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सीता के बिना राम की मूर्ति कैसे बन सकती है?

राम के भक्त समय-समय पर पत्नी निर्वासक, कृष्ण के भक्त दूसरों की बीवियाँ चुराने वाले और शिव के भक्त अघोरपंथी हुए हैं। 
-राम मनोहर लोहिया
क़मर वहीद नक़वी

कवि-ऋषि वाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य को लव-कुश ने राम के दरबार में गाया तो राम अत्यंत प्रसन्न हुए और उनसे पूछा कि क्या पुरस्कार चाहिए! 

लव और कुश ने जवाब दिया कि वे प्रसिद्ध रानी सीता से मिलना चाहते हैं, जिनको राम ने रावण के चंगुल से छुड़ाया था। राम ने उनको अपने हाथ में लेकर एक गुड़िया दिखाई - सोने की बनी हुई एक गुड़िया। 

‘मेरे पास अब यही सीता रह गई हैं।’ देख-सुन कर लव और कुश को आघात लगा। एक गुड़िया?! लव-कुश ने उनसे बहस की, उचित-अनुचित पर। राम ने उत्तर दिया कि सवाल उचित-अनुचित का नहीं, सवाल नियमों के पालन का है।

तो राम जिस तरह नियमों के पाबंद थे, उनके भक्त भी वैसे ही निकलेंगे न! उनसे इससे अधिक की उम्मीद करना व्यर्थ है। स्त्रियाँ, सत्ता के हाथों गुड़िया ही रह गईं और राम सरीखे  मर्यादा पुरुषोत्तम सत्ता तक पहुँचने के साधन। कवि बोधिसत्व ने लिखा है - भक्ति का इतिहास क्रूरता से भरा हैं।

क्रूरता का इतिहास लंबा होता है, दीर्घजीवी भी। सदियाँ लाँघती हुई क्रूरताएँ चली आती हैं और सबसे पहले पीढ़ियों का विवेक नष्ट कर देती हैं। अपनी ही परंपरा को उलट देती है। 

यह परंपरा को उलटना ही तो है कि अयोध्या के सरयू तट पर अकेले राम की मूर्ति लगेगी, बिन सीता के। राम से सीता को अलगाना भी रामभक्तों की क्रूरता है ।

देखो न राम, क्या करने जा रहे तुम्हारे अविवेकी भक्तगण! तुमसे सदेह सीता अयोध्या की जनता ने छीन ली और तुम सीता की मूर्ति लेकर जीते रहे। अब तो तुम्हारे नाम पर राजनीति करने वालों ने वह मूर्ति भी छीन ली। अब तुम फिर से अकेले जीने के लिए तैयार रहो। जब अयोध्या में तुम्हारी प्रतिमा बन जाएगी तो तुम छलछलाई आँखों से सरयू का पानी निहारा करोगे। हर रोज़ जल समाधि लोगे, इस क्रूरता और धृष्टता के खिलाफ़। अभिशप्त दांपत्य का दंश तुमसे बेहतर भला कौन जानेगा, जिसे सुख हमेशा छलता रहा! सीता का देशनिकाला आज तक जारी है। भक्तों ने आपके दुखों से कुछ सीखा नहीं। फिर आपको सरयू तट पर अकेले खड़ा कर देंगे। जहाँ अकेले खड़े होकर तुम अपने को जल समाधि लेते स्मरण करते रहोगे। सीता के साथ न ढंग से जी सके, न साथ मरना नसीब हो सका। यह कैसा देवता था जो मनुष्यों से भी बदतर दुख झेलता रहा। 

एक बार आपने दिया था सीता को निर्वासन का दंड, दूसरी बार आपके भक्तों ने!

सीता अब तक बनवास पर हैं। वे जंगल से जब-जब लौटीं, घर और देश से निकाली गईं। जंगल की पनाह में रहीं वे हमेशा। सीता-अपहरण और उनकी अग्निपरीक्षा का दंश और धोबी के कहने पर उनका निर्वासन, ये तीन घटनाएँ स्त्री समुदाय के कलेजे में कील की तरह धँसी हैं। जाने कैसे उसके बाद भी स्त्रियाँ राम से प्रेम कर बैठती हैं। मर्यादाएँ, राम बनाती हैं, सीता को निर्वासित करती हैं। सदियों पुराना चलन है। मैं इस पौराणिक क्रूरता के कारण कभी राम से नहीं जुड़ पाई। मज़ाक में जय श्रीराम भी नहीं बोल पाती अगर एक प्रकांड विद्वान यह न बताते कि जय श्रीराम के श्री का अर्थ सीता है।

मैं उस इलाके से हूँ जहाँ स्त्रियाँ लोकगीतों में दुख व्यक्त करती हैं कि सीता जैसी बेटी देना, सीता जैसा भाग्य न देना। जिसके भाग्य में दुख के सिवा कुछ नहीं। (निराला याद आ जाते हैं… दुख ही जीवन की कथा रही।) कुछ गीतों में यह भी गाती हैं कि पश्चिम देश में अपनी बेटी नहीं ब्याहेंगी। सीता के ससुराल से मोह भी है और भय भी है। दुलार भी है और रार भी है। जो नगर मिथिला की बेटी को न सँभाल सका, उसे महल में टिकने न दिया, जिसने रानी होते हुए बनवासियों-सा जीवन जिया, सुख जिसने देखे नहीं, पति सुख भोगा नहीं, सिंगल मदर की भूमिका में रही और अकेले अपने दम अपने दो बेटे बड़े किए, जिसकी छाया हिंदी फिल्मों में बरसों तक दिखती रही (मेरे करण-अर्जुन आएँगे)।

धर्म का भी सामाजिक आधार होता है। उससे अलग हम कैसे देख सकते हैं? अयोध्या क्या सिर्फ राम की नगरी है? सीता का घर कहाँ है? कहाँ होता है स्त्री का घर?
will ram be alone on saryu river without sita - Satya Hindi

राम कोई सामान्य पुरुष नहीं थे, वे पुरुषोत्तम थे, एक-पत्नीव्रत। बिन सीता के राम के घुटन भरे जीवन की कल्पना कोई भावुक मन ही कर सकता है। फिर यह कैसी सोच है कि इस युग में भी सीता को राम से अलग करके देखा जाए। बिन सीता राम की मूर्ति कैसी लगेगी? निष्प्राण, निस्तेज जैसे उस वक्त थी, जब वे पत्ते-पत्ते-बूटे-बूटे से पूछ रहे थे सीता का पता - हे खग, मृग हे मधुकर श्रेणी, तुम देखि सीता मृगनयनी...

अयोध्या के सरयू तट पर राम की 221 मीटर ऊँची मूर्ति लगने की घोषणा को जाने कैसे हज़म कर गए अयोध्या के लोग। सुनते हैं, यह मूर्ति काँसे की होगी और सरदार पटेल की मूर्ति से ज़्यादा बड़ी होगी। अकेली राम की मूर्ति। सीता कहां हैं? अयोध्या की कुलवधू, रानी सीता कहाँ हैं? राम की मूर्ति अकेली सरयू तट पर खड़ी होकर किसका रास्ता देखेगी?

सरयू पर अकेले राम उस वक्त थे जब वे जल समाधि लेने जा रहे थे। चुपचाप सरयू के भीतर, गहरे पानी में समाते चले गए।बिना सीता के राम का अस्तित्व कहाँ? जितनी भी तस्वीरें देखीं, मूर्तियाँ देखीं, कहीं भी राम सीता और लक्ष्मण के बिना नहीं हैं। हनुमान तक की उपस्थिति होती है उनके साथ। ये दोनों न भी हों तो राम के बग़ल में सीता होती हैं। या राम और लक्ष्मण साथ होते हैं। कहीं देखी नहीं अकेले राम की उपस्थिति। राम की अकेली मूर्ति स्थापित कर क्या सीता को फिर से अयोध्या से बेदख़ल करने की तैयारी है या सीता को फिर से बनवास देने की? उनके राम को अकेले पूजा स्वीकार नहीं होती है। रामभक्तों को इतना तो मालूम होना चाहिए।

उन्हें रामचरित मानस का यह श्लोक अवश्य याद करना चाहिए जिसमें स्पष्ट रूप से राम और सीता के संग-साथ का ज़िक़्र है।

नीलाम्बुज श्यामलकोमलाङ्गं

सीतासमारोपितवामभागम् ।

पाणो महासायकचारुचापं 

नमामि रामं रघुवंशनाथम।। 

अर्थात

नीलकमल से कोमल अंग वाले राम जिनकी बाईं और सीता अवस्थित हैं, धनुष-वाण से युक्त है… उन्हीं रघुवंशनाथ को हम नमन करते हैं। 

रघुकुल रीति से ठीक उलट सिर्फ राम की मूर्ति की स्थापना, सीता को अपदस्थ करने की साज़िश है या अज्ञानता या बेध्यानी? क्या सीता अयोध्या के या रामभक्तों के ज़ेहन से निकल चुकी हैं? क्या सीता बनवास से कभी लौटीं ही नहीं? सीता का बनवास उस नगर की साज़िश था जिसका अभिशाप आज तक एक समुदाय ढो रहा है। क्या सीता की उदासी ही अयोध्या शहर पर छाई रहती है कि कभी रौनक़ दिखाई नहीं देती। जैसे वीरानी-सी छाई हो। अयोध्या बस कर भी कभी नही बसी। सीता की अनुपस्थिति उस नगर ने सदियों से महसूस की और बहुत-कुछ भुगता भी है।

एक बार फिर सीता को साइड रखने की साज़िश शुरू हो चुकी है। बिन सीता राम, सरयू तट पर अकेले विराजेंगे और सीता कहीं दूर बनवास भोग रही होंगी। 

राम जब बिना सीता के अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे तब उन्होंने सीता की कमी पूरी की थी सोने की सीता बनवा कर। सनातन धर्म में अगर पत्नी होते हुए अनुपस्थित हो किसी कारण से, तो पत्नी की जगह लोटा बाँध कर यज्ञ में बैठने की परंपरा रही है या मूर्ति बनवाने की। राम राजा थे, सो सोने की मूर्ति बनवाई। उस वक्त सीता बनवास भोग रही थीं, राम अकेले यज्ञ में बैठ नहीं सकते थे, सो सोने की सीता बनाई गईं। सीता तब मूर्ति रूप में यज्ञशाला में उपस्थित रहीं। अब रामभक्त राम की एकल मूर्ति बनाएँगे, विधुर राम की मूर्ति, जिनके साथ सीता कहीं नहीं होंगी। जाने कैसे लोग बिना सीता के राम की पूजा कर पाएँगे? 

सीता हमेशा बनवास में ही रहेंगी। सरयू तट पर उनके लिए कोई जगह नहीं। जब राजमहल में नहीं रह पाईं, अयोध्या ने दो-दो बार बनवास दिया तो अब क्या उम्मीद की जाए कि सीता की वापसी होगी। एकल राम की मूर्ति की घोषणा ने रामभक्तों के मंसूबे साफ़ उजागर कर दिए हैं। अगर एकल राम की मूर्ति ही लगानी है तो उस राम की लगाएँ जो बालक राम हैं, या धनुषबाण लिए, अकेले नहीं, लक्ष्मण के साथ खड़े हैं। राम कहीं अकेले नहीं दिखाई देते हैं। विवाहित राम कभी अकेले पूजा स्वीकार नहीं कर सकते। 

राम ही सीता के बिना अपना अस्तित्व नहीं मानते हैं। यहाँ तक की भक्तगण जो जय श्रीराम बोलते हैं, उसमें श्री राम के लिए नहीं, सीता के लिए प्रयुक्त होता है। अयोध्या में सीता को श्री कहते हैं, और राम के नाम से पहले सीता का नाम लेना अनिवार्य है। इसलिए राम के नाम के आगे श्री जोड़ कर जय श्रीराम कर दिया गया हालाँकि बहुत कम लोगों को यह बात पता होगी। जय श्रीराम बोलते समय भक्तों के जे़हन में सिर्फ राम की छवि उभरती होगी। यहाँ याद करा दें -

सियाराम मय सब जग जानि 

करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानि  

सिया और राम की इसी अभिन्नता पर फ़िदा होकर लोहियाजी गाँधीजी के उस सोच को काट देते थे जिसमें वे रामराज्य की बात करते थे। लोहियाजी कहते थे, ‘हमें रामराज्य नहीं, हमें सीताराम राज्य चाहिए।’

हम मूर्तिपूजक न होते हुए भी सीता के बिना राम की अकेली मूर्ति गवारा नही करेंगे। बिना शक्ति के भक्ति पूरी नहीं होती। राम की शक्ति तो मत छीनो भक्तो। राम और सीता भारतीय दांपत्य का महास्वप्न है। दुख-सुख से भरा हुआ। जिस मामले में देवता भी भूल कर बैठते हैं। 

ध्यान रहे कि रामायण में राम केवल तीन बारे रोए हैं - जब उनको पता चला कि सीता का अपहरण हो गया है, दूसरी बार तब जब लक्ष्मण को कहा कि सीता को जंगल में छोड़ आएँ, तीसरी बार तब जब सीता धरती में समा जाती हैं। हर बार वे सीता वियोग में रोए। 

चौथी बार राम के रोने का समय आ रहा है, उनके अविवेकी भक्तों के कारण।

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