आतंकवादी गुट जैश-ए-मुहम्मद एक बार फिर सुर्खियों में है। इसने जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में फ़िदायीन हमले की ज़िम्मेदारी ली है। इसका संस्थापक और प्रमुख मसूद अज़हर है। वही मसूद अज़हर जिसे अटल बिहारी वाजयेपी की सरकार ने इंडियन एयरलाइन्स के अपहृत विमान के मुसाफ़िरों के बदले छोड़ दिया था और जिसे लेकर ख़ुद तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह कंधार गए थे।
वाजपेयी सरकार का छोड़ा मसूद अज़हर बन गया भारत का नासूर
- विश्लेषण
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- 13 Mar, 2019

जैश-ए-मुहम्मद ने जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में फ़िदायीन हमले की ज़िम्मेदारी ली है। इसका संस्थापक और प्रमुख मसूद अज़हर है। वही मसूद अज़हर जिसे अटल बिहारी वाजयेपी की सरकार को छोड़ना पड़ा था।
अब इस आतंकी संगठन की करतूत के बाद फिर पूरे देश में दुःख है, गुस्सा है, क्षोभ है, प्रतिशोध की माँग है। प्रतिशोध की माँग यह भी है कि इस हमले को अंजाम देने वाले जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अज़हर को वापस देश में लाकर सजा दी जाए। तो क्या मसूद अजहर को सजा देना इतना आसान है?
आइये, इसकी पूरी कहानी देखते हैं और फिर शहादतों, देशभक्ति, जुमलों, और सत्ता की बदनीयतियों के अंतर्संबंध भी समझते हैं।
1994 में हुयी थी अज़हर की भारत में एंट्री
मसूद अज़हर सोमालिया और ब्रिटेन में दहशतगर्दी फैलाने के बाद 1994 में कश्मीर में घुसा और कुछ दिनों में ही फ़रवरी 1994 में धर दबोचा गया। तब कश्मीर में राष्ट्रपति शासन था और देश में प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हाराव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी। उसे छुड़ाने की कोशिशें तुरंत शुरू हो गई थीं। ख़ुद को अल फ़रान बताने वाले एक नए नवेले आतंकवादी संगठन ने कश्मीर में 6 विदेशी पर्यटकों का अपहरण कर लिया था और बदले में मसूद की रिहाई की माँग की थी।
नरसिम्हा राव सरकार ने मसूद की रिहाई की बात नहीं मानी, और पर्यटकों को छुड़ाने की कोशिश करते रहे। उसके बाद क्या हुआ सब थोड़ा धुंधला है- एक पर्यटक भाग निकलने में सफल हो गया था। एक का मृत शरीर मिला और बाक़ी चार का कभी कुछ पता नहीं चला।