शाहीन बाग़। यानी नागरिकता क़ानून के विरोध की पहचान। शाहीन बाग़ यानी बुर्के और घूँघट में भी महिलाओं का सामने आना। सरकार की बेहिसाब ताक़त का सामना करना। कड़कड़ाती ठंड में भी डटे रहना। शालीनता से प्रदर्शन। न तो हिंसा और न ही उकसावे की भाषा। बस, एक ही ज़िद। नागरिकता क़ानून वापस लो। ज़िद कि 'अमित शाह एक इंच पीछे नहीं हटेंगे तो हम आधा इंच भी नहीं'। वैसे, शाहीन बाग़ तो दिल्ली में है, लेकिन शाहीन बाग़ वाला ऐसा प्रदर्शन देश में कई और जगहों पर चल रहा है। लेकिन उन पर कैमरे की नज़र नहीं है। वैसे, दिल्ली के शाहीन बाग़ पर भी मुख्य धारा के मीडिया की वैसी रिपोर्टिंग न के बराबर ही है। लेकिन प्रदर्शन की तसवीर बरबस ही आंदोलन जैसी है। तो क्या शाहीन बाग़ एक आंदोलन की ज़मीन तैयार कर रहा है?
नागरिकता क़ानून: कई शहरों में शाहीन बाग़; खड़ा होगा आंदोलन!
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- 14 Jan, 2020
शाहीन बाग़। यानी नागरिकता क़ानून के विरोध की पहचान। शाहीन बाग़ यानी बुर्के और घूँघट में भी महिलाओं का सामने आना। प्रयागराज और गया में भी शाहीन बाग़ जैसा प्रदर्शन।

नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ शाहीन बाग़ में जो हो रहा है वही उत्तर प्रदेश के प्रयागराज और बिहार के गया जैसे शहरों में भी हो रहा है। यह प्रयागराज वही है जिसे हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इलाहाबाद का नाम बदलकर रखा है। यहाँ दिल्ली के शाहीन बाग़ की तरह ही प्रदर्शन चल रहा है। महिलाओं ने पहल की और दूसरे भी जुड़ते गए। पूरी रात वे धरने पर बैठे रहे। ऐसा ही प्रदर्शन बिहार के गया शहर में भी चल रहा है। बड़ी संख्या में महिलाएँ घूँघट और बुर्के में हैं। संविधान के समर्थन में नारे लगा रहे हैं।