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यूपी, बिहार में चुनाव तैयारी में ओवैसी की पार्टी; इंडिया गठबंधन के लिए झटका?

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार में सिर्फ़ एक सीट पर चुनाव लड़ी थी। उसके उम्मीदवार को क़रीब 3 लाख वोट मिले थे और वह तीसरे स्थान पर रहे थे। लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार ने वह सीट जीत ली थी। यदि इस बार ओवैसी की पार्टी कई सीटों पर चुनाव लड़ती है तो क्या 2019 जैसा नतीजा निकलेगा? समझा जाता है कि ओवैसी की पार्टी तेलंगाना और महाराष्ट्र के साथ ही हिंदी प्रदेशों- उत्तर प्रदेश और बिहार में अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है। तो क्या यह इंडिया गठबंधन के लिए चिंता की बात होनी चाहिए? आख़िर इसका असर क्या हो सकता है?

रिपोर्ट है कि एआईएमआईएम बिहार में सात सीटों और उत्तर प्रदेश में 20 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। पार्टी की बिहार यूनिट ने 7 उम्मीदवारों और उत्तर प्रदेश यूनिट ने 20 उम्मीदवारों का प्रस्ताव असदुद्दीन ओवैसी के पास भेजा है। हालाँकि इस पर अभी तक पार्टी की ओर से कुछ फैसला नहीं लिया गया है, लेकिन समझा जाता है कि इतनी सीटों पर उसकी तैयारी चल रही है।

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ओवैसी ने भी इसकी पुष्टि की है कि यूपी और बिहार में चुनाव लड़ने के लिए उनकी पार्टी की राज्य ईकाई ने प्रस्ताव भेजा है। ओवैसी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, 'हम निश्चित रूप से हैदराबाद, महाराष्ट्र के औरंगाबाद और बिहार के किशनगंज में लड़ेंगे। हमारी बिहार इकाई अधिक सीटों पर लड़ना चाहती है। यूपी में भी ऐसी ही मांगें हैं। महाराष्ट्र में मुंबई और मराठवाड़ा से लड़ने का आह्वान किया गया है। हम जल्द ही तय करेंगे कि हम कितनी सीटों पर लड़ने जा रहे हैं।'

हालाँकि, एआईएमआईएम ने 2019 में यूपी में कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था, लेकिन 2017 में राज्य में स्थानीय निकाय चुनावों में उसने 32 सीटें हासिल करके अच्छा प्रदर्शन किया था। भले ही पार्टी ने 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों में कोई सीट नहीं जीती थी, लेकिन 10 से अधिक सीटों पर उसे जो वोट मिले थे, वे वहाँ सपा उम्मीदवारों की हार के अंतर से अधिक थे।

बिहार में किशनगंज के अलावा कटिहार, पूर्णिया, अररिया, दरभंगा, मधुबनी और गया से उम्मीदवार उतारने की तैयारी है। उत्तर प्रदेश में भी संभल, मुरादाबाद, अमरोहा, बिजनौर, सहारनपुर, कानपुर और जौनपुर जैसी 20 सीटों पर ऐसी तैयारी है। ये वो सीटें हैं जहाँ मुस्लिम आबादी अच्छी-खासी संख्या में है। 
अब यदि अल्पसंख्यक वोटों में सेंध लगती है तो यह बिहार और यूपी दोनों राज्यों में इंडिया गठबंधन दलों के लिए बड़ा झटका हो सकता है।
ऐसा इसलिए कि इन दोनों ही राज्यों में आरजेडी और समाजवादी पार्टी मुस्लिम-यादव (माई) के गठजोड़ वाली पार्टी के तौर पर पहचान रखती रही हैं। अब यदि इनमें से अल्पसंख्यक वोट छिटकेंगे तो यह स्थिति उनके लिए मुफीद नहीं होगी। इन वोटों के बिखराव से बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए की राह आसान हो सकती है।
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वैसे भी, बिहार और यूपी में इंडिया गठबंधन को पहले से ही एक के बाद एक झटकों का सामना करना पड़ा है। पहले बिहार में जदयू इंडिया गठबंधन से निकलकर एनडीए में शामिल हो गया और फिर यूपी में जयंत चौधरी के आरएलडी ने भी कुछ ऐसा ही किया। इन दोनों दलों के निकलने से अब बिहार में एक बड़े वोट बैंक के छिटकने की आशंका है। यूपी में आरएलडी के इंडिया गठबंधन से निकलने से पश्चिमी यूपी में इसका बड़ा असर हो सकता है। 

ऐसे में अब असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के आगामी लोकसभा चुनावों में इन दो महत्वपूर्ण हिंदी भाषी राज्यों में कई सीटों पर चुनाव लड़ने की संभावना से इंडिया गठबंधन के सामने एक और चुनौती आन खड़ी हो गई है।

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क़मर वहीद नक़वी
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