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गोरखपुर शहरी सीट बीजेपी का अजेय किला, योगी ने भी नहीं लिया रिस्क

गोरखपुर शहरी सीट से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बीजेपी ने बहुत सोच समझकर मैदान में उतारने का फैसला किया है। इसे यूं भी कह सकते हैं कि योगी आदित्यनाथ ने बहुत सोच समझकर गोरखपुर शहरी सीट से लड़ने का फैसला किया है। अयोध्या और मथुरा बेशक धार्मिक शहर हैं लेकिन वहां इसके बावजूद रिस्क था, जबकि गोरखपुर शहरी सीट का इतिहास ऐसा है कि वहां से योगी के लड़ने में कोई रिस्क नहीं है। 

गोरखपुर शहरी सीट बीजेपी और हिन्दू महासभा का गढ़ रही है। 2002, 2007, 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव में डॉ. राधा मोहन अग्रवाल ने यहां से लगातार चार बार जीत दर्ज की है। करीब साढ़े चार लाख मतदाताओं वाला यह विधानसभा क्षेत्र गोरक्षनाथ मंदिर की वजह से बीजेपी का अजेय किला बना हुआ है। यह भी ऐतिहासिक तथ्य है कि समाजवादी पार्टी यहां दूसरे नंबर पर रहती है। 2002 में डॉ अग्रवाल हिन्दू महासभा के प्रत्याशी थे और जीते थे। 2007 में बीजेपी के डॉ अग्रवाल ने सपा के भानुप्रकाश मिश्रा को हराया था।

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2012 में बीजेपी के ़डॉ राधा मोहन अग्रवाल ने सपा की राजकुमारी देवी को हराया था। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 2012 में ही बीजेपी को यहां से 49.19 फीसदी वोट मिले थे। वोटों का यह प्रतिशत गोरखपुर शहरी क्षेत्र के मतदाताओं का मूड बताने के लिए काफी है। इसके मुकाबले सपा को यहां 2012 में 20.42 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन 2017 में उन्हीं राधा मोहन अग्रवाल को 55.85 फीसदी वोट मिले। 29017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-सपा समझौता था तो यह सीट कांग्रेस के खाते में आई थी, उसके प्रत्याशी राणा राहुल सिंह 28.10 फीसदी वोट मिला था। इस आंकड़े से साबित होता है कि बीजीपी की स्थिति यहां लगातार मजबूत बनी हुई है। वह हर चुनाव में वोट प्रतिशत बढ़ा लेती है, जबकि पिछला विधानसभा चुनाव तो दोनों दलों ने गठबंधन करके लड़ा था।

गोरखपुर शहर पूरी तरह से गोरक्षनाथ मंदिर के प्रभाव में है। इस मंदिर के सर्वेसर्वा योगी आदित्यनाथ हैं। डॉ राधामोहन हालांकि डॉक्टरी पेशे से आते हैं लेकिन 2002 से वो सक्रिय रूप से हिन्दू महासभा और उसके बाद बीजेपी में सक्रिय हैं। उन्हें योगी आदित्यनाथ का पूरा आशीर्वाद हर चुनाव में मिलता रहा है। यही वजह है कि बीजेपी ने कोई जोखिम बिना उठाए, इस सीट से योगी को उतारने का फैसला किया है। इस सीट से योगी को उतारकर बीजेपी यह संकेत देना चाहती है कि योगी अपने गढ़ से चुनाव मैदान में उतरे हैं, जबकि सपा और बसपा प्रमुख ऐसी हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। मायावती ने तो खैर चुनाव लड़ने से ही मना कर दिया है। लेकिन अखिलेश यादव ने भी किसी खास सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा नहीं की है। 

किसको उतारेगी सपा

अब देखना यह है कि समाजवादी पार्टी यहां से किस प्रत्याशी को मैदान में उतारती है। अगर डा. राधामोहन अग्रवाल बगावत करके सपा से टिकट ले आए तो क्या वो अपने पिछले चुनावों जितना ही कारगर साबित होंगे। इसमें संदेह है। गोरखपुर शहरी क्षेत्र के मतदाताओं ने बीजेपी के नाम पर वोट दिए हैं। अगर डॉ राधामोहन बागी नहीं होते हैं और सपा किसी लोकल को टिकट देती है तो बतौर बीजेपी प्रत्याशी योगी आदित्यनाथ की लड़ाई आसान हो जाएगी। लेकिन अगर सपा ने यहां से मजबूत प्रत्याशी उतारा तो योगी का रास्ता मुश्किल भी हो सकता है। 

योगी आदित्यनाथ अगर अयोध्या से मैदान में उतरते तो उसका संदेश जरूर बीजेपी अपने पक्ष में भुनाती लेकिन अयोध्या का मिजाज ऐसा है कि वहां से बीजेपी को अपनी जीत का यकीना कभी नहीं रहा।

इस सीट से कम्युनिस्ट पार्टी के  विधायक मित्रसेन यादव भी विधायक रह चुके हैं। मित्रसेन यादव तब जीते थे, जब पूरे यूपी में मंदिर आंदोलन चरम पर था और बीजेपी मंदिर राजनीति की वजह से बड़ी पार्टी बन रही थी। ऐसे में लोगों का बीजेपी को नकार कर सीपीआई प्रत्याशी को जिता देना बताता है कि यहां के मतदाता कोई भी गुल खिला सकते हैं।

बीजेपी अगर मथुरा से योगी को उतारती तो वहां भी रिस्क था। वहां की सांसद हेमामालिनी की जीत लगातार कम मार्जिन से हो रही है। पिछले दिनों वहां टूटी सड़कों को लेकर जनता प्रदर्शन भी कर चुकी है। बीजेपी को इन वजहों से लग रहा था कि योगी के उतरने पर अगर विपक्ष ने टूटी सड़कों का मुद्दा छेड़ दिया तो बहुत मुश्किल हो जाएगी। ऐसे में लोकल प्रत्याशी को उतारना ज्यादा ठीक होगा। हालांकि बीजेपी के राज्यसभा सदस्य को तो सपने में कृष्णजी दिखे थे और उन्होंने सलाह दी थी कि योगी आदित्यनाथ को मथुरा से चुनाव लड़ाया जाए। लेकिन कृष्ण बीजेपी आलाकमान के सपने में नहीं आए थे, इसलिए मथुरा को योगी के लिए खारिज कर दिया गया। 

 

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क़मर वहीद नक़वी
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