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बीआरएस - गजवेल
जीत
कोरोना महामारी इतनी क्यों फैली? विशेषज्ञों के एक अंतरराष्ट्रीय पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इसके लिए सीधे-सीधे सरकार ज़िम्मेदार है।
इस रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि 'विज्ञान-विरोधी नेतागण', कोरोना से लड़ने के संकल्प की कमी और सारी चेतावनियों की अनदेखी के 'घातक कॉकटेल' के कारण ही यह भयानक तबाही आयी है।
स्विटज़रलैंड स्थित इंडीपेंडेंट पैनल फॉर पैंडेमिक प्रीपेयर्डनेस एंड रिस्पॉन्स (आईपीपीपीआर) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कोरोना की तबाही से बचा जा सकता था। पर एक के बाद एक ग़लत फ़ैसले लिए गए, संस्थाएं लोगों की सुरक्षा में नाकाम रहीं, विज्ञान को नकारने वाले नेताओं ने स्वास्थ्य उपायों में लोगों का भरोसा कम किया और बड़ी तादाद में लोग मारे गए।
हालांकि यह अंतरराष्ट्रीय पैनल है, जिसमें न्यूजीलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री हेलन क्लार्क और चिकित्सा के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाले वैज्ञानिक शामिल थे, लेकिन इस रिपोर्ट को भारत की पृष्ठभूमि में देखना ज़रूरी है।
भारत के सत्तारूढ़ दल बीजेपी और उससे जुड़ी संस्थाओं के कई नेताओं ने अलग-अलग समय में कई बार कहा है कि गोमूत्र पीने से कोरोना ठीक हो जाएगा, उनसे जुड़ी एक संस्था ने कोरोना से बचाव के लिए गोमूत्र पार्टी रखी थी, बीजेपी के एक बड़े नेता ने कहा था कि गाय ऑक्सीजन छोड़ती है और एक नेता ने ज़ोर देकर कहा था कि हवन करने से कोरोना दूर भाग जाएगा। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कोरोना से बचने के लिए हनुमान चालीसा बंटवाया।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले ताली बजवायी, फिर थाली और उसके बाद रात के नौ बजे नौ मिनट तक नौ दिए या मोमबत्ती जलाने की अपील की और देश की आबादी के एक बड़े हिस्से ने उसका पालन भी किया। हालांकि उनका कहना था कि यह मेडिकल कर्मचारियों के प्रति कृतज्ञता जताने के लिए ऐसा करना ज़रूरी है, लेकिन उनका यह काम वैज्ञानिक आधार पर टिका हुआ नहीं था।
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5 अप्रैल रविवार को रात 9 बजे मैं आप सबके 9 मिनट चाहता हूं। रात 9 बजे घर की लाइट बंद करके, दरवाजे या बालकनी पर खड़े रहकर मोबाइल की फ़्लैश लाइट, टॉर्च, दीपक, मोमबत्ती ज़रूर जलाएं।
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
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आज हम जिस स्थिति में खुद को पाते हैं, उसे रोका जा सकता था। यह नाकामियों, कोरोना से निपटने की तैयारियों में कमी और प्रतिक्रिया में देरी के कारण है।
एलन जॉन्सन सरलीफ़, सदस्य, आईपीपीपीआर
पैनल ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की भी आलोचना की है। उसने कहा है कि संगठन 22 जनवरी, 2020 की स्थिति को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय मामले के तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित कर सकता था, लेकिन उने इसके बजाय 8 और दिनों का इंतजार किया।
आईपीपीपीआर की यह रिपोर्ट भारत के लिए इसलिए भी ज़रूरी है कि जिस दिन यह रिपोर्ट जारी की गई, उसी दिन देश के 533 ज़िलों में पॉजिटिविटी रेट 10 से ज़्यादा है। 5 प्रतिशत पॉजिटिविटी रेट से ज़्यादा होने पर स्थिति बेहद ख़राब माना जाती है। केंद्र सरकार की ही रिपोर्ट कहती है कि देश के 90 फ़ीसदी हिस्से में उच्च पॉजिटिविटी रेट है।
पाँच राज्यों में 30 से अधिक ज़िलों में 10 प्रतिशत से अधिक पॉजिटिविटी के मामले आ रहे हैं। केंद्र ने मंगलवार को कहा कि मध्य प्रदेश में 45 जिले, उत्तर प्रदेश में 38, महाराष्ट्र में 36, तमिलनाडु में 34, और बिहार में 33 ज़िलों में 10 प्रतिशत से ज़्यादा पॉजिटिविटी रेट है।
पॉजिटिविटी रेट से मतलब है कि जितने लोगों के सैंपल लिए गए उनमें से कितने लोग संक्रमित पाए गए। मिसाल के तौर पर 10 फ़ीसदी पॉजिटिविटी रेट का मतलब है कि 100 लोगों के सैंपल लिए गए तो उसमें से 10 लोगों की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव की आई।स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता लव अग्रवाल ने एक दिन पहले ही मंगलवार को कहा कि हिमाचल प्रदेश और नागालैंड जैसे नए राज्यों में पॉजिटिविटी रेट ज़्यादा देखी जा रही है।
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