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अश्विन (फ़ाइल फ़ोटो)साभार: ट्विटर/आनंद (सिद्धार्थ)

अश्विन महानतम गेंदबाज़, फिर टीम में जगह के लिए संघर्ष क्यों?

अश्विन का प्रदर्शन कैसा रहा है ये आँकड़े ही बताते हैं। मुरलीधरन और अश्विन ने 350 विकेट के लिए 66 टेस्ट खेले। अगर मुरलीधरन ने इतने विकेट लेने के लिए 21632 गेंदें फेंकीं तो अश्विन ने 18685 फेंक कर इतने ही विकेट चटका दिए। हैडली और डेल स्टेन ने 350 विकेट के लिये 69 टेस्ट, लिली ने 70, मैक्ग्रा ने 74, मार्शल और रंगना हेरात ने 75 टेस्ट खेले। भारतीय खिलाड़ियों से तुलना करें तो आँकड़े अश्विन को और बड़ा बना देते हैं। कुंबले ने 77, हरभजन ने 83 और कपिल देव ने 100 टेस्ट खेले।
आशुतोष

क्या आप यह सोच सकते हैं कि जो खिलाड़ी देश के इतिहास में सबसे बड़ा गेंदबाज़ है, उसे भारतीय टीम में जगह बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है? ऐसा भारत में ही संभव है। आर. अश्विन निर्विवाद रूप से आँकड़ों के लिहाज़ से भारत में पैदा हुए अबतक के सभी खिलाड़ियों से न केवल बड़ा है बल्कि मीलों आगे है। जी हाँ, यह सच है। अश्विन ने अनिल कुंबले, हरभजन सिंह, बिशन सिंह बेदी, प्रसन्ना, चंद्रशेखर, कपिल देव, वीनू मांकड, ग़ुलाम अहमद, ज़हीर खान, जैसे महान खिलाड़ियों को पीछे छोड़ दिया है। यह वह खिलाड़ी है जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को सम्मान दिलाया। भारत के लिए मैच जीते।

वीनू मांकड और ग़ुलाम अहमद ने अगर 1950 और 1960 के दशक में अपनी स्पिन गेंदबाज़ी से विरोधियों के हौसले पस्त किये तो बेदी, प्रसन्ना और चंद्रशेखर ने 1970 और 1980 के दशक में विरोधी बल्लेबाज़ों के दिल में दहशत मचा दी थी। चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता था कि अगर उनकी लाइन लेंथ अगर मिल गयी तो फिर बल्लेबाज़ों की टाँगें काँपने लगती थीं। बेदी के बारे में टोनी ग्रेग कहते थे कि उन्होंने एक ओवर में कभी एक जैसी दो गेंदें नहीं फेंकीं। उनकी गेंदबाज़ी स्लो मोशन में एक ख़ूबसूरत कविता थी। बेदी की तरह ही प्रसन्ना की फ़्लाइट और लूप का कोई जवाब नहीं था। इयान चैपेल जैसे दिग्गज प्रसन्ना को दुनिया का सबसे बेहतरीन ऑफ़ स्पिनर मानते थे। लेकिन प्रसन्ना ने पहले सौ विकेट तो उन्नीस टेस्ट में ले लिये थे पर अजीत वाडेकर के कप्तान बनने के बाद उनकी जगह टीम में ख़तरे में पड़ गयी और उनकी जगह उनसे कम प्रतिभाशाली वेंकट राघवन को जगह मिलने लगी। वैसे ही जैसे पिछले दिनों अश्विन के साथ हुआ। प्रसन्ना ने अपना पूरा दर्द अपनी आत्मकथा ‘वन मोर ओवर’ में बयाँ किया है।

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इस पीढ़ी के बाद कपिल देव का उदय हुआ। कपिल के पहले भारत में तेज़ गेंदबाज़ों की कोई पौध नहीं हुआ करती थी। कपिल ने पहली बार दुनिया को बताया कि स्विंग के खेल में भारतीय भी पीछे नहीं हैं। कपिल की अगुवाई में भारत ने 1983 का वर्ल्ड कप जीता। जवागल श्रीनाथ और ज़हीर ख़ान के बाद आज भारत गर्व से कह सकता है कि विपक्षी टीमों के बल्लेबाज़ों की टाँगें कँपाने वाले तेज़ गेंदबाज़ भारत के पास हैं। जसप्रीत बुमराह को दुनिया एक अजूबे के तौर पर देख रही है तो मुहम्मद शमी की गेंदबाज़ी के सब क़ायल हैं। पर इनके ठीक पहले वाली पीढ़ी में दो विश्व स्तरीय स्पिनर थे- अनिल कुंबले और हरभजन सिंह। कुंबले टेस्ट मैचों में सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाले भारतीय गेंदबाज़ हैं। जबकि हरभजन ने चार सौ से अधिक विकेट लिये हैं।

कुंबले लेग ब्रेक फेंका करते थे। उनकी गेंदों की रफ़्तार से वहम हो सकता था कि वह मध्यम गति के गेंदबाज़ हैं। स्पिनर होने के बाद भी उनकी गेंदों में स्पिन कम होती थी। फ़्लाइट और लूप उनकी ख़ासियत नहीं थी। लाइन, लेंथ और गति के बल पर वह दुनिया के सबसे बेहतरीन बल्लेबाज़ों को पानी पिलाते रहते थे। एक गेंदबाज़ के तौर पर उनका बहुत सम्मान था। उनके मुक़ाबले हरभजन सिंह शास्त्रीय गेंदबाज़ थे। ऑफ़ स्पिन करते थे। दोनों गेंदबाज़ों ने भारतीय ज़मीन से बाहर भी भारत को जीत दिलायी। बेदी, प्रसन्ना और चंद्रशेखर की तुलना में कुंबले और हरभजन को पेस गेंदबाज़ों का अच्छा समर्थन मिला। भारत के क्रिकेट इतिहास में पहली बार स्पिन और तेज़ का बेहतरीन कांबिनेशन बना और भारतीय टीम दुनिया की सबसे अच्छी तीन टीमों में से एक हो गयी। सौरव गांगुली और महेंद्र सिंह धोनी की शानदार कप्तानी ने भी भारतीय टीम की क़िस्मत बदलने में मदद की। 

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नंबर 1 टीम के लिए बेहतर गेंदबाज़ी ज़रूरी

आज की तारीख़ में भारतीय टीम विश्व की सबसे अच्छी टीम है। भारत के पास विराट कोहली जैसा बल्लेबाज़ है जिसको भारत का अब तक का सबसे शानदार बल्लेबाज़ माना जाता है। लेकिन भारतीय टीम अगर आज दुनिया की सबसे शानदार टीम है तो अपनी गेंदबाज़ी की वजह से। उसके पास तीनों फ़ॉर्मेट में एक से बढ़कर एक गेंदबाज़ हैं। सबसे बड़ी बात अगर उसके पास पेस बैट्री है तो स्पिन में भी दिग्गज गेंदबाज़ों की कमी नहीं है। आर. अश्विन, रविंद्र जडेजा का मुक़ाबला अगर टेस्ट में नहीं है तो वन डे में कुलदीप यादव और युजवेंद्र सिंह चहल हैं। उनके पीछे वाशिंगटन सुंदर, क्रुणाल पंड्या जैसे गेंदबाज़ भी हैं। जडेजा वन डे में भी मज़बूत दावेदार है। लेकिन अश्विन को टेस्ट तक ही सीमित कर दिया गया है। उसमें भी उसे पिछले एक साल तक जगह नहीं मिली। जडेजा को उस पर तरजीह दी गयी।

कहा यह जाता है कि फ़ील्डिंग और बल्लेबाज़ी में जडेजा अश्विन पर भारी है। यह तर्क गढ़ा हुआ है या गढ़ा जाता है, यह कहना तो मुश्किल है। क्योंकि अश्विन जडेजा पर गेंदबाज़ी के लिहाज़ से हमेशा बीस पड़ेंगे। आँकड़े यह कहानी ख़ुद कहते हैं।

सच्चाई तो यह है कि भारत के इतिहास का कोई भी गेंदबाज़, चाहे वह पेस बॉलर हो या स्पिन, वह अश्विन का मुक़ाबला नहीं कर सकता। उसकी प्रतिस्पर्धा दुनिया के सर्वकालिक गेंदबाज़ों से है। ताज़ा आँकड़े इस बात के गवाह हैं। अश्विन ने विशाखापट्टनम के टेस्ट तक महज़ 66 टेस्ट में 350 विकेट झटक लिए हैं। इतने कम टेस्ट में सिर्फ़ श्रीलंका के मुथैया मुरलीधरन ने ही इतने विकेट लिए हैं। अगर अश्विन की तुलना महानतम गेंदबाज़ों से करें तो हम भारतीयों का सीना और चौड़ा होता है। अश्विन ऑस्ट्रेलिया के टेनिस लिली, ग्लेन मैकग्रा और शेन वार्न, न्यूज़ीलैंड के रिचर्ड हैडली, वेस्ट इंडीज़ के मैलकम मार्शल से भी आगे है। मैं इसमें कुंबले और हरभजन को नहीं जोड़ रहा हूँ क्योंकि ये काफ़ी पीछे हैं।

मुरलीधरन से बेहतर रिकॉर्ड अश्विन का

मुरलीधरन और अश्विन ने 350 विकेट के लिए 66 टेस्ट खेले। पारी के हिसाब से मुरलीधरन का रिकॉर्ड बेहतर है। मुरलीधरन ने 106 पारी खेलकर 350 विकेट लिये तो अश्विन ने 124 पारी में यह फ़ासला तय किया। लेकिन इसमें एक पेच है। अगर मुरलीधरन ने इतने विकेट लेने के लिए 21632 गेंदें फेंकीं तो अश्विन ने 18685 फेंक कर इतने ही विकेट चटका दिए। मुरलीधरन ने अगर 28 बार एक पारी में पाँच विकेट लिये तो अश्विन ने 27 बार। दोनों ने ही एक टेस्ट में 7 बार दस या दस से ज़्यादा विकेट लिये। इन आँकड़ों से कहा जा सकता है कि मुरलीधरन से बेहतर अश्विन हैं। हैडली और डेल स्टेन ने 350 विकेट के लिये 69 टेस्ट, लिली ने 70, मैक्ग्रा ने 74, मार्शल और रंगना हेरात ने 75 टेस्ट खेले। भारतीय खिलाड़ियों से तुलना करें तो आँकड़े अश्विन को और बड़ा बना देते हैं। कुंबले ने 77, हरभजन ने 83 और कपिल देव ने 100 टेस्ट खेले।

आँकड़े साफ़ बताते हैं कि अश्विन की भारतीय गेंदबाज़ों से कोई तुलना नहीं है। इसके बाद भी अगर उसकी जगह टीम में पक्की न हो तो फिर क्या कहा जाये।

अश्विन की जगह पक्की क्यों नहीं ?

अश्विन की सबसे बड़ी ताक़त यह है कि वह एक बुद्धिजीवी खिलाड़ी है। खिलाड़ियों में इंटेलेक्चुअल। वह अपनी गेंदबाज़ी में हमेशा नये-नये प्रयोग करता है। वह ऑफ़ स्पिनर है लेकिन पिछले दिनों उसने लेग ब्रेक गेंदें भी डालने का अभ्यास किया है। उपलब्धियों के लिहाज़ से उसका योगदान विराट कोहली से किसी भी मायने में कम नहीं है। लेकिन उसको भारतीय पिचों का बादशाह बताकर उसे सीमित कर दिया गया है। जबकि विदेशी पिचों पर भी उसका प्रदर्शन ख़राब नहीं है। और अगर जडेजा से तुलना करें तो साफ़ पता चलता है कि उसकी अनदेखी करना ग़लत होगा। 

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भारत से बाहर अश्विन का प्रदर्शन हर मायने में जडेजा से बेहतर है। जडेजा ने अगर 15 टेस्ट में 35 की औसत से 58 विकेट लिये हैं तो अश्विन ने 26 टेस्ट में 31 की औसत से 108 विकेट लिये हैं। पर अक्सर कहा जाता है कि जडेजा अश्विन से बेहतर फ़िल्डर और बल्लेबाज़ है। यह कहकर अश्विन को बाहर करने का अर्थ है कि इसका कारण क्रिकेट के अलावा कुछ और है। अश्विन अगर किसी और टीम में होता तो उसको बाहर रखने के बारे में कोई सोचता ही नहीं। पर भारतीय क्रिकेट में ऐसा होता रहता है। अश्विन कोहली से कम नहीं है पर कुछ लोग उसे कम साबित करने में लगे रहे। ऐसे लोगों की वजह से ही भारतीय टीम इस बार विश्व कप नहीं जात पायी।
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