उप राष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ की विदाई जितनी अचानक और निजी दिखाई देती है वह उतनी लगती नहीं। जी हां, यह बीमारी और निजी कारण से हुआ इस्तीफा नहीं लगता, यह दबाव में लिया गया इस्तीफा लगता है। और उनके इस बड़े पद से हटने की अनुगूँज अभी केंद्र, एनडीए और भाजपा की राजनीति में देर तक सुनाई देगी। तत्काल तो यही दिख रहा है कि बीजेपी की तरफ़ से कुछ नहीं कहा गया, लेकिन विपक्ष उस धनखड़ साहब को अपने इस्तीफे पर पुनर्विचार के लिए कह रहा है जिनसे उसका रिश्ता छत्तीस का ही रहा है। अब विपक्ष उनकी तारीफ़ के कसीदे भी पढ़ रहा है।