शाहीन बाग़। यानी नागरिकता क़ानून के विरोध की पहचान। शाहीन बाग़ यानी बुर्के और घूँघट में भी महिलाओं का सामने आना। सरकार की बेहिसाब ताक़त का सामना करना। कड़कड़ाती ठंड में भी डटे रहना। शालीनता से प्रदर्शन। न तो हिंसा और न ही उकसावे की भाषा। बस, एक ही ज़िद। नागरिकता क़ानून वापस लो। ज़िद कि 'अमित शाह एक इंच पीछे नहीं हटेंगे तो हम आधा इंच भी नहीं'। वैसे, शाहीन बाग़ तो दिल्ली में है, लेकिन शाहीन बाग़ वाला ऐसा प्रदर्शन देश में कई और जगहों पर चल रहा है। लेकिन उन पर कैमरे की नज़र नहीं है। वैसे, दिल्ली के शाहीन बाग़ पर भी मुख्य धारा के मीडिया की वैसी रिपोर्टिंग न के बराबर ही है। लेकिन प्रदर्शन की तसवीर बरबस ही आंदोलन जैसी है। तो क्या शाहीन बाग़ एक आंदोलन की ज़मीन तैयार कर रहा है?