समलैंगिक विवाह के मामले में सुनवाई के तीसरे दिन याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की दलीलें रखीं। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने गुरुवार को तर्क दिया कि यदि अनुच्छेद 21 यानी जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण के तहत पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार दिया गया है तो मेरे मौलिक अधिकार का प्रयोग करने के लिए मुझे नोटिस देने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए। विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत विवाह के लिए सार्वजनिक आपत्तियों को आमंत्रित करने के लिए अनिवार्य 30 दिन का नोटिस पीरियड होता है।