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ओमिक्रॉन के ख़िलाफ़ ऐसे टीकाकरण से कैसे लड़ पाएँगे?

ओमिक्रॉन संक्रमण के ख़िलाफ़ कोविशील्ड वैक्सीन टीकाकरण के 6 महीने बाद बेअसर साबित हो रही है, ऐसा एक शोध में सामने आया है। इस हिसाब से भारत की कितनी बड़ी आबादी ओमिक्रॉन के जोखिम में होगी?

इसका आकलन करने के लिए दो तथ्य अहम हैं। एक तो यह कि 1 अरब 40 करोड़ की आबादी वाले भारत में अब तक क़रीब 56 करोड़ लोगों को ही दोनों खुराक लगी हैं। यानी अभी भी क़रीब 85 करोड़ लोग तो सीधे तौर पर मूल कोरोना वायरस के जोखिम में भी हैं, ओमिक्रॉन और डेल्टा वैरिएंट की तो बात ही दूर है। दूसरा तथ्य यह है कि अब यदि ताज़ा शोध की मानें तो यदि छह महीने में यह वैक्सीन ओमिक्रॉन पर कारगर नहीं होती है तो फिर इस साल जनवरी से लेकर जून के बीच टीके लगवाने वाले लोगों को ओमिक्रॉन के ख़िलाफ़ सुरक्षा नहीं मिलेगी। वैसे भी शोध तो यह भी कहते हैं कि बिना बूस्टर खुराक के ओमिक्रॉन संक्रमण को रोकने में कोई भी टीका कारगर नहीं है।

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ओमिक्रॉन के ख़िलाफ़ वैक्सीन की ऐसी स्थिति दुनिया भर में चिंता पैदा करने वाली है। एक ऐसी दुनिया में जहाँ अरबों लोगों का टीकाकरण नहीं हुआ है, ओमिक्रॉन वैरिएंट के संक्रमण में तेज़ी न केवल कमजोर व्यक्तियों के स्वास्थ्य के लिए ख़तरा है, बल्कि इससे और भी नये वैरिएंट के पनपने का ख़तरा बढ़ता जाएगा। 

ओमिक्रॉन के ख़तरे को लेकर ही आज कांग्रेस नेताओं ने टीकाकरण की स्थिति पर सरकार पर निशाना साधा। कांग्रेस के प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने एक चार्ट शेयर करते हुए पूछा कि हम दुनिया और एशिया के औसत के मुक़ाबले पीछे क्यों हैं?

गौरव वल्लभ ने ट्वीट कर कहा है कि टीकाकरण को शुरू हुए आज 340 दिन हो चुके हैं और मात्र 40 फ़ीसदी जनसंख्या को ही दोनों खुराक लगाई जा सकी है। उन्होंने चीन से भी भारत की तुलना की है।

हालाँकि, इस बीच केंद्र सरकार देश में एक अरब से ज़्यादा खुराक लगाने का उत्सव मना रही है। आज ही सरकार ने कहा है कि टीके लगाने की योग्य देश की 60 फ़ीसदी आबादी को पूरी तरह टीका लगाया जा चुका है। 

केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री भारती प्रवीण पवार ने ट्वीट किया है कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में संचालित विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है।

देश में ओमिक्रॉन संक्रमण के मामले तेज़ी से बढ़ने के बाद टीकाकरण को लेकर एक बार फिर से सवाल उठने लगे हैं। हाल की शोध रिपोर्टें भारत में टीकाकरण में तेजी लाने की ज़रूरत को बताती हैं। 

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, शुरुआती शोध में पता चला है कि दुनिया की अधिकतर वैक्सीन ओमिक्रॉन से संक्रमित होने से रोकने में क़रीब-क़रीब विफल हैं। यानी संक्रमण के ख़िलाफ़ ऐसी वैक्सीन कारगर नहीं जान पड़ती हैं। हालाँकि इसमें एक राहत वाली ख़बर यह है कि सभी टीके ओमिक्रॉन वैरिएंट की गंभीर बीमारी से बचाते हुए जान पड़ते हैं।

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शुरुआती शोध के अनुसार, केवल फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन जब एक बूस्टर खुराक दी जाती है तो ओमिक्रॉन वैरिएंट के संक्रमण को रोकने में शुरुआती तौर पर सफल होती हुई दिखती है। ये दोनों ऐसे टीके हैं जो दुनिया के अधिकांश हिस्सों में उपलब्ध नहीं हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, फाइजर और मॉडर्ना वैक्सीन नई एमआरएनए तकनीक पर आधारित हैं, और इसने लगातार हर प्रकार के संक्रमण के ख़िलाफ़ सर्वोत्तम सुरक्षा प्रदान की है। अन्य सभी टीके इम्युन रिस्पांस यानी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर करने के पुराने तरीकों पर आधारित हैं।

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ब्रिटेन में एक शुरुआती अध्ययन में पाया गया कि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन में टीकाकरण के छह महीने बाद ओमिक्रॉन वैरिएंट के ख़िलाफ़ कोई क्षमता नहीं दिखी। भारत में नब्बे प्रतिशत टीकाकरण वाले लोगों ने कोविशील्ड ब्रांड नाम के तहत एस्ट्राजेनेका की ही खुराक ली है। इस वैक्सीन को भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया बना रहा है। 

ऐसे में अब सवाल है कि ओमिक्रॉन से कैसे और कितनी सुरक्षा मिलेगी?

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क़मर वहीद नक़वी
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