सेना के पास हथियार नहीं हैं। हथियार ख़रीदने के पैसे भी नहीं हैं। विडम्बना यह कि राष्ट्रवाद के नाम का बड़ा ढोल पीटने वाली बीजेपी की सरकार को इसकी कोई चिन्ता नहीं है। मोदी सरकार सेना की कितनी परवाह करती है, यह सच्चाई जान कर सच्चे राष्ट्रवादियों को वाक़ई बहुत धक्का लगेगा।
जुमलों का यह कैसा राष्ट्रवाद, जिसे सेना की सच्ची फ़िक्र नहीं!
- देश
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- 23 Feb, 2019

क्या सेना के हालात और सुरक्षा के इंतज़ाम सुधरें तो आतंकियों से निपटना आसान नहीं होगा? कम से कम रक्षा से जुड़ी संसदीय कमेटी तो ऐसा करने पर स्थिति सुधरने की बात मानती है।
सेना की हालत पर रक्षा मामलों से जुड़ी संसदीय कमेटी की रिपोर्ट में यह ख़ुलासा किया गया था कि सेना के पास हथियारों की भारी कमी है, काफ़ी हथियार पुराने पड़ गये हैं, लेकिन इसके बावजूद सेना को पैसे मुहैया कराये जाने के बजाय मोदी सरकार ने उसमें कटौती कर दी। यह रिपोर्ट आज से एक साल पहले सुन्जुवान आर्मी कैम्प पर जैश-ए-मुहम्मद के एक फ़िदायीन हमले के बाद आयी थी। यह रिपोर्ट देनेवाली संसद की इस स्थायी समिति के अध्यक्ष कोई कांग्रेसी या वामपंथी नहीं थे, बल्कि बीजेपी सांसद मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूरी थे, जो केन्द्रीय मंत्री भी रह चुके हैं और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी।
- लेकिन मोदी सरकार ने यह रिपोर्ट तो दबा ही दी, खंडूरी जी को भी समिति के अध्यक्ष पद से 20 सितम्बर 2018 को हटा दिया गया। तो आख़िर इस रिपोर्ट में ऐसा क्या था, जो वह मोदी सरकार को इतनी नागवार लगी कि अपनी पार्टी के ही एक बेहद वरिष्ठ और अनुभवी राजनेता को स्थायी समिति की अध्यक्षता से हाथ धोना पड़ गया। अपने हटाये जाने के दो दिन बाद ही खंडूरी ने देहरादून में मीडिया के पूछने पर कहा था, ‘किसी से कोई गिला नहीं, मैंने अपना काम किया।’
खंडूरी की अध्यक्षता वाली इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर कड़ी नाराज़गी जाहिर की थी कि हमारे रक्षा प्रतिष्ठानों (समुद्री अड्डों समेत) की सुरक्षा के मामले में मौजूदा इंतज़ाम बहुत ही घटिया हैं और कहा था कि रक्षा मंत्रालय का रवैया इस मामले में बहुत ही शर्मनाक है।
पुलवामा में अभी हुए हमले के ठीक एक साल पहले 10 फरवरी, 2018 को जम्मू के सुन्जुवान आर्मी कैंप पर इसी जैश-ए-मुहम्मद ने एक फ़िदायीन हमला किया था, जिसमें 11 सैनिक शहीद हुए थे और 14 जवान गंभीर रूप से घायल हुए थे। समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस हमले का विशेष रूप से ज़िक्र करते हुए उन बिंदुओं की तरफ़ भी इशारा किया था, जिनकी वजह से आतंकवादी ऐसी वारदातें करने में सफल हो जाते हैं।
कमेटी में बीजेपी का बहुमत
इस समिति में बीजेपी सांसदों का प्रचण्ड बहुमत था। यानी कोई यह नहीं कह सकता कि समिति ने किसी पूर्वग्रह से रिपोर्ट दी थी। रिटायर्ड मेजर जनरल रहे बी. सी. खंडूरी के अलावा इस समिति में लोकसभा से बीस और राज्यसभा से नौ सांसद थे। खंडूरी ख़ुद सेना की पृष्ठभूमि से हैं, इसलिए सेना की समस्याओं और ज़रूरतों को उनसे बेहतर और कौन समझ सकता है। हालाँकि वर्ष 2017-18 की रक्षा मामलों की इस रिपोर्ट के तैयार होने से पहले इस समिति के दो सदस्यों ने इस्तीफ़ा दे दिया था। सुब्रमनियन स्वामी भी इस समिति के सदस्य थे, जिन्होंने 7 मार्च, 2018 को इस्तीफ़ा दे दिया था, एक और सदस्य कांग्रेस के विवेक के तनखा इसके लगभग पाँच महीने पहले ही 16 नवंबर, 2017 को इस्तीफ़ा दे चुके थे।