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दिल्ली आबकारी नीति मामले में अरविंद केजरीवाल को शुक्रवार को जमानत मिल गई। उनको जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जाँच में देरी, लंबे समय तक जेल में रखने जैसी वजहों को संज्ञान में लिया। कुछ इसी तरह की वजहें बताते हुए अदालत ने इसी मामले में कई और आरोपियों को जमानत दे दी है। आप नेताओं मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, विजय नायर और भारत राष्ट्र समिति की के. कविता पहले ही जेल से बाहर आ गए हैं।
इन आरोपियों को जमानत देते हुए अदालत ने क्या-क्या टिप्पणी की है, यह जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर केजरीवाल के मामले में अदालत ने क्या कहा है। केजरीवाल इस मामले में जमानत पाने वाले चौथे हाई-प्रोफाइल नेता हैं। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली के सीएम को सीबीआई द्वारा गिरफ्तार करने के समय और तरीके पर सवाल उठाए हैं। सीबीआई द्वारा जाँच में असहयोग किए जाने का आरोप लगाने पर पीठ ने कहा, 'असहयोग का मतलब आत्म-दोषारोपण नहीं हो सकता, और इसलिए इस आधार पर सीबीआई द्वारा केजरीवाल की गिरफ्तारी अस्वीकार्य थी।' जस्टिस भुइयां ने कहा, 'जमानत एक नियम है, और जेल एक अपवाद है। सभी अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अभियोजन और मुकदमे की प्रक्रिया अपने आप में सज़ा का रूप न बन जाए।'
जस्टिस भुइयाँ ने कहा कि 'यह केवल ट्रायल कोर्ट द्वारा ईडी केस में अपीलकर्ता को नियमित रूप से जमानत देने के बाद पता चलता है कि सीबीआई सक्रिय हो गयी और हिरासत की मांग की। 22 महीनों से अधिक समय तक गिरफ्तारी की ज़रूरत महसूस नहीं हुई थी। इस तरह की कार्रवाई से गिरफ्तारी पर गंभीर सवाल उठता है।'
अरविंद केजरीवाल को दिल्ली शराब नीति 2021-22 में कथित अनियमितताओं से जुड़ी मनी लॉन्ड्रिंग जाँच के सिलसिले में 21 मार्च, 2024 को ईडी ने गिरफ्तार किया था। 26 जून, 2024 को उनको सीबीआई ने तब गिरफ्तार कर लिया था जब वह इसी मामले में ईडी की हिरासत में थे।
ईडी ने आरोप लगाया कि आबकारी मंत्री होने के नाते और मंत्रियों के समूह का नेतृत्व करते हुए सिसोदिया ने विशेषज्ञ राय के विपरीत उत्पाद शुल्क नीति तैयार की और वह इसमें शामिल थे और किकबैक के बारे में जानते थे।
सुप्रीम कोर्ट ने 9 अगस्त को ईडी और सीबीआई दोनों मामलों में सिसोदिया को जमानत दी। इससे पहले उनकी जमानत याचिका दो बार सुप्रीम कोर्ट पहुँची थी। तब शीर्ष अदालत ने ईडी से आश्वासन के बाद इसे खारिज कर दिया था कि जांच में तेजी लाई जाएगी और ट्रायल 6-8 महीनों के भीतर समाप्त हो जाएगा।
तीसरी बार याचिका पर जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'मामले में हजारों पृष्ठों के दस्तावेज और डिजिटाइज्ड दस्तावेजों के एक लाख पृष्ठ से अधिक शामिल हैं। यह साफ़ है कि निकट भविष्य में ट्रायल के पूरा होने की दूर तक संभावना भी नहीं है। हमारे विचार में ट्रायल के शीघ्र पूर्ण होने की उम्मीद में अपीलकर्ता को असीमित समय के लिए सलाखों के पीछे रखना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता के अपने मौलिक अधिकार को वंचित कर देगा।'
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जैसा कि समय-समय पर देखा गया है, एक अपराध के दोषी होने से पहले लंबे समय तक बिना ट्रायल के सजा देने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें इस साल 2 अप्रैल को इस आधार पर जमानत दी कि ईडी को जमानत पर रिहा होने की स्थिति में कोई आपत्ति नहीं है।
बीआरएस नेता के कविता को इस साल 15 मार्च को ईडी द्वारा गिरफ्तार किया गया। 11 अप्रैल को सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किया गया, जबकि वह तिहाड़ जेल में थीं। ईडी ने आरोप लगाया कि वह 'किंगपिन' थी, सीएम केजरीवाल और 'दक्षिण समूह' के बीच सौदे की व्यवस्था कर रही थीं।
सुप्रीम कोर्ट ने 27 अगस्त को दोनों मामलों में उनको जमानत दी। स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को दोहराते हुए और यह कहते हुए कि मुकदमा जल्द ही पूरा होने की संभावना नहीं है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक महिला होने के बावजूद दिल्ली उच्च न्यायालय ने जमानत देने से इनकार कर दिया। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "एकल न्यायाधीश ने गलत तरीके से देखा कि पीएमएलए की धारा 45 (1) के लिए प्रोविसो केवल एक 'कमजोर महिला' पर लागू होता है।"
ईडी ने दावा किया कि नायर ने आप नेताओं की ओर से दक्षिण समूह से 90-100 करोड़ रुपये की किकबैक प्राप्त की। इसमें से एक हिस्से ने कथित तौर पर पार्टी के 2022 गोवा असेंबली पोल अभियान को वित्त पोषित किया। बदले में दक्षिण समूह की पहुंच और दिल्ली में थोक शराब के कारोबार और खुदरा क्षेत्रों में हिस्सेदारी थी।
नायर को 14 नवंबर 2022 को सीबीआई मामले में ट्रायल कोर्ट द्वारा जमानत दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें इस साल 2 सितंबर को ईडी मामले में जमानत दी। यह मानते हुए कि नायर 23 महीनों से हिरासत में हैं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'जमानत नियम है और जेल अपवाद'। इसने कहा कि यदि याचिकाकर्ता को इतनी लंबी अवधि के लिए हिरासत में रखा जाता है तो इसका मक़दस ख़त्म हो जाएगा।
बता दें कि इन अधिकतर मामलों में देखा गया है कि जमानत मिलने की वजह मुख्य तौर पर जाँच को पूरा करने में देरी, जमानत का नियम और जेल अपवाद होना, अभियोजन पक्ष का विरोध नहीं, और कानून की 'गलत' व्याख्या शामिल हैं। ये कुछ कारण हैं जिनके आधार पर दिल्ली आबकारी नीति में आरोपी कई व्यक्तियों को जमानत दी गई।
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