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टीपू सुल्तान - हिंदुओं का दोस्त या दुश्मन?

कर्नाटक में विधानसभा चुनाव से पहले टीपू सुल्तान का विवाद फिर से छेड़ने की कोशिश है। कर्नाटक बीजेपी प्रमुख नलिन कतील ने आख़िर क्यों कहा कि टीपू के समर्थकों को मार देना चाहिए? आख़िर टीपू सुल्तान की विचारधारा क्या थी और कृत्य कैसा था? पढ़िए, आशुतोष की साढ़े तीन साल पहले 2019 में लिखी टिप्पणी।
आशुतोष
बचपन से किताबों में पढ़ता आया था कि मैसूर का शासक टीपू सुल्तान एक नायक था जिसने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी। कुछ इतिहासकार उसे भारतीय इतिहास का पहला स्वतंत्रता सेनानी भी कहते हैं। लेकिन बीजेपी और आरएसएस बता रहे हैं कि वह खलनायक था। इनके मुताबिक़, टीपू सुल्तान ने न केवल हिंदुओं का क़त्लेआम किया बल्कि हिंदुओं और ईसाईयों का ज़बरन धर्मांतरण भी कराया।
हिंदुत्ववादी टीपू को जेहादी बता रहे हैं और कहते हैं कि वह भारत में इस्लाम का राज स्थापित करना चाहता था। ऐसे में बीजेपी यह सवाल पूछती है कि भला ऐसे शख़्स के लिये कैसे उत्सव मनाया जा सकता है? क़रीब साढ़े तीन साल पहले कर्नाटक में सरकार बनाते ही येदियुरप्पा ने 10 नवंबर को होने वाले टीपू उत्सव को रद्द कर दिया। यानी वह खलनायक था। ऐसे में सवाल यह उठता है कि कौन सा इतिहास सही है, वह जो बचपन में पढ़ाया गया था या वह जो बीजेपी और संघ अब बता रहे हैं? यानी टीपू सुल्तान कौन है? हिंदुओं का दोस्त या दुश्मन?  
बीजेपी इतिहास की दो घटनाओं का जिक्र करती है। उसके मुताबिक़, टीपू ने कूर्ग इलाक़े के कोडावा में भारी क़त्लेआम किया था। इसके साथ ही वह यह भी बताती है कि मालाबार में नायरों के साथ भी उसने भयानक अत्याचार किया था।
बीजेपी यह भी कहती है कि टीपू ने कर्नाटक के मंगलौर में कैथोलिक ईसाइयों का ज़बरन धर्म परिवर्तन कराया था। इतिहास में ये घटनायें दर्ज हैं। और सही हैं। इसमें अतिश्योक्ति नहीं है। यह सच है कि टीपू ने कोडावा में हिंदुओं के साथ बर्बर बर्ताव किया था। लेकिन इसको इस नज़र से व्याख्यायित करना कि वह एक कट्टर मुसलमान था जो इस्लामिक राज्य बनाना चाहता था, ग़लत है। 
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टीपू एक राजा था और किसी भी मध्ययुगीन राजा की तरह उसने बग़ावत करने वाली प्रजा का मनोबल तोड़ने के लिये अत्याचार किया। मध्य युग के राजाओं का इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है। इस आधार पर टीपू को शैतान बताना या हिंदुओं का दुश्मन कहना, इतिहास की ग़लत व्याख्या करना होगा।
इतिहास में ऐसे ढेरों उदाहरण हैं, जो ये साबित करते हैं कि टीपू सुल्तान ने हिंदुओं की मदद की। उनके मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया। उसके दरबार में लगभग सारे उच्च अधिकारी हिंदू ब्राह्मण थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है श्रंगेरी के मठ का पुनर्निर्माण।
श्रंगेरी के मठ की हिंदू धर्म में बड़ी मान्यता है। आदि शंकराचार्य ने 800 वीं शताब्दी में जिन चार हिंदू पीठों की स्थापना की थी, श्रंगेरी का मठ उसमें से एक था। 1790 के आसपास मराठा सेना ने इस मठ को तहस-नहस कर दिया था। मूर्ति को तोड़ दिया था और सारा चढ़ावा लूट लिया था। मठ के स्वामी को भागकर उडूपी में शरण लेनी पड़ी थी। स्वामी सच्चिदानंद भारती तृतीय ने तब मैसूर के राजा टीपू सुल्तान से मदद की गुहार लगायी थी। दोनों के बीच तक़रीबन तीस चिट्ठियों का आदान-प्रदान हुआ था। ये पत्र आज भी श्रंगेरी मठ के संग्रहालय में पड़े हैं।
टीपू मराठा सेना के इस काम से काफ़ी कुपित था। उसने एक चिट्ठी में स्वामी को लिखा - “जिन लोगों ने इस पवित्र स्थान के साथ पाप किया है उन्हें जल्दी ही अपने कुकर्मों की सजा मिलेगी। गुरुओं के साथ विश्वासघात का नतीजा यह होगा कि उनका पूरा परिवार बर्बाद हो जायेगा।”
मराठा हिंदू थे। और हिंदुत्ववादी मराठा शासन को हिंदुओं के स्वर्णकाल के रूप में देखते हैं। सावरकर और गोलवलकर जैसे संघ के विचारक मराठा शासन में हिंदू राष्ट्र की छवि तलाशते हैं। उनके पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि मराठा सेना ने श्रंगेरी की शारदापीठ के साथ ऐसा बर्बर व्यवहार क्यों किया? वे यह तर्क देते हैं कि दरअसल ये काम पिंडारियों का है। पिंडारी अपने स्वभाव में बर्बर थे। पर सवाल यह है कि मराठा सेना में उन्हें शामिल किसने किया था? इन पिंडारियों ने मराठाओं की बंगाल और ओडिशा विजय यात्रा में बड़ी भूमिका निभायी थी। और वे मराठा सेना का अहम हिस्सा थे। ऐसे में पिंडारियों के मत्थे पाप मढ़ कर पीछा नहीं छुड़ाया जा सकता। 
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हक़ीक़त यह है कि हिंदुओं के सबसे अहम और ऐतिहासिक मठ को मराठाओं की सेना ने उजाड़ा था तो टीपू सुल्तान ने उसे दुबारा बनवाया था। उसके पुनर्निर्माण के लिये अपना ख़ज़ाना खोल दिया था। बदले में टीपू ने मठ के स्वामी से जो माँगा वह भी अहम है। टीपू ने स्वामी से निवेदन किया कि वह उनके लिये यानी एक मुसलमान के लिये ‘सतचंडी’ और ‘सहस्रचंडी’ का पाठ करें ताकि उसे ईश्वर का आशीर्वाद मिले।
अगर टीपू कट्टरपंथी मुसलमान होता तो मठ का निर्माण क्यों करवाता? अपने लिये दुआ के तौर पर हिंदू धार्मिक तरीक़े से पाठ की बात क्यों करता?
इतना ही नहीं, टीपू ने मैसूर के पास नंजनगुड के श्री कंटेश्वर मंदिर के शिवलिंग को पन्ना से बनवाया था। मैसूर गैजेट के संपादक श्रीकंटय्या के मुताबिक़, टीपू 156 मंदिरों को नियमित रूप से वार्षिक दान देता था। इन तथ्यों को बीजेपी के नेता क्यों नज़रअंदाज़ कर देते हैं? 
इतिहास में इस बात के भी प्रमाण उपलब्ध हैं कि टीपू ने ब्रिटेन की सेना में काम करने वाले मुसलमानों को भी नहीं बख़्शा था। ये मुसलमान अंग्रेज़ सेना में घुड़सवार के तौर पर नौकरी करते थे।

येदियुरप्पा ने पहनी थी टीपू पगड़ी

इतिहास से इतर अगर देखें तो भी साफ़ दिखता है कि बीजेपी के नेताओं का कुछ साल पहले तक टीपू को देखने का नज़रिया अलग था। वर्तमान मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने जब बीजेपी छोड़ी थी तो वह टीपू के स्मारक पर श्रद्धा सुमन चढ़ाने गये थे। टीपू एक ख़ास तरीक़े की पगड़ी पहनता था और तलवार रखता था। येदिरप्पा ने टीपू पगड़ी और तलवार भी पहनी थी। ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर मौजूद हैं। 

शेट्टार ने भी की तारीफ़

इतना ही नहीं, बीजेपी के एक और पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार की भी तसवीरें हैं जिनमें वह टीपू की पगड़ी पहने नज़र आते हैं। शेट्टार ने तो टीपू की भूरि-भूरि प्रशंसा भी की है। ‘क्रूसेडर फ़ॉर चेंज’ नाम की एक पत्रिका में शेट्टार का संदेश भी मिल जाता है। इस संदेश में शेट्टार ने लिखा - “आधुनिक राज्य के उनके विचार, राजकाज चलाने का उनका तरीक़ा, उनकी सैनिक दक्षता, सुधार को लेकर उनका उत्साह, उन्हें एक ऐसे नायक के तौर पर स्थापित करता है जो अपने समय से बहुत आगे था... और इतिहास में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।’’

अब भले ही आरएसएस कुछ भी कहे पर सच यही है कि आरएसएस ने भी टीपू की प्रशंसा की है। 1970 के दशक में संघ ने कर्नाटक गज़ेटियर नामक एक पुस्तिका रिलीज़ की थी जिसमें टीपू को देशभक्त बताया गया था। मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 2017 में कर्नाटक विधानसभा के संयुक्त सत्र में टीपू की जी भरकर तारीफ़ की थी। कोविंद सुप्रीम कोर्ट में वकालत कर चुके हैं और बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं में शुमार थे। उन्होंने कहा था, “अंग्रेज़ों से लड़ते हुए वह वीरगति को प्राप्त हुए। वह विकास कार्यों में भी अग्रणी थे। साथ ही युद्ध में मैसूर राकेट के इस्तेमाल में भी उनका कोई सानी नहीं था।” 

बीजेपी के नेताओं ने कोविंद के भाषण पर लीपोपोती करने की कोशिश की थी। पार्टी की तरफ़ से कहा गया कि वह कांग्रेस सरकार का लिखा हुआ भाषण पढ़ रहे थे। मुख्यमंत्री सिद्धारमैय्या ने इसके जवाब में कहा था कि कोविंद ने अपना लिखा भाषण पढ़ा था।
अब इन उदाहरणों के बाद क्या कहा जाये! बीजेपी और आरएसएस के नेताओं का हृदय परिवर्तन कैसे हो गया। उनकी नज़र में टीपू नायक से खलनायक कैसे बन गया? क्या इसके पीछे वोट बैंक की राजनीति है या फिर यह बदले राजनैतिक माहौल में धर्म विशेष के नायकों को खंडित करने के किसी कार्यक्रम का हिस्सा है? 
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आशुतोष
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