न्याय को सुविधा के लिए अनुच्छेदों में बाँटा गया था। न्याय के लिए बनाई गई धाराओं का उद्देश्य यह कभी नहीं था कि एक दिन इन्हीं धाराओं को मनचाहे तरीके से जोड़ तोड़ के लोकतंत्र का गला घोंट दिया जाएगा। भारत में न्याय की बिखरती अवधारणा और न्याय का सत्ता-प्रेम इसलिए सामान्य होता जा रहा है क्योंकि जिन संस्थाओं से न्याय की आशा की गई थी वो स्वतंत्र रूप से अपनी निजी विचारधारा को न्याय के अनुच्छेदों में गूँथ रहे हैं। अपने इस कृत्य को वो ‘अवमानना के नोटिस’ से ढँक देना चाहते हैं ताकि लोग चर्चा करने मात्र से डरना शुरू कर दें।
क्या भारत में ‘संस्थागत-अन्याय’ लगातार पैर पसार रहा है?
- विमर्श
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- 29 Mar, 2025

देश में माफी का माहौल तैयार हो रहा है। लेकिन जिस तंत्र को अपने कपट और अहंकार के लिए माफी मांगनी चाहिए, वो नहीं मांग रहा। फिर भी न्याय के घोषित पुरोहित संतुष्ट हैं। न्याय को तोड़ा मरोड़ा जा रहा है। गरीबों को स्वाभिमान की गारंटी तो मिल रही है लेकिन इस देश में न्याय की गारंटी देने वाला कोई नहीं। आज स्तंभकार वंदिता मिश्रा को पढ़िएः