जानना या मानना? इंसान होने की शर्त क्या है? किसी ने कहा, मैं सोचता हूँ, इसलिए मैं हूँ। यानी, इंसान होने का मतलब है सोचने की ताक़त। लेकिन क्या सोचना इतना आसान है? क्या वह अपनेआप ही हो जाता है? जैसे हम साँस लेना सीखते नहीं, वैसे ही? थोड़ा सोचने पर हमें मालूम होता है कि किसी भी विषय पर सोचने के लिए ज़रूरी है उसके बारे में जानना। सिर्फ़ उस विषय के बारे में ही नहीं, उसके दूसरे विषयों से रिश्ते के बारे में भी। इसके मायने यह हुए कि सोचनेवाले हमसे पहले भी हुए हैं और हमारे साथ भी हैं, इस बात को ध्यान में रखकर और उनसे लगातार संवाद करते हुए ही हम सोचने का काम कर सकते हैं।
दकियानूसी सोच नहीं, जानने की उत्सुकता इंसान होने की शर्त
- वक़्त-बेवक़्त
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- 29 Mar, 2025

‘जानने की बातें’ भी सत्य को जानने के लिए निर्मल बुद्धि से विचार करके लिखी गई हैं। इनके लिखे 60 साल हो गए हैं। जानकारियाँ बढ़ी हैं, हमारी निगाह भी और फैली है। लेकिन इन किताबों में इंसान, प्रकृति, इंसानी दुनिया को लेकर जो उत्सुकता है, उसके प्रति जो लगाव है, और जानने से जानने की राह खोलने की जो कोशिश है, वह अभी भी उतनी ही ताज़ा है।
यह कहा जाता है कि इंसान दरअसल ज़मीन पर नहीं खड़ा होता, वह खड़ा होता है अपने पूर्वजों के कंधों पर, जो अपने पूर्वजों के कंधों पर खड़े हैं। इसलिए जब अपनी ऊँचाई का घमंड होने लगे तो सिर्फ़ यह सोच लें हम कि अगर पूर्वजों ने अपने कंधे हटा लिए तो फिर हम धड़ाम से गिर न पड़ेंगे!