‘‘राष्ट्रगीत में भला कौन वहभारत-भाग्य-विधाता है
राष्ट्र ध्वज, राष्ट्रगीत के मायने सबके लिए एक क्यों नहीं रह गए हैं?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 11 Jan, 2021

आम तौर पर प्रतीक का एक साझा अर्थ होता है। लेकिन क्या इन सारी नामवाचक, स्थानवाचक संज्ञाओं और कालसूचक संख्याओं का आशय या प्रतीकार्थ इस देश के सभी वासियों के लिए एक है? अगर एक के लिए ये सब उसके अपने वर्चस्व और दूसरे के लिए उसकी हीनता और उसके साथ की गई नाइंसाफी के बोधक हैं तो फिर कहना होगा कि हम एक जन नहीं हैं।
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है
मखमल टमटम बल्लम तुरही
पगड़ी छत्र चंवर के साथ
तोप छुड़ा कर ढोल बजा कर
जय-जय कौन कराता है
पूरब-पश्चिम से आते हैं
नंगे-बूचे नरकंकाल
सिंहासन पर बैठा
उनके तमगे कौन लगाता है
कौन कौन है वह जन-गण-मन
अधिनायक वह महाबली
डरा हुआ मन बेमन जिसका
बाजा रोज बजाता है’’