कोरोना का संकट तो देर-सबेर टल ही जाएगा। हो सकता है लाखों या फिर करोड़ों लोगों की जान लेकर ही कोरोना देवी का ग़ुस्सा शांत हो। लेकिन क्या कोरोना के बाद की दुनिया वैसे ही रहेगी जैसी कोरोना के पहले थी?
बीते कुछ दिनों में हरेक जागरूक हिन्दुस्तानी का वास्ता इस सवाल से ज़रूर पड़ा होगा कि पश्चिम के विकसित देशों की अपेक्षा क्या भारत पर कोरोना की मार कम पड़ी है? क्या भारत के आँकड़े देश की सच्ची तसवीर दिखा रहे हैं?
हम भारतीय बड़े ख़ुशक़िस्मत हैं कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। मैं यह इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि मैं कोई मोदी का भक्त हूँ। मैं इसलिए कह रहा हूँ कि मोदी जी ग़रीबी में पले और बड़े हुए हैं।
क्या दिल्ली का दंगा किसी राजनीतिक प्रयोग का नतीजा था? क्या यह प्रयोग सफल रहा? क्या यह प्रयोग दूसरे जगहों पर भी दुहराया जाएगा? ये सवाल पूरे देश को मथ रहे हैं।
“इसलाम ख़तरे में है” की तर्ज़ पर आरएसएस और बीजेपी ने “हिंदू धर्म ख़तरे में है” का नारा लगाना और इस की आड़ में चुनाव जीतने के लिए हिंदुओं के एक बड़े तबक़े को बरगलाना शुरू कर दिया है।
दिल्ली के चुनाव ने यह साबित कर दिया है कि जो इतिहास से सबक़ नहीं लेते वे इतिहास को दोहराने के लिए अभिशप्त होते हैं। क्या आप और बीजेपी में यही फ़र्क है?
अमेज़न और 'वाशिंगटन पोस्ट' के मालिक जेफ़ बेज़ो पर प्रधानमंत्री मोदी के मंत्रियों के बयान से क्या 'वाशिंगटन पोस्ट' झुक जाएगा? क्या उसाे काबू किया जा सकता है?
जेएनयू में हिंसा हुई। दर्जनों नकाबपोशों द्वारा। तेज़ाब, लाठी, लोहे की रॉड के साथ होस्टल में घुस कर निहत्थे छात्रों और अध्यापकों पर हमला किया गया। तीन घंटे तक। क्या विश्वविद्यालय प्रशासन, पुलिस, केन्द्रीय सरकार की शह के बिना यह संभव है? क्या इस हिंसा के लिए साज़िश रची गई। देखिए वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष और शीतल पी सिंह की चर्चा।
नागरिकता क़ानून को लेकर चल रहे जोरदार विरोध के अलावा अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भी हालात ठीक नहीं हैं। लोगों में ग़ुस्सा है और नरेंद्र मोदी को इसे समझने की ज़रूरत है।
क्या मोदी सरकार भारत देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की तैयारी मैं है? इस सवाल से कुछ लोग चौंकेंगे, कुछ ख़ुश होंगे तो कुछ निराश। यह एक सवाल है जिसका इंतज़ार लंबे समय से संघ परिवार कर रहा था।