भारत में जब लॉकडाउन हुआ तो करोड़ों प्रवासी मज़दूरों की जान पर बन आई। भूखे रहे। हज़ारों किलोमीटर पैदल चले। कई लोगों ने तो रास्ते में दम तोड़ दिया। कई दुर्घटना में मारे गए। जब ट्रेनें शुरू हुईं तो ट्रेनों में भी मौत की रिपोर्टें आईं। देश ही नहीं, दुनिया भर में ये ख़बरें बनीं। लेकिन सरकार को इसकी ख़बर ही नहीं लगी। सरकार ने ही संसद में यह बात ख़ुद ही स्वीकारी है। मानसून सत्र में जब यह सवाल पूछा गया कि क्या लॉकडाउन में अपने-अपने घर वापस जाने के दौरान मारे गए प्रवासी मज़दूरों के परिवार वालों को हर्जाना दिया गया है तो केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने कहा कि प्रवासी मज़दूरों की मौत का आँकड़ा ही नहीं है तो हर्जाना देने का सवाल ही नहीं उठता है।