न्यूज़ चैनलों की रेटिंग देने वाली यानी टीआरपी बताने वाली एजेंसी बार्क (ब्रॉडकास्टिंग ऑडिएंस रिसर्च कौंसिल) इस समय निशाने पर है। उस पर आरोप लग रहे हैं कि वह ठीक ढंग से काम नहीं कर रही, उसकी रेटिंग प्रणाली में खोट है और सबसे बुरा आरोप तो भ्रष्टाचार का है। कहा जा रहा है कि अगर ठीक से जाँच हुई तो बहुत सारी चीज़ें बाहर आ सकती हैं। मसलन, न्यूज़ चैनलों द्वारा उसके कर्मचारियों को महँगे उपहार देने से लेकर विदेशों में मौज़ कराकर टीआरपी को प्रभावित करने तक कई ऐसी विस्फोटक जानकारियाँ हैं जो बार्क से लोगों के विश्वास को ध्वस्त कर सकती हैं।
TRP का दुष्चक्र-7: टैम गया बार्क आया; कुछ बदला क्या?
- मीडिया
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- 1 Nov, 2020

टीआरपी स्कैम के बाद न्यूज़ चैनलों की रेटिंग देने वाली एजेंसी बार्क इस समय निशाने पर है। इससे पहले टैम इंडिया रेटिंग देती थी और वह भी ऐसी ही खामियों के लिए निशाने पर आई थी। लेकिन इसके बाद से क्या कुछ बदला है? तो जो पहले न्यूज़रूमों में तनाव का कारण बनते थे और पत्रकारों को उन आँकड़ों से जूझना पड़ता था, क्या वह बदला? पढ़िए, टीआरपी पर सत्य हिंदी की शृंखला की सातवीं कड़ी...
बार्क पर जो आरोप आज लगाए जा रहे हैं उनमें से कई उससे पहले वाली रेटिंग एजेंसी पर लगाए जाते थे। टीआरपी के संबंध में शुरुआती हाहाकार के समय पत्रकारों और मीडिया इंडस्ट्री का ग़ुस्सा टैम इंडिया नामक एजेंसी पर फूटता था। उस समय टैम इंडिया ही हर हफ़्ते रेटिंग के आँकड़े देती थी, जो कि ज़ाहिर है न्यूज़रूमों में तनाव का कारण बनते थे। पत्रकारों को इन आँकड़ों से जूझना पड़ता था। उन्हें हर हफ़्ते टीआरपी की विवादास्पद और संदिग्ध कसौटी पर खुद को साबित करना पड़ता था।