भारत में जब लॉकडाउन हुआ तो करोड़ों प्रवासी मज़दूरों की जान पर बन आई। भूखे रहे। हज़ारों किलोमीटर पैदल चले। कई लोगों ने तो रास्ते में दम तोड़ दिया। कई दुर्घटना में मारे गए। जब ट्रेनें शुरू हुईं तो ट्रेनों में भी मौत की रिपोर्टें आईं। देश ही नहीं, दुनिया भर में ये ख़बरें बनीं। लेकिन सरकार को इसकी ख़बर ही नहीं लगी। सरकार ने ही संसद में यह बात ख़ुद ही स्वीकारी है। मानसून सत्र में जब यह सवाल पूछा गया कि क्या लॉकडाउन में अपने-अपने घर वापस जाने के दौरान मारे गए प्रवासी मज़दूरों के परिवार वालों को हर्जाना दिया गया है तो केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने कहा कि प्रवासी मज़दूरों की मौत का आँकड़ा ही नहीं है तो हर्जाना देने का सवाल ही नहीं उठता है।
लॉकडाउन में प्रवासी मज़दूरों की मौत का आँकड़ा नहीं तो ज़िम्मेदारी कैसी!
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- 16 Sep, 2020

क्या लॉकडाउन में अपने घर वापस जाने के दौरान मारे गए प्रवासी मज़दूरों के परिवार वालों को हर्जाना दिया गया है? केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने कहा कि प्रवासी मज़दूरों की मौत का आँकड़ा ही नहीं है तो हर्जाना देने का सवाल ही नहीं उठता है।
केंद्रीय श्रम मंत्रालय जो भी कहे लेकिन यह सवाल तो उठता ही है कि क्या महाराष्ट्र के औरंगाबाद में 16 मज़दूरों की ट्रेन से कटकर मारे गए लोगों का आँकड़ा सरकार के पास नहीं है? क्या उत्तर प्रदेश के औरैया ज़िले में मध्य मई में डीसीएम में एक तेज़ रफ्तार ट्रक के टक्कर मारने से 26 मज़दूरों की मौत की जानकारी नहीं है? क्या उत्तर प्रदेश के ही महोबा में ट्रक पलटने से पाँच मज़दूरों की मौत का रिकॉर्ड भी नहीं है?