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'सैनिक स्कूल निजीकरण': राष्ट्रपति को ख़त- 'राजनीतिक विचारधारा थोपने का प्रयास'

सैनिक स्कूलों के 'निजीकरण' का मुद्दा इतनी आसानी से बीजेपी का पीछा नहीं छोड़ने वाला है। लोकसभा चुनाव की हलचल के बीच कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस पर आपत्ति जताई है और कहा है कि सैनिक स्कूलों में एक राजनीतिक विचारधारा लाने की कोशिश की जा रही है। खड़गे ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखा और नीति को पूरी तरह से वापस लेने और क़रार किए गए समझौता ज्ञापनों को रद्द करने की मांग की। 

खड़गे ने कहा है कि देश में 33 सैनिक स्कूल हैं और वे पूरी तरह से सरकार द्वारा वित्त पोषित संस्थान हैं। ये रक्षा मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त निकाय, सैनिक स्कूल सोसाइटी यानी एसएसएस से संचालित होते हैं। उन्होंने राष्ट्रपति को लिखे ख़त को साझा किया है।

कांग्रेस अध्यक्ष ने एक आरटीआई से मिली जानकारी के हवाले से कहा है कि बीजेपी सरकार द्वारा सैनिक स्कूलों में पीपीपी मॉडल के लागू किए जाने के बाद निजीकरण हो रहा है और उसमें लगभग 62 फीसदी स्कूलों का स्वामित्व बीजेपी व संघ से जुड़े लोगों के पास है। राष्ट्रपति को लिखे दो पेज के पत्र में खड़गे ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र ने पारंपरिक रूप से सशस्त्र बलों को किसी भी पक्षपातपूर्ण राजनीति से दूर रखा है, लेकिन केंद्र सरकार ने इस अच्छी तरह से स्थापित परंपरा को तोड़ दिया है।

खड़गे ने आज़ादी के बाद देश में सैनिक स्कूलों को शुरू किए जाने की सोच को रेखांकित करते हुए कहा कि ये स्कूल भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा 1961 में स्थापित किए गए थे। तभी से ये स्कूल सैन्य नेतृत्व और उत्कृष्टता के प्रतीक रहे हैं।

उन्होंने कहा, 'अपनी विचारधारा को जल्दबाजी में थोपने की आरएसएस की भव्य योजना में एक के बाद एक संस्थानों को कमजोर करते हुए उन्होंने सशस्त्र बलों की प्रकृति और लोकाचार पर गहरा प्रहार किया है।' ऐसे संस्थानों में वैचारिक झुकाव वाले ऐसे फ़ैसले से सैनिक स्कूलों के राष्ट्रीय चरित्र को नुकसान पहुँचेगा।' खड़गे ने कहा, '

इसलिए राष्ट्र हित में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इस निजीकरण नीति को पूरी तरह से वापस लेने और इन क़रार को रद्द करने की मांग करती है, ताकि सशस्त्र बल स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे राष्ट्र की सेवा के लिए ज़रूरी चरित्र, विचारधारा और सम्मान बरकरार रख सकें।


मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस अध्यक्ष

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि एक के बाद एक आई अलग-अलग सरकारों ने सशस्त्र बलों और उसके सहयोगी संस्थानों को अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराओं की छाया से दूर रखा है। उन्होंने कहा, 'इससे वास्तव में हमारा लोकतंत्र मजबूती से फलता-फूलता रहा, भले ही दुनिया भर में शासन व्यवस्थाएं सैन्य हस्तक्षेप, लोकतंत्र के ख़ात्मे और मार्शल लॉ का शिकार हुईं।'
खड़गे ने कहा कि केंद्र सरकार ने 2021 में बेशर्मी से सैनिक स्कूलों का निजीकरण शुरू किया। उन्होंने आगे कहा कि इसका नतीजा यह निकला कि 100 नए स्कूलों में से 40 के लिए करार किए गए हैं।

खड़गे ने दावा किया कि रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि जिन 40 पर क़रार किए गए हैं, उनमें से 62 प्रतिशत पर हस्ताक्षर आरएसएस-भाजपा-संघ परिवार से जुड़े व्यक्तियों और संगठनों के साथ किए गए हैं। कांग्रेस अध्यक्ष ने आरोप लगाया कि इसमें एक मुख्यमंत्री का परिवार, कई विधायक, भाजपा पदाधिकारी और आरएसएस नेता शामिल हैं।

उन्होंने कहा, 'यह स्वतंत्र सैनिक स्कूलों का राजनीतिकरण करने का एक ज़बरदस्त कदम है। एक ऐसा मंच है जो राष्ट्रीय रक्षा अकादमी यानी एनडीए और भारतीय नौसेना अकादमी के लिए कैडेटों को भेजने में अग्रणी भूमिका निभाता है। सैनिक स्कूलों की स्थापना 1961 में भारत के पहले प्रधान मंत्री पंडित नेहरू द्वारा की गई थी और तब से वे सैन्य नेतृत्व और उत्कृष्टता के प्रतीक रहे हैं।'

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रक्षा मंत्रालय ने पिछले हफ्ते उन रिपोर्टों को खारिज कर दिया कि नए सैनिक स्कूल संस्थानों को उनकी राजनीतिक या वैचारिक संबद्धता के आधार पर आवंटित किए गए थे। रक्षा मंत्रालय ने 3 अप्रैल को एक बयान में कहा, 'प्रेस के कुछ हिस्सों में ऐसे लेख छपे हैं जिनमें कहा गया है कि नए सैनिक स्कूलों को उनके राजनीतिक या वैचारिक जुड़ाव के आधार पर संस्थानों को आवंटित किया जा रहा है। इस तरह के आरोप निराधार हैं।' इसमें कहा गया है कि नए सैनिक स्कूलों को चलाने के लिए संस्थानों को अंतिम रूप देने के लिए एक कठोर चयन प्रक्रिया का पालन किया गया था।
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क़मर वहीद नक़वी
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