किसानों का चक्का-जाम बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गया और उसमें 26 जनवरी- जैसी कोई घटना नहीं घटी, यह बहुत ही सराहनीय है। उत्तर प्रदेश के किसान नेताओं ने जिस अनुशासन और मर्यादा का पालन किया है, उससे यह भी सिद्ध होता है कि 26 जनवरी को हुई लालक़िला- जैसी घटना के लिए किसान लोग नहीं, बल्कि कुछ उदंड और अराष्ट्रीय तत्व ज़िम्मेदार हैं। जहाँ तक वर्तमान किसान-आंदोलन का सवाल है, यह भी मानना पड़ेगा कि उसमें तीन बड़े परिवर्तन हो गए हैं।
कृषि क़ानूनों पर छूट राज्यों को क्यों नहीं देता केंद्र?
- विचार
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- 7 Feb, 2021

दूसरे शब्दों में आजकल सरकार और किसानों की यह फर्जी मुठभेड़ चलती चली जा रही है। यदि इसमें कोई बड़ी हिंसा और प्रतिहिंसा हो गई तो देश का बहुत गहरा नुक़सान हो जाएगा। इस फर्जी मुठभेड़ को रोकने का सबसे आसान तरीक़ा मैं कई बार सुझा चुका हूँ। केंद्र सरकार इन क़ानूनों को मानने या न मानने की छूट राज्यों को क्यों नहीं दे देती?
एक तो यह कि यह किसान आंदोलन अब पंजाब और हरियाणा के हाथ से फिसलकर उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्से के जाट नेताओं के हाथ में आ गया है। राकेश टिकैत के आँसुओं ने अपना सिक्का जमा दिया है।