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मजबूत होते रिश्तों के बीच भारत में क्यों हुई चीनी घुसपैठ?

भारत और चीन के बीच मजबूत होते व्यापारिक रिश्ते और बेहतर राजनीतिक व कूटनीतिक सम्बन्धों के बीच दोनों देशों की सीमा पर  कुछ हलचल हुई है, जो निश्चित तौर पर बुरी ख़बर है और चिंता की बात है। भारत को चिंतित करने वाली ख़बर यह है कि कुछ चीनी सैनिक लद्दाख में भारतीय सीमा के अंदर घुस गए और कम से कम दो घंटे तक वहीं डटे रहे। साल 2017 में डोकलाम में दोनों देशों के सैनिक कई हफ़्ते तक आमने-सामने बिल्कुल आँखों में आँखें डाले तैनात रहे। इस लिहाज़ से ताज़ा घटना नई दिल्ली को परेशान कर सकती है। 
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क्या हुआ था 6 जुलाई को?

पर यह घटना डोकलाम विवाद जैसी नहींं है। समाचार एजेन्सी पीटीआई ने ख़बर दी कि 6 जुलाई को पीपल्स लिबरेशन आर्मी  यानी चीनी सेना के कुछ सैनिक सेना की गाड़ी में बैठ कर आए, डेमचोक में भारतीय सीमा को पार करते हुए 6 किलोमीटर अंदर घुस गए और उस जगह पहुँच गए, जहाँ लोग तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा का 84वां जन्मदिन मना रहे थे। उन लोगों ने वहाँ तिब्बती झंडा फहरा रखा था। समझा जाता है कि चीनी सैनिकों को इस पर आपत्ति थी। 
Chinese troops enter Indian border in Laddakh - Satya Hindi
लेकिन एक दूसरी समाचार एजेन्सी एएनआई का कहना है कि चीनी से आए लोग सेना की वर्दी में नही थे और न ही वे सेना की गाड़ी में थे, हालाँकि वे चीनी सेना को लोग हो सकते हैं। उन लोगों ने लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी दोनों देशों के बीच की वास्तविक नियंत्रण रेखा को पार नहीं किया। लेकिन वे अपनी सीमा में ही दो घंटे तक डटे रहे। बाद में भारतीय सैनिकों के समझाने बुझाने और तिब्बती झंडा फहराने के मुद्दे पर विचार करने के आश्वासन देने के बाद लौट गए।

डेमचोक का महत्व

डेमचोक का महत्व यह है कि इसे वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अति संवेदनशील 23 जगहों में एक माना गया है। चीनी सैनिक इसके पहले भी इस इलाक़े में घुसपैठ कर चुके हैं। वे 2014 में इस सीमा को पार कर अंदर घुस गए थे, 2018 में वे सीमा के 500 मीटर अंदर तक चले आए और वहाँ टेन्ट भी लगा लिया था। 

Chinese troops enter Indian border in Laddakh - Satya Hindi

तिब्बती झंडे से भड़के चीनी सैनिक

पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस घटना पर दोनों देशों के बीच बहुत चिंता की बात नहीं है। इसे इस रूप में लेना चाहिए कि चीन ने तिब्बत के मुद्दे पर अपना विरोध एक बार फिर दर्ज कराया है। बीजिंग ही नहीं भारत भी तिब्ब्त को चीन का एक अभिन्न अंग मानता है। भारत शुरू से ही यह मानता आया है कि दलाई लामा तिब्बतियों के धर्मगुरु हैं, उनके राजनीतिक प्रतिनिधि नहीं और भारत में रहने वाले तिब्बती मूल के लोग शरणार्थी हैं, जो एक दिन अपने देश लौट जाएँगे। लेकिन मामला इतना भर नहीं है।

हिमाचल प्रदेश के मैक्लोडगंज में तिब्बती केंद्रीय प्रशासन यानी सेंट्रल टिबेटन एडमिनिशट्रेशन का मुख्यालय है, जिसे तिब्बती कुछ साल पहले तक अपनी निर्वासित सरकार (गवर्नमेंट इन एग्जाइल) कहते थे।
चीन बीच-बीच में यह अहसास दिलाता रहता है कि तिब्बत के मुद्दे पर उसकी नीति में नरमी नहीं आई है। 

व्यापारिक रिश्ते

यह मामला ऐसे समय हुआ है जब दोनों देश एक-दूसरे के नज़दीक बहुत ही तेजी से बढ़ रहे हैं, उनके बीच के व्यापारिक ही नहीं, राजनीतिक रिश्तों में ज़बरदस्त सुधार हुआ है। समझा जाता है कि नरेंद्र मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में चीन को ही अपनी विदेश नीति की धुुरी बनाएगी। 
व्यापारिक रिश्ते की गहराई इससे समझा जा सकता है कि अमेरिका ज़बरदस्त दबाव और राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की धौंसपट्टी के बावजूद भारत 5-जी का काम किसी अमेरिकी कंपनी को देने को अब तक तैयार नहीं है।
उसने यह काम चीनी कंपनी ह्वाबे को देने का मन बनाया है, वाशिंगटन जिसके सख़्त ख़िलाफ़ है। 

चीन ने की भारत की मदद

दोनों देशों के बीच राजनीतिक और कूटनीतिक सहयोग किस तरह बढ़ रहे हैं, इसे इससे समझा जा सकता है कि चीन ने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तानी आतंकवादी मसूद अज़हर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव का विरोध इस बार नहीं किया। दूसरी ओर भारत ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे पर विरोध का स्वर धीमा कर दिया है, नरमी दिखाई है। उसने इस बार चीन के बोर्डर रोड इनीशिएटिव की अंतरराष्ट्रीय बैठक का खुले आम विरोध नहीं किया।
ऐसे में डोमचोक घुसपैठ को किस रूप में देखा जाना चाहिए, सवाल यह है। इसे पिछले साल चीनी शहर वुहान में राष्ट्रपति शी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी के बीच हुई बैठक से समझा जा सकता है। दोनों नेताओं के बीच बग़ैर किसी तय अजंडे या प्रतिनिधिमंडल के सीधी बातचीत हुई थी। उसमें यह तय हुआ था कि दोनों देश अपने रिश्तों में मजबूती लाएँगे, विवाद के मुद्दों (यानी सीमा विवाद) को फिलहाल किनारे रखेंगे और जितने मतभेद होंगे, उन्हें आपसी मतभेद से दूर करेंगे। डेमचोक घुसपैठ को भी इसी नज़रिए से देखना चाहिए। 

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क़मर वहीद नक़वी
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