेटवर्क तैयार करने और उनकी पहचान करने में माहिर माना जाता था। फ़ुर्सत के समय वो अपना संस्मरण बड़े चाव से सुनते थे। वह कई बार यह भी बताते थे कि किन बड़े आतंकवादी नेताओं को आईबी की सूचना के आधार पर गिरफ़्तार किया गया या फिर वो मुठभेर में मारे गए। हर बार याद दिलाते थे कि कुछ भी लिखना या छापना नहीं। आईबी का काम हमेशा गुप्त रहता है।
पाकिस्तानी सेना के सहयोग से वे कश्मीर में घुस आए थे और स्थानीय आतंकवादी और अलगाववादी गुटों के सहयोग से उन्होंने कश्मीर पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश शुरू कर दी थी। भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी पाकिस्तानी आतंकवादियों की पहचान करके उन्हें ख़त्म करना। यह काम आसान नहीं था क्योंकि पाकिस्तानी आतंकवादी आम जनता में घुल मिल गए थे और उन्हें स्थानीय लोगों का समर्थन मिल रहा था।
आतंकवादी कमान्डरों का सफ़ाया
विदेशी आतंकवादियों की पहचान की ज़िम्मेदारी मुख्य तौर पर इंटेलिजेन्स ब्युरो (आईबी ) पर थी। इसी दौर में कश्मीर में आईबी के प्रमुख के रूप में जे. एन. राय को तैनात किया गया। राय ने पाकिस्तानी आतंकवादियों की पहचान के लिए जासूसी का एक बड़ा नेटवर्क तैयार किया, जिसमें आईबी के जासूसों के अलावा स्थानीय राष्ट्रवादी लोगों को भी शामिल किया गया।
शैलेश कुमार न्यूज़ नेशन के सीईओ एवं प्रधान संपादक रह चुके हैं। उससे पहले उन्होंने देश के पहले चौबीस घंटा न्यूज़ चैनल - ज़ी न्यूज़ - के लॉन्च में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। टीवी टुडे में एग्ज़िक्युटिव प्रड्यूसर के तौर पर उन्होंने आजतक