किसी भी कीमत पर व्यक्तिगत या निजी स्वतंत्रता की रक्षा की जानी चाहिए। प्रताप भानु मेहता ने फ्रांस में ‘शार्ली एब्दो’ पत्रिका के द्वारा हज़रत मुहम्मद साहब के कार्टूनों के छापे जाने के बाद हुई हिंसा और फिर उसपर चल रहे विवाद के सन्दर्भ में लिखते हुए इस पर ज़ोर दिया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कोई सीमा नहीं हो सकती।