सुधा मूर्ति बड़ा नाम है। इंफोसिस फाउंडेशन की चेयरपर्सन और परोपकारी हैं। बड़ी उपलब्धि वाली हैं और धनाढ्यों में गिनी जाती हैं। लेकिन उनकी कुछ पुरानी तसवीरों के बाद से सोशल मीडिया पर एक नयी बहस छिड़ गई है। बहस यह छिड़ी है कि इस जमाने में भी राजशाही को सम्मान देने का वही पुराना तरीक़ा कायम है? क्या अकूत संपत्ति वाले और बड़ी उपलब्धि वाले लोगों का सम्मान देने का यह अपना तरीक़ा है या सामंतवादी सोच वाले समाज या जमाने की एक झलक?