समलैंगिक विवाह के मामले में सुनवाई के तीसरे दिन याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की दलीलें रखीं। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने गुरुवार को तर्क दिया कि यदि अनुच्छेद 21 यानी जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण के तहत पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार दिया गया है तो मेरे मौलिक अधिकार का प्रयोग करने के लिए मुझे नोटिस देने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए। विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत विवाह के लिए सार्वजनिक आपत्तियों को आमंत्रित करने के लिए अनिवार्य 30 दिन का नोटिस पीरियड होता है।
समलैंगिक विवाह- स्पेशल मैरिज एक्ट में 30 दिन का नोटिस 'पितृसत्तात्मक': SC
- देश
- |
- 20 Apr, 2023
2018 में जब समलैंगिक संबंध बनाना अपराध नहीं रहा था तो फिर अब समलैंगिक शादी का यह मुद्दा क्यों उठ रहा है? जानिए याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट में क्या दलील दी गई।

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत विवाह के लिए सार्वजनिक आपत्तियों को आमंत्रित करने के लिए अनिवार्य 30-दिवसीय नोटिस 'पितृसत्तात्मक' है। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने यह भी कहा कि इससे समाज द्वारा आक्रमण किया जाना आसान हो जाता है। न्यायमूर्ति भट ने कहा कि नोटिस प्रणाली केवल पितृसत्ता पर आधारित थी और ये कानून तब बनाए गए थे जब महिलाओं के पास कोई एजेंसी नहीं थी। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि इससे आक्रमण की राह आसान हो जाती है।