विवाह का मौसम है। शादियों के न्योते मिल रहे हैं। हाल ही में एक शादी में शामिल होने के बाद सोचना शुरू किया कि क्यों हमने विवाह आदि के आयोजन के तरीक़ों पर बात करना बंद कर दिया है। कुछ समय पहले अपने लिए दो चीज़ें तय की थीं, एक दहेजवाली शादी में शामिल नहीं होना है और दूसरा जनेऊ या यज्ञोपवीत संस्कार में नहीं जाना है। मालूम हुआ कि इस निर्णय की रक्षा करने का मतलब प्रायः किसी भी शादी में न जाना है।
क्यों नहीं महसूस होती समाज के सड़ते जाने की दुर्गंध?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 15 Jul, 2019

यज्ञोपवीत संस्कार और विवाह ख़र्चीले होते जा रहे हैं और अब ये अपनी हैसियत दिखाने के लिए भी किए जाते हैं। ऐसे आयोजनों में दिखावा बढ़ता जा रहा है। विडंबना यह है कि माँ-बाप से ज़्यादा बच्चों की ज़िद इसका कारण है। जिन्होंने अपनी शादी सादगी से की, वे अपने बच्चों की शादी तड़क-भड़क के साथ करने को मजबूर हैं। लेकिन समाज का अगुवा तबक़ा इस मामले में कोई नज़ीर पेश नहीं करता।