नब्बे के दशक की बात है। कश्मीर में आतंकवाद बड़ी तेज़ी से बढ़ रहा था। पाकिस्तान ने बड़ी संख्या आतंकवादियों को आधुनिक हथियारों के साथ घुसपैठ करा दिया था। इनमें काफ़ी संख्या में तालिबान और पाकिस्तान के दूसरे आतंकवादी समूहों से जुड़े हुए थे, जिन्हें अफगानिस्तान में कम्युनिस्ट सेना से लड़ने के लिए सैनिकों की तरह प्रशिक्षित किया गया था। विदेशी आतंकवादी गुरिल्ला युद्ध में पारंगत थे। 1989 में अफगानिस्तान से सोवियत सेना की वापसी के बाद उनका मनोबल काफ़ी बढ़ा हुआ था।