भाजपा ने शुक्रवार को रांची में रैली आयोजित की। रैली के बाद भाजपा नेता और कार्यकर्ता सीएम हेमंत सोरेन के सरकारी आवास तक मार्च करना चाहते थे। लेकिन उस रास्ते पर धारा 144 लगी हुई थी। पुलिस का कहना है कि भाजपा कार्यकर्ताओं के हाथों में पत्थर थे और वे सीएम आवास पर पथराव कर सकते थे। उनमें से काफी लोगों ने पुलिस पर पथराव भी किया।
झारखंड में भाजपा प्रायोजित मुहिम फेल होती नजर आ रही है। चंपाई सोरेन के वफादार साथी उन्हें अकेला छोड़कर वापस मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खेमे में लौट गए हैं। चंपाई जो दिल्ली में डेरा जमाए हुए थे, किसी भी बड़े भाजपा नेता से मिले, वापस रांची लौट गए हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कहा कि भाजपा ने हमारी पार्टी को तोड़ने और सरकार गिराने का जो घिनौना खेल खेला था, उसका पर्दाफाश हो गया है।
झारखंड में भी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। भाजपा यहां इस चुनाव को हिन्दू-मुसलमान एजेंडे पर लड़ना चाहती है। भाजपा नेता आदिवासियों को बांग्लादेशी बता रहे हैं। निशिकांत दूबे तो झारखंड के बंटवारे तक की बात कह रहे हैं। पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी कह रहे हैं कि मुसलमानों की जनसंख्या राज्य में बढ़ गई है। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी इसे मुद्दा बनाते हुए कहा है कि यह सब आदिवासियों के खिलाफ साजिश की जा रही है। जानिए पूरी बातः
झारखंड के हजारीबाग में सोमवार को मतदान था। लेकिन भाजपा सांसद और पूर्व मंत्री जयंत सिन्हा अपना वोट डालने नहीं पहुंचे। इस पर भाजपा ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया है।
आख़िर वह कौन सा फ़ार्मूला है, जिस अपना कर विपक्ष ने बीजेपी को झारखंड में पटकनी दे दी? अजेय मानी जाने वाली बीजेपी को किस तरह और किन कारणों से विपक्ष ने हरा दिया? सत्य हिन्दी के विशेष कार्यक्रम 'आशुतोष की बात' में सुनिए वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष का विश्लेषण।
बीजेपी झारखंड का चुनाव क्या इस वजह से हार गई कि मुख्यमंत्री रघुबर दास की कार्यशैली तानाशाहों जैसी थी या इस वजह से कि केंद्रीय नेतृत्व जल-ज़मीन-जंगल के मुद्दे नहीं उठा पाई?
तो क्या नागरिकता क़ानून और एनआरसी मोदी-शाह के काम नहीं आया? क्या झारखंड की जनता ने बीजेपी की राष्ट्रवाद-हिंदुत्व की नीति को नकार दिया है? क्या आर्थिक मसले चुनावों में ज़्यादा हावी हो रहे हैं? क्या बीजेपी के नेताओं का अहंकार ले डूबा?
इसे क्या माना जाए? क्या उग्र हिन्दुत्व की हार है? क्या यह मोदी-शाह की आक्रामक राजनीति की हार है? क्या यह बताता है कि बीजेपी लोगों से जुड़े मुद्दे नहीं उठा पाई?
इंडिया टुडे-एक्सिस माइ इंडिया का सर्वे का अनुमान है कि झारखंड में विपक्षी गठबंधन को 38-50 सीटें मिल सकती हैं, जबकि सत्तारूढ़ बीजेपी को 22-32 सीटों पर संतोष करना पड़ सकता है।
खनिजों से भरी ज़मीन से अमीर झारखंड के लोग बेहद ग़रीब हैं। जहाँ ग़रीबी का राष्ट्रीय औसत 28 फ़ीसदी है वहाँ झारखंड में यह 46 फ़ीसदी है। नया निवेश आया नहीं और पुराने में मंदी है। राम मंदिर, धारा 370 और एनआरसी के भरोसे बीजेपी चुनावी मैदान में है। बीजेपी का क्या होगा हाल? सत्य हिंदी पर देखिए 'शीतल के सवाल'।
पहले से ही आर्थिक मोर्चे पर और महाराष्ट्र में फ़ज़ीहत से ख़राब दौर से गुज़र रही बीजेपी के लिए झारखंड चुनाव में क्या प्याज की बढ़ती क़ीमतें बड़ा नुक़सान करेंगी?