loader
तालाबंदी खुली तो सड़कों पर जाम लगने लगा।

कोरोना: इन पाँच कारणों ने सरकार को ताला खोलने की हिम्मत दी

देश में कोरोना वायरस का संक्रमण काफ़ी तेज़ी से फैल रहा है। नीति आयोग और एम्स जैसे संस्थानों ने आशंका जताई है कि जून और जुलाई में संक्रमण शिखर पर होगा। पहले 24 मार्च के आसपास रोज़ 50-60 नए मरीज़ों का पता चल रहा था तो तालाबंदी की गई थी और अब जब 8 हज़ार से ज़्यादा नए मरीज़ रोज़ मिल रहे हैं तो ताला खोला जा रहा है। ऐसे हालात में आख़िर सरकार ने ऐसा करने की हिम्मत कैसे की?
नीरेंद्र नागर

24 मार्च को जब मोदी सरकार ने एकाएक सारे देशवासियों को ताले में बंद रहने का आदेश कर दिया था, उस दिन देशभर में कोरोना वायरस से पीड़ित मरीज़ों की संख्या 564 थी। आज जब सरकार इस महीने से ताला खोलने की दिशा में पहला बड़ा क़दम उठा चुकी है तो उनकी संख्या 1 लाख से ऊपर हो गई है। (ध्यान दीजिए, मैं कोरोना के कुल मामलों की नहीं, मरीज़ों की मौजूदा संख्या की बात कर रहा हूँ।) 24 मार्च के आसपास रोज़ 50-60 नए मरीज़ों का पता चल रहा था, आज 8 हज़ार से ज़्यादा नए मरीज़ रोज़ मिल रहे हैं। ऐसे में आम नागरिक को समझ में नहीं आ रहा है कि 24 मार्च को सरकार को ऐसा क्या ख़तरा नज़र आया कि देश भर में तालाबंदी कर दी गई और आज जून में हालात कौन से सुधर गए कि सरकार ने ताला खोलने की दिशा में पहला क़दम बढ़ा दिया।

पहली नज़र में कोई भी कह सकता है कि 24 मार्च को जो हालात थे, उनके मुक़ाबले आज स्थिति बहुत ज़्यादा ख़राब है और आगे और ख़राब हो सकती है। पिछली कड़ी में (पढ़ें : क्या मोदी सरकार ने कोरोना से हार मान ली है?) हमने अंदाज़ा लगाया था कि यदि मरीज़ों की संख्या इसी दर से बढ़ती रही यानी हर 15 दिन में डबल होती रही तो अगले ढाई-तीन महीनों में 1.22 करोड़ लोग कोविड-19 से संक्रमित हो सकते हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आख़िर मोदी सरकार ने क्या सोचकर 1 जून से लोगों के आने-जाने पर लगी सारी बंदिशें हटा दीं। आप जानते ही होंगे कि नई गाइडलाइन के अनुसार अब लोग पहले की तरह जहाँ चाहें आ-जा सकते हैं। हाँ, उसने राज्य सरकारों को यह अधिकार ज़रूर दिया है कि वे चाहें तो अपने प्रदेशों में अभी भी कुछ रोक लगा सकती हैं। कई राज्य सरकारें ऐसा कर भी रही हैं। लेकिन बात केंद्र सरकार की है। तालाबंदी उसने की थी और अब ताला भी वही खोल रही है, वह भी तब जब ऊपरी तौर पर हालात पहले से बदतर लग रहे हैं। आख़िर क्यों?

ताज़ा ख़बरें

केंद्र ने ताला खोलने का यह निर्णय क्यों लिया, इसके पीछे कई कारण हैं। पहला और सबसे बड़ा कारण तो हम सब जानते हैं कि तालाबंदी से देश की आर्थिक गतिविधियाँ एकाएक ठप हो गई थीं और उसके कारण अर्थतंत्र का बहुत बड़ा नुक़सान हो रहा था। कल-कारख़ाने बंद हो जाने से करोड़ों लोगों का रोज़गार छिन गया, कई सड़कों पर आ गए, उनके भूखों मरने की नौबत आ गई। जीडीपी के नेगेटिव होने की आशंका नज़र आने लगी। कहा जाने लगा कि कोरोना से बचाने के नाम पर की गई तालाबंदी करोड़ों लोगों को भूख से मार देगी। ऐसे हालात में तालाबंदी लंबी नहीं चल सकती थी। दुनिया के बाक़ी देश भी इसी कारण से अपने यहाँ तालाबंदी में ढील दे रहे हैं।

लेकिन तालाबंदी ख़त्म करने के पाँच और कारण हैं जिनकी आम तौर पर चर्चा नहीं होती। नीचे हम उन्हीं कारणों की चर्चा करेंगे।

1. सरकार अब पूरी तरह से तैयार है

जब कोरोना वायरस के शुरुआती मामले आए थे तो सरकार और स्वास्थ्य मशीनरी को यह पता नहीं था कि इस वायरस का असर कितना घातक है। चीन के अनुभवों के आधार पर वे बस यह जानती थीं कि इसका संक्रमण किस तरह होता है और यह कितनी तेज़ी से फैलता है। उन दिनों नए लोगों के संक्रमित होने की संख्या भले कम थी लेकिन संक्रमण का रेट इतना अधिक था कि तीन दिनों में मामले डबल हो रहे थे।

ऐसे में अगर लॉकडाउन नहीं किया गया होता और मामले उसी तेज़ी से बढ़ते तो स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुमान से 15 अप्रैल तक ही 8 लाख मामले हो जाते। ऐसे में दो महीनों में हालात क्या होते, इसका यदि गणितीय अनुमान लगाएँ तो यह संख्या करोड़ों में पहुँचती है।

लेकिन हर्ड इम्यूनिटी और दूसरे कारणों से स्थिति शायद उस हद तक नहीं जाती। फिर भी हालात आज से तो कई गुना बदतर होते। एक सरकारी स्टडी के अनुसार लॉकडाउन नहीं लगा होता तो 14-29 लाख अतिरिक्त लोग संक्रमित होते और 37-78 हज़ार अतिरिक्त लोग मौत का शिकार हो जाते। यानी लॉकडाउन नहीं होता तो आज देश में कोरोना के 2 लाख नहीं, बल्कि 16-31 लाख मामले होते। मृतकों की संख्या भी 6 हज़ार के बजाय 43-84 हज़ार के बीच होती।

चलिए, जो हुआ नहीं, उसको छोड़कर जो हुआ है, उसकी बात करते हैं। पता नहीं, आपने ध्यान दिया या नहीं कि ये जो 2 लाख से ज़्यादा मामले हमें दिख रहे हैं, उनमें से भी क़रीब 1 लाख ठीक हो चुके हैं। यानी मौजूदा मरीज़ों की संख्या केवल 1 लाख है। और यह 1 लाख की संख्या भी रोज़ 8 हज़ार की दर से नहीं बढ़ रही, 3 से 4 हज़ार की दर से बढ़ रही है क्योंकि हर रोज़ 3-4 हज़ार लोग ठीक भी तो हो रहे हैं (देखें चित्र)।

why government decided to unlock the lockdown amid record coronavirus positive cases - Satya Hindi

यानी आपको जो 8 हज़ार की संख्या रोज़ दिखाई-बताई जा रही है, वह दरअसल केवल 3-4 हज़ार है। अगर यह संख्या बढ़कर होगी भी तो कितनी? रोज़ 5 हज़ार? 6 हज़ार? 8 हज़ार? सरकार इसके लिए तैयार है। तैयार इसलिए है कि पिछले सवा दो महीनों में इसने कोविड केयर सेंटरों और अस्पतालों की बड़े पैमाने पर व्यवस्था की, बिस्तरों की व्यवस्था की, वेंटिलेटरों की व्यवस्था की, पर्सनल प्रोटेक्शन किट की व्यवस्था की। (इस व्यवस्था में भारी दुर्व्यवस्था भी थी लेकिन उसकी बात अभी नहीं करते हैं)।

इसीलिए आज की तारीख़ में सरकार कॉन्फ़िडेंट है कि यदि मरीज़ों की संख्या मौजूदा रेट से भी बढ़ती रही तो वह उसका मुक़ाबला करने में सक्षम है। मामला वैसा ही है जैसे कि रात को 10 बजे किसी घर में 10 अतिथि आ जाएँ और उनके लिए खाने-पीने और सोने की व्यवस्था करनी हो तो मेज़बान के पसीने छूट सकते हैं। लेकिन यदि मेज़बान को सात दिन पहले से अतिथियों के आने का पता हो तो वह 10 क्या, 100 अतिथियों के भी खाने-पीने-रहने की व्यवस्था आसानी से कर सकता है।

2. गंभीर मरीज़ों की संख्या बहुत कम

सरकार के इस कॉन्फ़िडेंस का एक और कारण है जो हम-आप नहीं देख पा रहे क्योंकि इसकी चर्चा कहीं हो ही नहीं रही है। दरअसल, कोरोना मामलों की जो संख्या टीवी चैनल, अख़बार और वेबसाइटें रोज़ हमारे सामने परोसती हैं, वह मौजूदा मरीज़ों की संख्या नहीं है। वह कोरोना के कुल मामलों की संख्या है। कोरोना के मौजूदा मरीज़ों की संख्या तो क़रीब 1 लाख ही है। इनमें से भी गंभीर मरीज़ केवल दो से तीन हज़ार हैं। पिछली कड़ी में हम इसपर विस्तार से चर्चा कर चुके हैं।

विचार से ख़ास
भारत के लिए एक और अच्छी बात है कि यहाँ कोरोना पीड़ितों के मरने की दर केवल 3 प्रतिशत है जबकि दुनिया भर में मरने वालों का औसत 11% है। इसका मतलब यह हुआ कि सरकार को आज की तारीख़ में अगर चिंता करनी है तो केवल उन 3 हज़ार लोगों की कि कैसे इन मरीज़ों को भी मौत के मुँह से बचाया जाए। अगले 15 दिनों में यह संख्या 4 हज़ार हो सकती है, 6 हज़ार हो सकती है, 8 हज़ार हो सकती है - लेकिन पूरे भारत के लिए यह कोई बहुत बड़ी संख्या नहीं है जिसे मैनेज नहीं किया जा सके।

3. कंटेनमेंट ज़ोन में ढील नहीं

हम सब जानते हैं कि सरकार ने कंटेनमेंट ज़ोन यानी उन स्थानों में कोई ढील नहीं दी है जहाँ से पहले बड़ी संख्या में केस मिले हैं या नए केस मिल रहे हैं। ऐसे में बीमारी के इन इलाक़ों के बाहर फैलने की आशंका बहुत कम हो जाती है। इसलिए बाक़ी इलाक़ों में छूट देने से कोई नुक़सान नहीं है।

4. लक्षणविहीन मरीज़ संक्रामक नहीं

सरकार के कॉन्फ़िडेंस का सबसे बड़ा कारण यह है कि 80% कोरोना पीड़ित मरीज़ों में बीमारी के कोई लक्षण ही नहीं हैं या बहुत कम लक्षण हैं। अगर उनकी जाँच नहीं की जाती तो उनको या और किसी को पता भी नहीं लगता कि उनको कभी यह बीमारी हुई भी थी। अच्छी बात यह है कि ऐसे मरीज़ बहुत संक्रामक भी नहीं हैं। यानी उनके भीड़ में घूमने-फिरने से संक्रमण फैलने की आशंका नहीं या बहुत कम है। कारण यह कि कोरोना वायरस तो छींकने या खाँसने से निकलने वाले छींटों से फैलता है। अब जब किसी कोरोना पीड़ित को न तो सर्दी-ज़ुकाम है, न खाँसी है तो वह न तो छींकेगा, न ही खाँसेगा - ऐसे में उसके शरीर में मौजूद वायरस छींटों के ज़रिए दूसरे व्यक्ति तक पहुँचेगा ही कैसे?

ऐसे लक्षणहीन मरीज़ों की भारी संख्या को देखते हुए सरकारी संस्था ICMR को लगने लगा है कि देश में संभवतः ऐसे लाखों लोग हैं जो कोरोना वायरस से ग्रस्त होकर ठीक भी हो चुके हैं मगर उनको इस बात का पता ही नहीं है।

इसके लिए उसने हाल ही में राज्यों से कहा है कि वे अपने यहाँ सामान्य लोगों में भी कोरोना-संक्रमण की जाँच कराएँ ताकि पता चले कि कोरोना वायरस का संक्रमण किस हद तक फैल चुका है।

5. डरे हुए लोग ख़ुद ही सुरक्षा उपाय अपनाएँगे

सरकारी प्रचार और मीडिया के डरावने प्रचार से समाज में कोरोना वायरस संक्रमण का डर इतना ज़्यादा फैल गया है कि सरकार को भरोसा है कि बड़ी संख्या में लोग ख़ुद ही इससे बचने के लिए मास्क और सैनिटाइज़र जैसे सुरक्षात्मक उपाय अपनाएँगे और इस तरह संक्रमण का ख़तरा पहले के मुक़ाबले कम होगा।

निष्कर्ष यह कि सरकार अब कोरोना वायरस से इसलिए नहीं घबरा रही क्योंकि…

  • उसे पता है कि रोजाना कोविड-19 के नए मामले भले आ रहे हों लेकिन कई पुराने मरीज़ रोज़ ठीक भी हो रहे हैं। इसलिए मौजूदा मरीज़ों (Active cases) की संख्या रोज़ उतनी नहीं बढ़ रही। कभी-कभी तो वह घट भी रही है जैसा कि 29 मई को हुआ।
  • मौजूदा मरीज़ों में भी गंभीर मरीज़ों की संख्या केवल 2-3% है यानी सरकार को बहुत कम संख्या की चिकित्सा की चिंता करनी है।
  • सरकारों ने कंटेनमेंट ज़ोन में कोई ढील नहीं दी है। इससे बीमारी के कंटनेमेंट ज़ोन से बाहर फैलने की आशंका बहुत कम है।
  • मौजूदा मरीज़ों में से 80% में कोई लक्षण नहीं होते या बहुत हलके लक्षण होते हैं और इनको अस्पताल में भर्ती होने या किसी इलाज की ज़रूरत नहीं होती। ऐसे मरीज़ संक्रामक भी नहीं होते और वे अगर भीड़ में जाएँ तो संक्रमण फैलने की आशंका भी बहुत कम है।
  • लोगों में कोरोना वायरस का भय इतना ज़्यादा है कि बड़े पैमाने पर लोग सुरक्षा उपाय अपनाएँगे।
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
नीरेंद्र नागर
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें