मैंने उमर फारूक के लेख ‘क्या पाकिस्तान के मुल्ला कभी आधुनिकता का विरोध करना बंद करेंगे?' पढ़ा, जो nayadaur.tv में प्रकाशित हुआ है। लेखक ने मुल्लाओं द्वारा महिलाओं के सशक्तिकरण, अल्पसंख्यक अधिकारों और आधुनिक राजनीतिक विचारों के विरोध का उल्लेख किया है। शायद फारूक ने यह बात मौलवी तारिक जमील द्वारा हाल ही में लगाए गए आरोप कि पाकिस्तान में कोविड -19 की वृद्धि के लिए महिलाओं का अभद्र पहनावा जिम्मेदार है, के सन्दर्भ में कही है।
फारूक के इस प्रश्न से यह प्रतीत होता है कि उनके अनुसार मुल्ला चाहें तो आधुनिकता का समर्थन कर सकते हैं। मेरे अनुसार यह एक भ्रम है। धर्म और विज्ञान एक-दूसरे के विपरीत हैं। वे अलग-अलग हैं और यह कहना असत्य है (जैसा कि कुछ लोग कहते हैं) कि वे एक-दूसरे के पूरक हैं।























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