देश की सबसे बड़ी अदालत की अनेक छोटी बेंचों ने तो अपना काम कर दिया लेकिन अब इंतज़ार है इसी कोर्ट की तीन-सदस्यीय पीठ के विजय मदनलाल चौधरी बनाम भारत सरकार केस में सन 2022 के फैसले को पूरी तरह पलटने वाली बड़ी बेंच (कम से कम पांच- या सात-सदस्यीय पीठ) के फैसले का जो संविधान के मूल प्रावधानों की अवहेलना करने वाले धन-शोधन निरोधक अधिनियम (पीएमएलए) के प्रावधानों को और उससे पैदा हुए गवर्नेंस पर अविश्वास को भी ख़त्म करे। इस कानून में मिली शक्तियों के कारण ही इसे अमल में लाने वाली एजेंसी –प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)- आज सरकार का विपक्ष को प्रताड़ित करने वाला “कोबरा” बन गयी है। हालांकि छोटी बेंचों ने इस कानून के असंवैधानिक प्रक्रियात्मक प्रावधानों जैसे सेक्शन 24, सेक्शन 45(1) और सेक्शन 50 को ग़लत ठहराया है लेकिन इसे पूरी तरह प्रभावशून्य करने के लिए संविधान पीठ को अपनी मोहर लगानी होगी। विजय मदनलाल केस की खामियों पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट राजी हो गया है।
ईडी अब फुफकारेगा, लेकिन काट नहीं पायेगा!
- विचार
- |
- |
- 29 Mar, 2025

सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसलों में भी ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट को चेतावनी दी गयी थी कि वे इसी संवैधानिक सिद्धांत से न्यायिक फैसले के द्वारा प्रतिपादित नियम “बेल इज रूल, जेल एक्सेप्शन” का अनुपालन करें।
हाल के अपने फ़ैसलों के ज़रिये कोर्ट की बेंचों ने देश भर में –खासकर देश की निचली अदालतों और हाई कोर्ट्स के लिए— जमानत को लेकर एक नया इको-सिस्टम बना दिया है। यह है संविधान-प्रदत्त वैयक्तिक स्वतन्त्रता से निकली न्यायिक मान्यता- बेल इज रूल एंड जेल एक्सेप्शन (जमानत नियम है और जेल अपवाद)। दो- और तीन-सदस्यीय बेंच ने अपने हाल के चार फैसलों में, जो मूलतः पीएमएलए के प्रक्रियात्मक प्रावधानों को लेकर हैं, प्रभाव-शून्य कर दिया है। इन प्रावधानों के तहत इसे अमल में लाने वाली संस्था प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को निर्बाध शक्तियां हासिल हो गयी थीं।